मार्च अप्रैल में मूंग व उड़द की बुवाई करने का सबसे सही समय कब | कौन सी किस्म देगी बेस्ट उत्पादन
किसान साथियों गेहूं और सरसों की फसल कटने के बाद खेतों को अगली फसल के लिए तैयार करना जरूरी होता है। यह समय किसानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है क्योंकि सही फैसले लेने से अगली फसल की पैदावार और गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इस अवधि में किसान मूंग, उड़द, अरहर, बाजरा, सोयाबीन, मक्का, ज्वार जैसी खरीफ फसलें या पशुओं के लिए चारे की फसलें (जैसे ज्वार-चरी, बरसीम) उगा सकते हैं।
दोस्तों, गर्मी के मौसम में मूंग और उड़द की खेती पारंपरिक खरीफ और रबी फसलों के अतिरिक्त एक तीसरी फसल के रूप में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इससे किसानों को अतिरिक्त आय का अवसर मिल रहा है और भूमि की उत्पादकता बढ़ रही है। रबी फसल की कटाई के तुरंत बाद मूंग और उड़द की बुवाई शुरू हो जाती है, जिससे खेत खाली नहीं रहता और मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, मूंग और उड़द की उन्नत किस्में 63 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं, और इनकी बुवाई के लिए 10 मार्च से 10 अप्रैल तक का समय सर्वोत्तम माना जाता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि इन फसलों के लिए खेत की तैयारी, बीज चयन, उर्वरक प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण के सही तरीके क्या हैं।
खेत की तैयारी और मिट्टी का चयन
मूंग और उड़द की खेती के लिए उपयुक्त खेत की तैयारी अत्यंत आवश्यक है। इन फसलों की अच्छी पैदावार के लिए जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अनुकूल मानी जाती है। उत्तर भारत की बलुई दोमट मिट्टी और मध्य भारत की लाल एवं काली मिट्टी में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
बुवाई से पहले खेत की नमी बनाए रखना जरूरी है ताकि बीजों का अंकुरण सही हो सके। खेत को भुरभुरा बनाने के लिए 2-3 बार जुताई करनी चाहिए और प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए, जिससे मिट्टी की नमी संरक्षित रहे। जल संचयन की क्षमता बढ़ाने के लिए अंतिम जुताई से पहले पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद डालना फायदेमंद होता है।
बुवाई का सही समय और उन्नत किस्में
मूंग की बुवाई के लिए 10 मार्च से 10 अप्रैल तक का समय उपयुक्त होता है, जबकि उड़द की बुवाई 15 फरवरी से 15 मार्च के बीच करनी चाहिए। देरी होने की स्थिति में 60-65 दिनों में पकने वाली किस्मों की बुवाई 15 अप्रैल के बाद भी की जा सकती है।
उन्नत मूंग किस्मों में पूसा 1431, पूसा 9531, पूसा रतना, पूसा 672, पूसा विशाल, वसुधा, सूर्या, विराट, सम्राट और आर.एम.जी. 62 प्रमुख हैं।
वहीं, उन्नत उड़द किस्मों में पीडीयू 1, के.यू.जी. 479, कोटा उड़द 4, इंदिरा उड़द प्रथम, हरियाणा उड़द-1, उत्तरा, पंत उड़द 31, माश 1008 और सुजाता शामिल हैं।
ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की खेती के लिए 20-25 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। बुवाई के दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और बीजों को 4-5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। सीड ड्रिल की मदद से पंक्तियों में बुवाई करने से फसल का विकास बेहतर होता है और पौधों को उचित पोषक तत्व मिलते हैं।
उर्वरक प्रबंधन और पोषक तत्वों की आवश्यकता
मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का संतुलित उपयोग
मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का उचित मात्रा में उपयोग करना न केवल फसलों की उपज को बढ़ाने में सहायक होता है, बल्कि इससे भूमि की उर्वरता भी बनी रहती है और अनावश्यक लागत से बचा जा सकता है। मूंग और उड़द जैसी दलहनी फसलों के लिए सही पोषक तत्वों का चयन करना आवश्यक होता है, जिससे उनकी बढ़वार अच्छी हो और फली बनने की प्रक्रिया मजबूत हो।
