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40-50 दिन की आलू की फ़सल में करें यह काम | मिलेगा बम्पर उत्पादन

40-50 दिन की आलू की फ़सल में करें यह काम | मिलेगा बम्पर उत्पादन
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किसान भाइयों, आलू एक बहुत ही महत्वपूर्ण और आमतौर पर उगाई जाने वाली फसल है, जो न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में मुख्य भोजन के रूप में खाई जाती है। उपभोग की दृष्टि से आलू देश की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल के रूप में जानी जाती है। हमारे देश में आलू की खेती एक नगदी फसल के रूप में बड़े पैमाने पर की जाती है। आलू की फसल को गरीबों का मित्र कहा जाता है। इसकी बुवाई रबी सीजन में अक्टूबर माह में की जाती है तथा कम भूमि से भी अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो जाता है, लेकिन आलू के उत्पादन को प्रभावित करने में रोग और कीट का बहुत अधिक योगदान है। रोगों एवं कीटों के प्रभाव से उत्पादन में कमी आने के साथ ही साथ फसल उपज की गुणवत्ता में भी कमी आती है, जिससे उपज का बाजार भाव भी कम मिलता है। आलू को सब्जियों का राजा भी कहा जाता है। आलू की खेती में सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, सही समय पर और सही तरीके से उर्वरक (fertilizers) का इस्तेमाल करना, ताकि फसल का उत्पादन अच्छा हो और उसे किसी भी प्रकार के रोग (diseases) और कीट (pests) से बचाया जा सके। खासतौर से, आलू की फसल के 40-45 दिन की अवस्था में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह समय आलू की फसल की विकासात्मक अवस्था का है। इस समय पर सही उर्वरक और स्प्रे का इस्तेमाल करने से आलू की गुणवत्ता और पैदावार पर सीधा असर पड़ता है। आलू की फसल को सही से उगाने के लिए हमें यह जानना जरूरी है कि 40-45 दिन की अवस्था में कौन-कौन से उर्वरक, खाद, और स्प्रे का प्रयोग करना चाहिए। इस रिपोर्ट में हम विस्तार से समझेंगे कि इस समय पर किस प्रकार के फर्टिलाइज़र और स्प्रे का इस्तेमाल करें, ताकि हमारी आलू की फसल स्वस्थ रहे और अच्छे पैदावार मिले। इन सब बातों पर गहराई से जानने के लिए चलिए पढ़ते हैं आज की यह रिपोर्ट।

सही उर्वरक चयन
किसान भाइयों, आलू की फसल के लिए उर्वरक का चयन करते वक्त सबसे पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि मिट्टी की अवस्था और फसल की आवश्यकता के अनुसार उर्वरक का चुनाव किया जाए। आलू की फसल को नाइट्रोजन (Nitrogen), फास्फोरस (Phosphorus), और पोटाश (Potash) की आवश्यकता होती है, क्योंकि ये पौधों के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण तत्व हैं। नाइट्रोजन आलू की हरी पत्तियों और तनों के विकास के लिए आवश्यक है। इस तत्व का सही मात्रा में प्रयोग करने से आलू की पत्तियां स्वस्थ रहती हैं और फसल को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है। अगर हम फास्फोरस की बात करें तो फास्फोरस आलू की जड़ प्रणाली के विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक है। इससे आलू की जड़ों में मजबूती आती है और आलू का आकार भी बड़ा होता है। साथियों, आलू की फसल के लिए पोटाश की भूमिका भी अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। पोटाश आलू के विकास में मदद करता है, खासतौर से आलू के कंद (tubers) की गुणवत्ता और आकार को बेहतर बनाने में। जिसके कारण हमें आलू का बाजार में अच्छा खासा भाव मिल सकता है। उर्वरक की सही मात्रा और समय पर उपयोग से आलू की फसल का विकास तेज़ होता है और उत्पादन में वृद्धि होती है। आमतौर पर 40-45 दिन की अवस्था में आलू को नाइट्रोजन का हल्का उपयोग करना चाहिए, जिससे फसल की वृद्धि बनी रहे। आलू की फसल में जैविक खादों की भी अहम भूमिका रहती है, क्योंकि यह मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है और पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है। विशेष रूप से गोबर की खाद (cow dung) या कंपोस्ट (compost) का उपयोग करने से मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है, जिससे मिट्टी की संरचना सुधरती है। यह पौधों की जड़ प्रणाली को स्वस्थ और मजबूत बनाता है। खाद का मिश्रण मिट्टी में मिलाकर दिया जाता है ताकि यह सही तरीके से पौधों द्वारा अवशोषित किया जा सके। आलू की फसल में खाद देने से मिट्टी की नमी बनाए रखने में भी मदद मिलती है, जिससे पानी की बचत होती है। हालांकि, अधिक खाद का उपयोग करने से भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि इससे मिट्टी में संतुलन बिगड़ सकता है। इसलिए, खाद का सही अनुपात और समय पर उपयोग आवश्यक है।

