गेहूं में आपको 80 मण उत्पादन क्यू नहीं मिलता | 90% किसानों को नहीं पता | बढ़िया उत्पादन लेना है तो ये रिपोर्ट जरूर पढ़ें
अगर गेहूं की अधिक पैदावार लेनी है तो सल्फर का करें सही उपयोग, जानिए इस रिपोर्ट में।
किसान भाइयों, गेहूं की बिजाई का लगभग 80% कार्य पूरा हो चुका है। जबकि कुछ किसान साथी अभी भी गेहूं की बुवाई में जोरों-शोरों से लगे हुए हैं। बुवाई के बाद किसानों का अगला टारगेट होता है अपनी फसल को बेस्ट पोषण देना और बढ़िया से बढ़िया उत्पादन लेना । लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हम पोषक तत्वों और खादों का अनुपात गड़बड़ कर देते हैं जिसके चलते फायदा होने की बजाय नुकसान हो जाता है । दोस्तों गेहूं की पैदावार में सुधार के लिए जो विभिन्न कृषि तत्व आवश्यक हैं, उनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का तो खास महत्व है ही, साथ ही एक और पोषक तत्व है जिसका योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और वह है सल्फर। हम अक्सर गेहूं की खेती के दौरान सल्फर को अनदेखा कर देते हैं, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, जो न केवल फसल की गुणवत्ता को बढ़ाता है, बल्कि इसकी रोग प्रतिकारक क्षमता, प्रोटीन निर्माण और मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार करता है। इस रिपोर्ट में हम विस्तार से समझेंगे कि गेहूं में सल्फर का उपयोग क्यों और कैसे किया जाता है, इसके लाभ क्या हैं, और इसे सही तरीके से उपयोग करने के लिए कौन सी महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखनी चाहिए।
सल्फर के प्रकार
किसान साथियों, सल्फर दो प्रमुख प्रकारों में उपलब्ध होता है, जो विभिन्न परिस्थितियों और मिट्टी के प्रकार के आधार पर उपयोग किए जाते हैं। ये इस प्रकार हैं:
1.सल्फेट सल्फर (Sulfate Sulfur)
दोस्तों, सल्फेट सल्फर गेहूं की फसल के लिए सबसे प्रभावी और उपयोगी प्रकार है। यह सल्फर पौधों के लिए तुरंत उपलब्ध होता है, क्योंकि यह मिट्टी में आसानी से घुलकर पौधों द्वारा अवशोषित हो जाता है। सल्फेट सल्फर नाइट्रोजन और फास्फोरस के साथ मिलकर पौधों के लिए आवश्यक अमीनो एसिड और प्रोटीन का निर्माण करने में सहायक होता है। इसके अलावा, यह मिट्टी के pH को भी संतुलित करता है और इसके द्वारा पौधों को सही पोषक तत्व मिलते हैं।
2.एलिमेंटल सल्फर (Elemental Sulfur)
किसान भाइयों, यह सल्फर मिट्टी में धीरे-धीरे घुलता है और सल्फेट में बदलता है। इसका उपयोग उन खेतों में किया जाता है, जहां पहले से सल्फर की कमी है और उसे धीरे-धीरे आपूर्ति की आवश्यकता होती है। यह खेतों में लंबे समय तक सल्फर का स्रोत प्रदान करता है, जिससे पौधों की निरंतर आवश्यकता पूरी होती रहती है।
दोस्तों, इन दोनों प्रकारों के सल्फर का उपयोग मिट्टी की स्थिति और फसल की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। जहां मिट्टी में सल्फर की कमी होती है, वहां एलिमेंटल सल्फर का उपयोग किया जाता है, जबकि अन्य मामलों में सल्फेट सल्फर को प्राथमिकता दी जाती है।
गेहूं में सल्फर का महत्व
