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सितम्बर तक आसमान छू सकते हैं प्याज के भाव | देखें प्याज की तेजी मंदी रिपोर्ट

देखें प्याज की तेजी मंदी रिपोर्ट
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किसान साथियो आपने महसूस किया होगा कि हर साल सितंबर और नवंबर महिने के बीच प्याज की कीमते आसमान छूने लगती है। लेकिन इस बार यह तेजी थोड़ा पहले ही आ गई है। इस तेजी का मुख्य कारण आपूर्ति चक्र और मौसम की स्थिति को माना जा रहा है। भारत में प्याज की तीन प्रमुख फसलें होती हैं: खरीफ (सितंबर-नवंबर में कटाई), लेट खरीफ (जनवरी-मार्च में कटाई), और रबी (मार्च-मई में कटाई)। खरीफ फसल की प्याज अगस्त-सितंबर में बाजार में आना शुरू होती है, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि फ़सल के खराब होने से जून जुलाई के समय में भी नई फसल की आपूर्ति सीमित हो जाती है, जिसके कारण कीमतें बढ़ जाती हैं। वैसे आमतौर पर गर्मियों में कटी रबी फसल का प्याज जून-जुलाई तक पर्याप्त मात्रा में बाजार में उपलब्ध होता है। हालांकि इसके बाद प्याज की आपूर्ति में कमी आने लगती है और सितंबर आते आते पुरानी प्याज का भंडार भी घटने लगता है। भंडारण की क्षमता सीमित होने के कारण और प्याज का जल्दी खराब होने वाला स्वभाव इसे लंबी अवधि तक स्टोर करना मुश्किल बना देता है।
सितम्बर से नवंबर में सबसे ज्यादा रेट क्यों
सितंबर से नवंबर के बीच मांग तो तेज बनी रहती है लेकिन आपूर्ति कम हो जाती है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं। नवंबर में जब लेट खरीफ की फसल बाजार में आती है तब ही थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन इससे पहले प्याज के भाव उच्चतम स्तर देख चुके होते हैं। कभी-कभी असामान्य बारिश या सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्याज की फसल पर असर पड़ता है। उदाहरण के लिए, खरीफ की फसल में बेमौसम बारिश या अधिक गर्मी प्याज की पैदावार को नुकसान पहुंचा सकती है।
तेजी का किसानों को कितना फायदा
दोस्तो यह तो हो गया प्याज के बाजार की तेजी मंदी का मोटा मोटा गणित। आपने देखा ही होगा कि जब प्याज की कीमतें बहुत अधिक बढ़ जाती हैं, तो सरकार निर्यात पर पाबंदी लगाने, भंडारण सीमा निर्धारित करने और स्टॉक रिलीज जैसे कदम उठाती है। लेकिन ये कदम आमतौर पर तब उठाए जाते हैं जब कीमतें पहले से ही काफी बढ़ चुकी होती हैं। प्याज की आपूर्ति में दिक्कतें आने का एक कारण वितरण प्रणाली भी है जिस में सुधार की आवश्यकता है। यह वितरण प्रणाली ही है जिसके चलते बढ़ी हुई कीमतों का फायदा किसान को ना मिलकर अन्य मार्केट के सहभागियों को मिलता है। किसानों से बाजार तक प्याज पहुंचने में बिचौलियों की भूमिका भी कीमतों पर प्रभाव डालती है। इन्हीं सभी कारणों के मिलाजुलते प्रभाव के कारण हर साल सितंबर से नवंबर के बीच प्याज की कीमतें तो बढ़ती हैं लेकिन किसान को इसका पूरा फायदा नहीं मिलता। जैसे ही किसान की नयी फ़सल बाजार में आती है भाव एकाएक नीचे चले जाते है।
 प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध
प्याज की कीमतें देशभर में एक संवेदनशील मुद्दा हैं, जिससे सरकारें भी चिंतित रहती हैं। प्याज की बढ़ती कीमतें राजनीतिक मुद्दा बन जाती हैं और जनता में असंतोष बढ़ाती हैं, जिसके कारण सरकारें अक्सर प्याज की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न कदम उठाती हैं। इस साल प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी का मुख्य कारण फसल खराब होना है।
सितंबर में प्याज की फसल पर सूखे या बारिश का असर होता है, जिससे इसकी आवक पर प्रभाव पड़ता है। इसी कारण प्याज की कीमतें अक्सर इस समय बढ़ने लगती हैं। लगातार फसल की उपलब्धता होने के बावजूद, मौसम और सप्लाई चेन में अवरोध प्याज की कीमतों को प्रभावित करते हैं।
नियंत्रित नहीं हो पाती प्याज की कीमत
प्याज की कीमतें हर साल सरकार के प्रयासों के बावजूद नियंत्रित नहीं हो पातीं। सरकार प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाती है, स्टॉक पर रोक लगाती है, और सरकारी एजेंसियां सस्ते दामों पर प्याज की बिक्री करती हैं। फिर भी, प्याज की कीमतें अक्सर बढ़ जाती हैं और आम जनता को परेशानी होती है। इस साल भी ऐसा ही होता नजर आ रहा है,
इस बार प्याज के दाम बढ़ने के कारण:
 कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों में खरीफ के प्याज की उपज इस समय बाजार में आती है। लेकिन भारी बारिश के चलते इन सभी राज्यों में लगभग 50% फसल खराब हो गई है। महाराष्ट्र में भारी बारिश के कारण पुराने स्टॉक की गुणवत्ता पर भी असर पड़ा है, जिससे प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी शुरू हो गई है।
कुछ ही दिनों मे हुई प्याज की कीमत दुगनी
महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित लासलगांव, देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी है, और यहां पिछले 15 दिनों में प्याज की कीमतों में दोगुने से ज्यादा की वृद्धि देखने को मिली है। मई के अंत तक जो प्याज 1600 रुपए प्रति क्विंटल था, वह अब 3000 से 4000 रुपए प्रति क्विंटल पहुच चुका है है। नागपुर की कामठी मंडी में प्याज का न्यूनतम दाम 3000, अधिकतम 4000 और औसत दाम 3500 रुपये प्रति क्विंटल रहा. अकोला की मंडी में प्याज का न्यूनतम दाम 1500, अधिकतम 3000 और औसत दाम 2500 रुपये प्रति क्विंटल रहा.वही राहुरी की मंडी में प्याज का न्यूनतम दाम 2000, अधिकतम 3300 और औसत दाम 1750 रुपये प्रति क्विंटल रहा. मुंबई की मंडी में प्याज का न्यूनतम दाम 2400, अधिकतम 3100 और औसत दाम 2750 रुपये प्रति क्विंटल रहा. इसका असर खुदरा बाजार में भी दिखाई दे रहा है, जिससे आम जनता को अधिक दाम चुकाने पड़ रहे हैं।