मूंग की फसल के लिए उर्वरक प्रबंधन
मूंग की अच्छी उपज के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को सही मात्रा में उपलब्ध कराना जरूरी होता है। प्रति हेक्टेयर 10-15 किग्रा नाइट्रोजन, 45-50 किग्रा फॉस्फोरस, 50 किग्रा पोटाश और 20-25 किग्रा सल्फर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन फसल की प्रारंभिक वृद्धि में सहायक होता है, जबकि फॉस्फोरस जड़ के विकास और फूल बनने की प्रक्रिया में मदद करता है। पोटाश पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और सल्फर प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होता है। यदि मिट्टी में जिंक की कमी हो तो 20 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर का उपयोग करना चाहिए, जिससे पौधों की वृद्धि संतुलित बनी रहे और फसल में पोषक तत्वों की कमी न हो।
उड़द की फसल के लिए उर्वरक प्रबंधन
उड़द की खेती में पोषक तत्वों की संतुलित आपूर्ति बहुत महत्वपूर्ण होती है। प्रति हेक्टेयर 15 किग्रा नाइट्रोजन, 45 किग्रा फॉस्फोरस और 20 किग्रा सल्फर का प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन से पौधों की पत्तियों और तनों की वृद्धि होती है, जबकि फॉस्फोरस से जड़ों का अच्छा विकास होता है और फली बनने की प्रक्रिया तेज होती है। सल्फर प्रोटीन निर्माण में सहायक होता है, जिससे फसल का गुणवत्ता बेहतर होती है।
फली बनने की अवस्था में उड़द की फसल को अतिरिक्त पोषण देने के लिए 2% यूरिया के घोल का पर्णीय छिड़काव करना लाभकारी होता है। इससे पौधों को तुरंत आवश्यक नाइट्रोजन मिलती है, जिससे फली का विकास अच्छा होता है और दाने भरपूर बनते हैं। सही समय पर संतुलित उर्वरक प्रबंधन अपनाने से मूंग और उड़द की फसल का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बेहतर होती हैं।
खरपतवार नियंत्रण और रोग प्रबंधन
खरपतवार फसल की प्रारंभिक वृद्धि के पहले 4-5 सप्ताह में सबसे अधिक समस्या पैदा करते हैं, क्योंकि वे मुख्य फसल के साथ आवश्यक पोषक तत्वों, नमी और प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। यदि इनका समय पर प्रबंधन नहीं किया गया, तो फसल की वृद्धि प्रभावित हो सकती है और उत्पादन में भारी कमी आ सकती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए यांत्रिक और रासायनिक दोनों उपायों को अपनाया जा सकता है।
पहली सिंचाई के बाद खेत में निराई-गुड़ाई करना अत्यंत आवश्यक होता है। इससे न केवल खरपतवारों का नियंत्रण होता है, बल्कि मिट्टी में वायु संचार भी बेहतर होता है, जिससे पौधों की जड़ों का विकास मजबूत होता है। निराई-गुड़ाई करने से खेत की सतह पर मौजूद अतिरिक्त नमी वाष्पीकृत नहीं होती, जिससे मिट्टी में नमी का संतुलन बना रहता है।
रासायनिक नियंत्रण के लिए 2.5-3.0 मिलीलीटर खरपतवारनाशी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। यदि खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार अधिक हैं, तो एलाक्लोर (Alachlor) या फ्लूक्लोरालिन (Fluchloralin) जैसे प्रभावी रसायनों का प्रयोग किया जा सकता है। इन रसायनों का छिड़काव खरपतवारों के अंकुरण से पहले किया जाना चाहिए, ताकि वे उगने से पहले ही समाप्त हो जाएं और फसल को बेहतर बढ़वार मिले।
फसल को बीजborne और मृदाजनित रोगों से बचाने के लिए बीजोपचार अनिवार्य होता है। बीजोपचार करने से पौधों को प्रारंभिक अवस्था में सुरक्षा मिलती है, जिससे रोगों का प्रकोप कम होता है और पौधों की वृद्धि सुचारू रूप से होती है। बीजों को 2.5 ग्राम थीरम (Thiram) और 1 ग्राम कार्बेन्डाजीम (Carbendazim) प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। इससे फफूंद जनित रोगों जैसे उखटा रोग, जड़ सड़न और अंकुरण संबंधी समस्याओं से बचाव होता है।
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।