साथियों, गेहूं की फसल में सल्फर का प्रमुख कार्य प्रोटीन के निर्माण में सहायता करना है। सल्फर अमीनो एसिड और प्रोटीन के निर्माण में मदद करता है, जिससे गेहूं के दानों में प्रोटीन की गुणवत्ता और मात्रा में वृद्धि होती है। इस प्रकार, सल्फर की उचित आपूर्ति से न केवल गेहूं का उत्पादन बढ़ता है, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी सुधरती है। अधिक प्रोटीन वाले गेहूं का बाजार में अधिक मूल्य मिलता है और किसानों की आय भी बढ़ती है। इसके अलावा, सल्फर गेहूं के पौधों की रोग प्रतिकारक क्षमता को भी बढ़ाता है। सल्फर पौधों को विभिन्न रोगों, जैसे पीला मोज़ेक, धब्बा रोग, और पत्तों के रोगों से बचाता है। इसके अतिरिक्त, यह कीटों के प्रति भी पौधों को अधिक प्रतिरोधक बनाता है। रोगों और कीटों से बची हुई फसल की गुणवत्ता अन्य फसलों के मुकाबले अधिक बेहतर होती है। इन गुणों के अलावा, सल्फर का एक और महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह मिट्टी के pH स्तर को नियंत्रित करता है। भारत के कई हिस्सों में मिट्टी का pH उच्च होता है, जिससे पौधों को पोषक तत्वों का अवशोषण करने में कठिनाई होती है। सल्फर मिट्टी के pH को नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे पौधों को अधिक पोषक तत्व मिलते हैं और वे बेहतर तरीके से विकसित होते हैं। सल्फर गेहूं के दानों का आकार और गुणवत्ता दोनों में सुधार करता है। यह गेहूं के दानों को अधिक भरपूर और वजनदार बनाता है।
सल्फर की सही मात्रा
साथियों, सल्फर का उपयोग करते समय इसकी सही मात्रा का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। इसकी अत्यधिक मात्रा से पौधों को नुकसान हो सकता है, जबकि इसकी कमी से उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में गिरावट आ सकती है। ऊतक विश्लेषण से शुष्क पदार्थ में सल्फर की सांद्रता का पता चलता है। ज़्यादातर फसलों के लिए सल्फर का स्तर शुष्क पदार्थ के 0.3% से ज़्यादा होना चाहिए। गेहूं की फसल में सल्फर का इस्तेमाल प्रति एकड़ करीब 10 किलोग्राम पाउडर के हिसाब से करना चाहिए। अगर घुलनशील सल्फर का इस्तेमाल करना हो, तो 3 ग्राम सल्फर को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। यह मात्रा गेहूं की फसल में सल्फर की सामान्य मात्रा है।
खेत में मिट्टी की आवश्यकता और फसल की जरूरत को देखते हुए यह मात्रा थोड़ी बहुत कम या अधिक भी हो सकती है। इसके लिए आप बुवाई से पहले मिट्टी की जांच अवश्य करवा लें। सल्फर को अलग-अलग प्रकार से मिट्टी में मिलाया जाता है, और इसका चयन मिट्टी की स्थिति पर निर्भर करता है।
सल्फेट सल्फर का उपयोग आमतौर पर फसल की बुवाई से पहले उर्वरक के रूप में किया जाता है। इसे मिट्टी में मिलाने से पौधों को तुरंत सल्फर प्राप्त होता है, जो फसल की शुरुआती विकास प्रक्रिया को बढ़ाने में मदद करता है। वहीं एलिमेंटल सल्फर को मिट्टी में मिलाकर पानी देने से इसकी उपलब्धता सुनिश्चित होती है। यह धीरे-धीरे घुलता है और पौधों को लंबे समय तक सल्फर प्रदान करता है। इसे उन खेतों में उपयोग करना उपयुक्त होता है, जहां सल्फर की कमी हो और इसकी धीरे-धीरे आपूर्ति जरूरी हो।
पौधों में सल्फर की कमी के लक्षण