आवक पर असर: इंदौर मंडी में लगभग 35 से 40 हज़ार कट्टो की आवक बनी हुई है जो की और दिनों के मुकाबले बहुत कम है इस हफ्ते भी आवक 35 से 40 हजार कट्टे के बीच में ही आवक रही है अब कम होने का एक लाभ यह भी है कि प्याज पाइपलाइन मे प्याज कम हो जाने से प्याज की कीमतों मे भी फरक देखने को मिल रहा है  बोर्ड के आंकड़े यह भी बता रहे हैं कि राज्य की अधिकांश मंडियों में आवक बहुत कम हो गई है. 28 जून को राज्य की सिर्फ चार मंडियों में 10000 क्विंटल से अधिक प्याज की आवक हुई. कई मंडियां तो ऐसी हैं जिनमें सिर्फ 100, 200 क्विंटल या उससे भी कम प्याज बिकने को आया.नागपुर की कामठी मंडी में 28 जून को सिर्फ 24 क्विंटल प्याज की आवक हुई पिंपलगांव बसवंत में 13,500, पुणे में 10,563, सोलापुर में 11,820 और राहुरी में 20,938 क्विंटल मुंबई की मंडी में  5752 ,अकोला की मंडी में  362 क्विंटल क्विंटल प्याज की आवक हुई.

