मौसम विभाग की ला नीना को लेकर आयी नयी अपडेट | जाने कैसा रहेगा आने वाले दिनों मे मौसम का हाल
भारत में चार माह का दक्षिण-पश्चिमी मानसून कृषि और जल प्रबंधन की रीढ़ माना जाता है। ऐसे में यदि वैश्विक जलवायु संकेतक मानसून को अनुकूल दिशा में मोड़ें, तो यह देश के ग्रामीण जीवन और राष्ट्रीय उत्पादन प्रणाली के लिए अत्यंत शुभ संकेत होता है। इसी संदर्भ में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्था नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) ने अपने ताज़ा पर्यवेक्षण में स्पष्ट किया है कि इस साल ग्रीष्मकाल के दौरान अल नीनो की स्थिति उभरने की कोई संभावना नहीं है। यह जानकारी ऐसे समय में सामने आई है, जब भारत के मौसम वैज्ञानिक आगामी वर्षा ऋतु के दीर्घकालिक पूर्वानुमान को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में हैं। NOAA की इस घोषणा से भारतीय उपमहाद्वीप के लिए कृषि, जलवायु और खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से राहत भरे संकेत मिल रहे हैं।
ENSO कैसे काम करता है यह जलवायु चक्र
अल नीनो-सदर्न ओसीलेशन (ENSO) एक जटिल समुद्री और वायुमंडलीय परिघटना है, जो पृथ्वी की वायुगतिकी को व्यापक रूप से प्रभावित करती है। इसमें तीन अवस्थाएँ होती हैं — पहला, जब प्रशांत महासागर के मध्य और पूर्वी भाग में समुद्री सतह का तापमान असामान्य रूप से अधिक हो जाता है, जिसे अल नीनो कहा जाता है; दूसरा, जब तापमान औसत के आसपास बना रहता है, जिसे तटस्थ कहा जाता है; और तीसरा, जब पानी का तापमान सामान्य से नीचे चला जाता है, जिसे ला नीना के नाम से जाना जाता है। यह चक्र केवल महासागरों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि विश्वभर में वर्षा पैटर्न, तापमान परिवर्तन और चक्रवातों की तीव्रता पर भी इसका गहरा असर पड़ता है।
भारत में जून से सितंबर के बीच आने वाला मॉनसून मौसम चक्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, क्योंकि यहीं पर सालभर की लगभग 70% बारिश दर्ज होती है। यह वर्षा न केवल खेतों को सिंचित करती है, बल्कि जलाशयों को भरकर पीने के पानी और बिजली उत्पादन की ज़रूरतों को भी पूरा करती है। ENSO की तासीर इस सीजन की दिशा तय करती है — अल नीनो की गर्म स्थिति सूखा, वर्षा की कमी और कृषि हानि का कारण बन सकती है, जबकि ला नीना के दौरान बादल खूब बरसते हैं। हालांकि, कभी-कभी ENSO की तटस्थ अवस्था में भी अच्छी बारिश दर्ज की गई है, जिससे यह साबित होता है कि मौसम के अन्य घटक भी प्रभावी भूमिका निभाते हैं।
NOAA का विश्लेषण
NOAA द्वारा अप्रैल 2025 में जारी की गई रिपोर्ट में ENSO के मौजूदा और संभावित रुझानों का गहराई से विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तरी गोलार्द्ध में पूरा गर्मी का मौसम ENSO की तटस्थ स्थिति में ही व्यतीत होगा। संगठन ने अपने पूर्वानुमान में कहा है कि अगस्त से अक्टूबर 2025 के बीच ENSO के तटस्थ रहने की संभावना 50 प्रतिशत से अधिक है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि न तो अल नीनो और न ही ला नीना पूरी ताकत से सक्रिय होंगे। यह स्थिरता भारत के लिए उम्मीदों की एक नई किरण है, जो सामान्य या इससे अधिक वर्षा की तरफ संकेत करती है।
भारतीय मौसम विभाग (IMD) इस महीने के तीसरे सप्ताह में अपने वार्षिक मॉनसून पूर्वानुमान को सार्वजनिक करने जा रहा है। ऐसे में NOAA की रिपोर्ट एक सकारात्मक पृष्ठभूमि तैयार करती है, जिससे किसानों, नीति-निर्माताओं और जल संसाधन प्रबंधकों को रणनीति बनाने में सहयोग मिलेगा। IMD ने पहले ही यह संकेत दिया था कि इस वर्ष मानसून के दौरान अल नीनो की स्थिति नहीं बनने जा रही है, और NOAA की पुष्टि ने इस विश्वास को और मजबूत किया है। कृषि योजनाओं, बुआई की तैयारियों और खाद्य सुरक्षा की रणनीतियों के लिए यह वक्त अत्यंत निर्णायक साबित हो सकता है।
कृषि जगत को मिली नई ऊर्जा
इस रिपोर्ट से सबसे अधिक राहत देश के करोड़ों किसानों को मिली है, जिनकी आजीविका पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर करती है। यदि सामान्य या उससे अधिक वर्षा होती है, तो खरीफ फसलों की बुआई समय पर हो सकेगी, जिससे उत्पादन बढ़ेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। इसके साथ ही, पर्याप्त वर्षा जलाशयों और नदियों को भी भर देगी, जिससे सिंचाई और पीने के पानी की व्यवस्था सुचारु रहेगी। सरकार भी अब राहत योजनाओं से अधिक उत्पादन बढ़ाने वाली योजनाओं की ओर ध्यान केंद्रित कर सकती है।
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