किसान भाइयों, जब भी बढ़ते पौधों में सल्फर की मात्रा आवश्यक स्तर से कम हो जाती है, तो पौधों पर सल्फर की कमी के दृश्य लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ऐसे लक्षणों का दिखना एक गंभीर स्थिति का संकेत देता है, क्योंकि ऐसे लक्षण दिखाई दिए बिना भी फसल की पैदावार कम हो सकती है। सल्फर की कमी के लक्षण कई मायनों में नाइट्रोजन की कमी के लक्षणों से मिलते-जुलते हैं। पत्तियाँ हल्के पीले या हल्के हरे रंग की हो जाती हैं। नाइट्रोजन की कमी के विपरीत, सल्फर की कमी के लक्षण सबसे पहले छोटी पत्तियों पर दिखाई देते हैं, और नाइट्रोजन के इस्तेमाल के बाद भी बने रहते हैं। सल्फर की कमी वाले पौधे छोटे और पतले होते हैं, जिनकी वृद्धि धीमी होती है। अनाजों में परिपक्वता देर से होती है। जब सल्फर की कमी के लक्षण की पुष्टि हो जाए, तो आसानी से उपलब्ध सल्फर युक्त सामग्री के माध्यम से मिट्टी पर छिड़काव किया जाना चाहिए।
सल्फर का रूपांतरण
किसान भाइयों, पौधे सल्फर को सीधे अवशोषित नहीं कर पाते; उन्हें इसे सल्फेट के रूप में ही ग्रहण करना होता है। यह रूपांतरण मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा किया जाता है, जो सल्फर को सल्फेट में बदलते हैं। यदि मिट्टी में पर्याप्त नमी और सूक्ष्म जीवाणु हों, तो सल्फर आसानी से सल्फेट में परिवर्तित हो जाता है और पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित हो जाता है। इसलिए, बेंटोनाइट सल्फर का प्रयोग बुवाई के समय करने से यह सुनिश्चित होता है कि पौधे को सल्फर की निरंतर आपूर्ति मिलती रहेगी, जिससे उनके स्वास्थ्य और विकास में सुधार होगा। सल्फर रूपांतरण में दो सूक्ष्मजीवी प्रक्रियाएं शामिल हैं जो सल्फर को विभिन्न रूपों में परिवर्तित करती हैं: विविक्त सल्फेट अपचयन और सल्फर ऑक्सीकरण। विभेदक सल्फेट कमी कम ऑक्सीजन की स्थिति में होती है। इस प्रक्रिया के दौरान, बैक्टीरिया और आर्किया (जिन्हें अक्सर सल्फेट-कम करने वाले सूक्ष्म जीव कहा जाता है) सल्फेट (SO4) को हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) में बदल देते हैं, जिसमें सड़े हुए अंडे की खास गंध होती है। यह प्रतिक्रिया बैक्टीरिया और आर्किया को ऑक्सीजन के बजाय सल्फेट का उपयोग करके सांस लेने की अनुमति देती है। सल्फर ऑक्सीकरण एरोबिक और एनारोबिक दोनों स्थितियों में हो सकता है। इस प्रक्रिया में, बैक्टीरिया और आर्किया मौलिक सल्फर (SO) या सल्फाइड (S2-) को सल्फेट (SO4) में बदल देते हैं। सल्फर ऑक्सीकरण में सक्षम कुछ सूक्ष्म जीव ऑटोट्रॉफ़ हैं, जिसका अर्थ है कि वे सीधे वायुमंडल से CO2 को ठीक कर सकते हैं। पोषक चक्रण मॉडल में सल्फर परिवर्तन पर विचार किया जाता है क्योंकि यह पौधों और मिट्टी के जीवन के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है। ध्यान दें कि कार्बनिक सल्फर का सल्फेट में रूपांतरण खनिजीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा है। विभेदक सल्फेट कमी और सल्फर ऑक्सीकरण का अनुमान ऊष्मायन विधियों या विशिष्ट माइक्रोबियल कार्यात्मक जीन की प्रचुरता को मापने के माध्यम से लगाया जा सकता है।
नोट:-रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट के सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।