कब आएगी प्याज की नई फसल
प्याज की नई फसल अक्तूबर नवंबर में बाजार में आएगी, खासकर महाराष्ट्र से। हालांकि, भारी बारिश के कारण इस फसल पर भी असर पड़ा है, लेकिन इसके बाजार में आने से प्याज की कीमतों में कुछ कमी आने की संभावना है।
प्याज की कीमतों में वृद्धि के ऐतिहासिक उदाहरण
1.    1980: पहली बार प्याज की कीमतों में जबरदस्त उछाल।
2.    1998: दिल्ली में प्याज की कीमतें राजनीतिक मुद्दा बनीं।
3.    2010: प्याज की कीमतें फिर बढ़ीं।
4.    2013: कई जगहों पर प्याज 150 रुपए किलो तक बिका।
5.    2024: प्याज की कीमतों ने एक बार फिर लोगों को रुलाया।
त्योहारी सीजन और जमाखोरी
हर साल त्योहारी सीजन से पहले जमाखोर प्याज की जमाखोरी करने लगते हैं, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं। इसके अलावा, बारिश, सूखा और बाढ़ जैसे प्राकृतिक कारण भी कीमतों में वृद्धि का कारण बनते हैं।
प्याज की बुआई और बाजार में आने का साइकल
मई के बाद: अगली फसल अक्टूबर में आती है, जिससे अगस्त-सितंबर में प्याज की आवक कम हो जाती है और कीमतें बढ़ जाती हैं।
स्टोरेज की समस्या: उचित भंडारण की कमी के कारण प्याज सड़ जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत में सिर्फ 2% प्याज का भंडारण होता है, बाकी 98% खुले में रखा जाता है, जिससे बारिश में प्याज सड़ने लगता है।
प्याज के भविष्य के बारे में चर्चा
इस वर्ष प्याज की कीमतों में तूफानी तेजी आ सकती है, खासकर अगर उत्पादन में कमी और भंडारण की समस्याएँ बनी रहती हैं। सरकारी नीतियों, निर्यात की स्थिति, और आगामी फसल की बुआई के परिणामस्वरूप बाजार भाव में बदलाव आ सकता है। प्याज के व्यापारियों और उपभोक्ताओं को इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बनानी चाहिए।
इस वर्ष प्याज का उत्पादन पिछले वर्षों की तुलना में कम होने जा रहा है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और अन्य प्रमुख प्याज उत्पादक राज्यों में खराब मौसम के कारण फसल खराब हुई है: नवंबर-दिसंबर में धुंध के कारण 30-40% फसल खराब हो गई। पानी की कमी के कारण लगभग 30% तक फसल का रकबा घट गया।
फसल के रकबे में वृद्धि सम्भव
पिछले सालों की तुलना में इस बार प्याज का रकबा बढ़ सकता है, क्योंकि किसानों ने इस बार अधिक भूमि पर प्याज की बुआई करने का मन बनाया है। वर्तमान ऊँचे भाव को देखते हुए किसान आगामी फसल के लिए अधिक उत्साहित हो सकते हैं।
भारत में प्याज की खपत
भारत में प्याज की खपत बहुत अधिक है। शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के खानों में प्याज का उपयोग होता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, प्रति हजार व्यक्ति में से 908 लोग प्याज खाते हैं।
राज्यवार प्याज का उत्पादन कितना है
भारत में 2.3 करोड़ टन प्याज का उत्पादन होता है। इसमें महाराष्ट्र में 36%, मध्य प्रदेश में 16%, कर्नाटक में 13%, बिहार में 6%, और राजस्थान में कुल उत्पादन का 5% प्याज पैदा किया जाता है।

वर्तमान स्थिति और भविष्य की रणनीति
प्याज की स्टॉकिंग की जा रही है, जिससे कीमतों में और वृद्धि हो सकती है। सरकार ने प्याज के निर्यात से बैन हटा दिया है, लेकिन 40% एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी है। इससे निर्यात करने में कठिनाई हो रही है। ये फसलें भी बाजार में उतार-चढ़ाव का सामना कर रही हैं। आलू लहसुन और अदरक की कीमतें भी बढ़ रही हैं, जिससे किसानों के लिए फायदेमंद स्थिति बन रही है। ये फसले भी प्याज की तरह उपर नीचे होती रहती है नवंबर में नई फसल के बाजार में आने से कीमतों में कमी आ सकती है, लेकिन उत्पादन की कमी और भंडारण की समस्या के कारण यह सुधार सीमित हो सकता है। आगामी जुलाई-अगस्त में खरीफ की नई फसल की बुआई शुरू होगी, जिससे बाजार में प्याज की आवक बढ़ सकती है।

आगे प्याज में तेजी आएगी या मंदी
प्याज के बाजार भाव आगामी महीनों में बढ़ सकते हैं, विशेषकर यदि निर्यात जारी रहता है और भंडारण समस्याएँ बनी रहती हैं। अगर सरकार नई फसल आने के बाद एक्सपोर्ट ड्यूटी कम करती है या बैन लगाती है, तो बाजार में स्थिरता आ सकती है। नई सरकार बनने के बाद प्याज के निर्यात और मूल्य नियंत्रण के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं, यह बाजार के भाव को प्रभावित करेगा। चुनावी सीजन में सरकार किसानों को राहत देने के लिए नई नीतियाँ लागू कर सकती है, जिससे प्याज की कीमतें नियंत्रित हो सकती हैं। मौजूदा हालात को देखें तो आने वाले 3 महीने तक नया माल आने वाला नहीं और इसी प्याज से काम चलाना होगा। इसलिए सितम्बर आते आते प्याज के भाव में तगड़ी तेजी बन सकती है

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।