साल 2024 में ग्वार में तेजी बनेगी या नहीं | जाने इस रिपोर्ट में
किसान भाइयों, भारत में कृषि क्षेत्र न केवल स्थानीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय मांग पर भी निर्भर करता है, इसमें ग्वार की उपज की अहम भूमिका रहती है, विशेषकर शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में। इसकी खेती विशेष रूप से उन इलाकों में होती है जहां पानी की कमी रहती है। ग्वार में सूखे की सहनशीलता होती है, जिससे यह फसल भारतीय मौसम के अनुकूल होती है। 2011-12 के दौरान ग्वार की मांग ने अचानक उछाल देखा जब इसके गम का उपयोग शेल ऑयल और गैस ड्रिलिंग में व्यापक स्तर पर होने लगा। इसके परिणामस्वरूप, अंतरराष्ट्रीय बाजार में ग्वार की कीमतें अप्रत्याशित रूप से बढ़ गईं। अमेरिकी और चीनी कंपनियों द्वारा भारी मात्रा में ग्वार गम का आयात किया गया, और इसकी मांग इतनी बढ़ी कि भारत का कृषि व्यापार संतुलन इसके निर्यात से प्रभावित हुआ। इसने ग्वार की खेती को लाभकारी बना दिया और किसानों को इसके उत्पादन में प्रोत्साहित किया। इस समय ग्वार गम का उपयोग केवल ऑयल ड्रिलिंग तक ही सीमित नहीं था बल्कि इसे खाद्य उद्योग, चिकित्सा क्षेत्र, और कागज बनाने के उद्योग में भी इस्तेमाल किया जाने लगा। ग्वार की खेती मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और गुजरात में की जाती है। यह फसल अपनी विशिष्टताओं के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी महत्वपूर्ण है, खासकर ग्वार गम के रूप में, जिसका उपयोग कई औद्योगिक, खाद्य और कृषि क्षेत्रों में किया जाता है। ग्वार का महत्व इस तथ्य से और बढ़ जाता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा ग्वार गम उत्पादक और निर्यातक है। 2011-12 में इसकी कीमतें शिखर पर थीं, जिससे इसने किसानों और व्यापारियों का ध्यान आकर्षित किया। हालांकि, इसके बाद कीमतों में उतार-चढ़ाव का दौर आया, जिसने किसानों को इस फसल में जोखिम के प्रति अधिक सतर्क बना दिया है। लेकिन फिर भी 2012 में आई तेजी को ध्यान में रखते हुए कई किसान भाइयों ने अपने ग्वार की फसल के स्टॉक को कई सालों से रोक के रखा हुआ है, उन्हें इस बात की उम्मीद है कि ग्वार में 2012 वाला दौर फिर से लौट कर आएगा। क्या ग्वार के दामों में 2012 वाला उछाल फिर से देखने को मिलेगा या नहीं, इस बात के बारे में जानने के लिए हम आज की इस रिपोर्ट में ग्वार के आर्थिक और व्यापारिक महत्व, इसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारणों, मौजूदा स्थिति, और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे। ग्वार की स्थिति की संपूर्ण जानकारी के बारे में जानने के लिए चलिए पढ़ते हैं आज की यह रिपोर्ट। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
कीमतों में उतार-चढ़ाव
किसान भाइयों, ग्वार की कीमतों में अस्थिरता का प्रमुख कारण अंतरराष्ट्रीय बाजारों में ग्वार की मांग को बताया जाता है। 2012 के बाद, अमेरिकी ऑयल ड्रिलिंग क्षेत्र ने ग्वार गम के विकल्प की खोज शुरू कर दी, जिससे ग्वार की मांग कम होने लगी। इसके अलावा, अमेरिका ने अधिक किफायती रासायनिक विकल्पों का उपयोग करना शुरू कर दिया, जिससे ग्वार की कीमतों में गिरावट आने लगी। इसके साथ ही, भारत में इस समय तक ग्वार का उत्पादन बड़े पैमाने पर बढ़ चुका था, जिससे बाजार में अधिक आपूर्ति होने लगी। इस अतिरिक्त आपूर्ति ने कीमतों को संतुलित बनाए रखना मुश्किल कर दिया। इसके अलावा, भारत में किसानों ने अधिक मुनाफा पाने की उम्मीद में ग्वार का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया, जिससे इसकी कीमतों में अस्थिरता बनी रही। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय मांग की अनिश्चितता ने भी ग्वार की कीमतों में उतार-चढ़ाव को बढ़ावा दिया। ग्वार की मांग एक समय ऑयल ड्रिलिंग इंडस्ट्री पर निर्भर थी, और इस सेक्टर में आई थोड़ी भी गिरावट ने ग्वार की कीमतों को सीधा प्रभावित किया।
मौजूदा स्थिति