कीट और रोग
किसान भाइयों, आलू की फसल में रोग (diseases) और कीट (pests) का हमला आम बात है, जो फसल की गुणवत्ता को खराब कर सकता है। दुनिया भर में लगभग सात जीवाणु जनित रोग आलू को प्रभावित करते हैं और विशेष रूप से कंदों को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं, जो पौधे का आर्थिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। जीवाणुजनित विल्ट और बैक लेग को सबसे महत्वपूर्ण रोग माना जाता है, जबकि आलू की रिंग रॉट, पिंक आई और कॉमन स्कैब मामूली रोगों की श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा, झुलसा रोग, भूरा सड़न, सामान्य पापड़ी और चूर्ण पापड़ी जो आलू की फसल को अत्यधिक प्रभावित कर सकते हैं। इस अवस्था में आलू की फसल में इस समय पर स्प्रे का सही इस्तेमाल फसल को बचाने के लिए बहुत जरूरी है। आलू की फसल के 40-45 दिन की अवस्था में फसल में फफूंद (fungus) और कीटों (pests) का आक्रमण हो सकता है, जिससे आलू की फसल को नुकसान हो सकता है। रासायनिक कीटनाशक और फफूंदनाशक का प्रयोग आलू की फसल में करने से कीट और रोग नियंत्रित रहते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख स्प्रे हैं, जो 40-45 दिन की अवस्था में उपयोग किए जा सकते हैं। स्प्रे करने से पहले, आपको सही समय पर और सही मात्रा में स्प्रे करना बहुत जरूरी है।

कीटों और रोगों से रोकथाम के उपाय
किसान भाइयों, आलू की फसल में कीटों की रोकथाम के लिए, 1.5 मिलीलीटर क्विनॉलफ़ॉस को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। आलू की फसल को अन्य रोगों से बचने के लिए आप टेबुकाज़ोल (25%) 1 मिलीलीटर दवा को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। आलू में झुलसा रोग के अलावा, जिंक की कमी रहने पर पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। इस स्थिति में किसानों को अपने खेतों में सिलेक्टेड जिंक का छिड़काव करना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि किसानों को अपने पीले पड़े आलू की फसलों को बचाने के लिए 1 ग्राम जिंक को 1 लीटर पानी में घोलकर खेतों में छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, आप कांप्लेक्स कीटनाशक जैसे इमिडाक्लोप्रिड या क्लोरपाइरीफोस, जो आलू की फसल को कीटों से बचाते हैं, का भी उपयोग कर सकते हैं। आलू की फसल को फफूंद जनित बीमारियों से बचने के लिए फफूंदनाशक बेंज़ोमिडाज़ोल या मेन्कोज़ेब का इस्तेमाल किया जा सकता है, जो आलू में फफूंद से होने वाले रोगों से बचाते हैं। स्प्रे करने से पहले, आपको इस बात का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है कि सही समय पर और सही मात्रा में स्प्रे करना बहुत जरूरी है। यदि स्प्रे अधिक किया गया, तो यह आलू की फसल को नुकसान पहुंचा सकता है, और यदि कम किया गया, तो कीटों और रोगों से पूरी तरह से छुटकारा नहीं पाया जा सकता। इसलिए, स्प्रे का सही तरीका जानना और समय पर इस्तेमाल करना चाहिए।

सिंचाई व्यवस्था
 किसान साथियों, आलू की फसल को सही मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, ताकि पौधों का विकास सुचारू रूप से हो। आलू के कंद के अच्छे विकास के लिए मिट्टी की नमी का बनाए रखना महत्वपूर्ण है। 40-45 दिन के बाद आलू को ज्यादा पानी देने की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इस समय आलू के कंद का आकार बढ़ने लगता है। ज्यादा पानी देने से आलू के कंद सड़ सकते हैं, और यह फसल को नुकसान पहुंचा सकता है।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट के सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।