किसान साथियों, अगर मौजूदा समय की बात की जाए तो आज के समय में ग्वार का प्रमुख उपयोग फूड प्रोसेसिंग सेक्टर और औद्योगिक उत्पादों में हो रहा है। ग्वार गम का उपयोग आइसक्रीम, पनीर, सॉस, और बेकरी उत्पादों जैसे खाद्य पदार्थों में किया जाता है। इसके अलावा, ग्वार गम का प्रयोग टैक्सटाइल और पेपर उद्योग में भी होता है। महामारी के दौरान ग्वार के निर्यात में भारी गिरावट देखी गई, जिससे इसका उत्पादन और बाजार मूल्य दोनों ही प्रभावित हुए। हालांकि, वर्तमान में ग्वार का निर्यात धीरे-धीरे पुनः स्थिर हो रहा है और फूड सेक्टर में इसकी खपत सामान्य स्तर पर लौट आई है। भारत का कृषि क्षेत्र धीरे-धीरे ग्वार के लिए नए और स्थिर बाजारों की तलाश कर रहा है ताकि इस फसल की मांग को बनाए रखा जा सके। इसके साथ ही, भारत में कृषि वैज्ञानिक और विशेषज्ञ यह सुझाव दे रहे हैं कि ग्वार की खेती को औद्योगिक उपयोग के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी प्रसारित किया जाए। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
आज के मंडी भाव
किसान भाइयों, फिलहाल ग्वार के दामों में कोई खास तेजी की उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है लेकिन अलग-अलग राज्यों में ग्वार के दामों में काफी परिवर्तन दिखाई दे रहा है। अगर देश के अलग-अलग राज्यों में ग्वार के भाव की बात करें तो छत्तीसगढ़ की मंडियों में 4200-4600 रुपए प्रति क्विंटल, हरियाणा की मंडियों में 4800-5000 रुपए प्रति क्विंटल, दिल्ली में 4200-5000 रुपए प्रति क्विंटल, उत्तर प्रदेश की मंडियों में 4800 -5200 रुपए प्रति क्विंटल, पंजाब की मंडियों में 5200 रुपए प्रति क्विंटल, महाराष्ट्र की मंडियों में 3500-4500 रुपए प्रति क्विंटल, मध्य प्रदेश की मंडियों में 4200-4600 रुपए प्रति क्विंटल, राजस्थान की मंडियों में 4500-5250 रुपए प्रति क्विंटल और गुजरात की मंडियों में 4800-5500 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास चल रहे हैं
उत्पादक क्षेत्र
किसान साथियों, ग्वार मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और गुजरात में उगाया जाता है। राजस्थान ग्वार का सबसे बड़ा उत्पादक है और इसकी जलवायु ग्वार की खेती के लिए बहुत अनुकूल है। यहां की सूखी और शुष्क भूमि में ग्वार की पैदावार अच्छी होती है, और इसके लिए बहुत अधिक पानी की आवश्यकता भी नहीं होती। हरियाणा और पंजाब में ग्वार की खेती में धीरे-धीरे बढ़ोतरी देखी गई है, क्योंकि यहां के किसान इसके लाभ और संभावनाओं को समझ रहे हैं। लेकिन राजस्थान देश का सबसे बड़ा ग्वार उत्पादक राज्य है, अकेले राजस्थान में देश के 80% ग्वार का उत्पादन होता है। इसके अलावा, सरकार द्वारा किसानों को ग्वार की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। खेती में आधुनिक तकनीकों और विज्ञान के प्रयोग से इसकी पैदावार में भी सुधार देखा गया है। राज्य सरकारों द्वारा ग्वार के लिए विशेष योजनाएं चलाई जा रही हैं, ताकि किसानों को इसके उत्पादन में अधिक से अधिक लाभ हो सके।
भविष्य की संभावनाएं
किसान भाइयों, आने वाले समय में ग्वार को लेकर कोई टिप्पणी करना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि ग्वार की खेती का भविष्य अनिश्चित है। ग्वार के दामों में बढ़ोतरी अंतरराष्ट्रीय बाजार की मांग पर निर्भर करती है। ताजा जानकारी के अनुसार फिलहाल अंतरराष्ट्रीय बाजारों में ग्वार की मांग सीमित बनी हुई है। अगर ऑयल ड्रिलिंग सेक्टर में फिर से ग्वार का उपयोग शुरू होता है, तो इसकी कीमतों में वृद्धि संभव है। सरकार को ग्वार गम के नए उपयोगों को खोजने की आवश्यकता है ताकि इसे विभिन्न उद्योगों में और अधिक उपयोगी बनाया जा सके। ग्वार की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण इसमें निवेश करना जोखिम भरा हो सकता है। इस जोखिम को कम करने के लिए किसानों और व्यापारियों को यह सलाह दी जाती है कि वे ग्वार में निवेश करते समय बाजार की मांग और आपूर्ति का सही आकलन करें। इसके अलावा, किसानों को सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ उठाना चाहिए। भारत में कई संस्थाएं और कृषि संस्थान किसानों को ग्वार की खेती के नए तरीकों और तकनीकों की जानकारी प्रदान कर रही हैं, जिससे किसान अपनी खेती में जोखिम प्रबंधन कर सकें। इसके अतिरिक्त, किसानों को यह सलाह दी जाती है कि वे केवल ग्वार पर निर्भर न रहें, बल्कि अन्य फसलों की भी खेती करें ताकि उनके जोखिम का वितरण हो सके। यह बहु-फसलीकरण न केवल उनकी आय को स्थिर बनाएगा बल्कि ग्वार की कीमतों में गिरावट की स्थिति में उन्हें सुरक्षा भी प्रदान करेगा।
नोट:- रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी अनुमानों पर आधारित है व्यापार अपनी समझ और विवेक से करें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।