2024 में बासमती की ये किस्में आपको कर सकती है मालामाल | जानिए कोन सी किस्म देगी सबसे ज्याद फायदा
बासमती चावल दुनिया की प्रसिद्ध चावल किस्मों में से एक है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा, दिल्ली द्वारा विकसित की गई बासमती किस्म आज वैश्विक स्तर पर भारी मांग के कारण अपनी एक अलग पहचान बना चुकी है। हाल ही में खबर आई है कि पूसा बासमती की तीन नई किस्में विकसित की गई हैं, जो अत्यधिक उन्नत तकनीक की हैं और रोगमुक्त हैं। साथ ही, ये किस्में अधिक उपज देने वाली भी हैं। WhatsApp पर भाव देखने के लिए हमारा ग्रुप जॉइन करे
इससे भारतीय किसानों की चावल की उपज में वृद्धि होगी और अब उन्हें पेस्टीसाइड्स के छिड़काव की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। फरवरी में आयोजित आईएआरआई के एक समारोह में बताया गया कि भारत में बड़े स्तर पर बासमती धान की किस्मों की खेती की जा रही है। अकेले पूसा बासमती 1121 किस्म ही भारत के 95 प्रतिशत क्षेत्र में चावल का उत्पादन करती है। इसके अलावा, भारत में पूसा बासमती 1718 और 1509 की भी खेती की जाती है।
बासमती किस्म में बीमारी लगना सबसे बड़ी समस्या है
भारतीय किसानों के लिए बासमती किस्मों में रोग एक बड़ी समस्या बनकर उभर रही है। किसानों को इससे निपटने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव करना पड़ता है, जो महंगा साबित होता है। यदि पेस्टीसाइड्स का उपयोग न किया जाए, तो धान की फसल रोगों से प्रभावित हो जाती है और यह स्टैंडर्ड चावल नहीं रह जाते, जिसका बड़ा असर चावल के निर्यात पर पड़ता है। किसान बासमती धान में जीवाणु झुलसा रोग को नियंत्रित करने के लिए स्ट्रेप्टोसाइकलिन और झोका रोग के लिए हेक्साकोनाजोल, प्रोपीकोनाजोल अथवा ट्राईसाइकलोजोल जैसे रसायनों का इस्तेमाल करते हैं। 5750 रुपये में अपनी सरसों को बेचने के लिए लिंक पर क्लिक करे
बासमती आयातक देशों, खासकर यूरोपीय यूनियन ने बासमती चावल में इन रसायनों के उपयोग को लेकर चिंता जताई है। कई बार इन देशों के आयातकों ने मानकों के विपरीत होने के कारण बासमती चावल की खेपों को वापस लौटा दिया है। इसलिए, यह आवश्यक है कि बासमती चावल की अन्य किस्मों का विकल्प तलाशा जाए ताकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बासमती की प्रमुखता बनी रहे।
IARI ने विकसित की धान की तीन नई किस्में
बासमती की बादशाहत बरकरार रखने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा ने बासमती की तीन नई किस्में विकसित की हैं: पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885, और पूसा बासमती 1886। इन किस्मों की उपज गुणवत्ता शानदार है, और इन तीन प्रजातियों को लेकर अब किसानों में काफी उत्सुकता देखी जा रही है। बासमती धान से मिलने वाले फायदों के कारण ही हर साल बासमती का कृषि क्षेत्र लगभग 10 फीसदी की दर से बढ़ रहा है।
पूसा बासमती 1847 की खासियत
यह किस्म रोगमुक्त है और इसमें बैक्टीरियल ब्लाइट से लड़ने के लिए ब्रीडिंग के माध्यम से दो जीन जोड़े गए हैं। इसके अलावा, ब्लास्ट रोग से लड़ने के लिए भी दो जीन शामिल किए गए हैं। यह जल्दी पकने वाली अर्ध-बौनी बासमती चावल की किस्म है, जो लगभग 125 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। उपज की बात करें तो इसकी औसत उपज 22 से 23 क्विंटल प्रति एकड़ है, जबकि पंजाब के किसानों ने इस किस्म से 31 क्विंटल प्रति एकड़ तक उपज प्राप्त की है।
पूसा बासमती 1885 की खासियत
चावल की यह किस्म बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाली और स्वादिष्ट होती है। प्रजनन के माध्यम से जीवाणु प्लेग और बीमारी से लड़ने के लिए जीन भी डाले गए हैं। यह बासमती चावल की मध्यम आयु वाली किस्म है, जो 135 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 18.72 क्विंटल प्रति एकड़ है, हालांकि पंजाब में किसानों ने प्रति एकड़ 22 क्विंटल तक की पैदावार हासिल की है। 5750 रुपये में अपनी सरसों को बेचने के लिए लिंक पर क्लिक करे
पूसा बासमती 1886 की खासियत
यह किस्म भी ऊपर बताई गई दोनों किस्मों की तरह रोगमुक्त है और 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 18 क्विंटल प्रति एकड़ है।
कहा से खरीदें बीज
अगर आप बासमती की ये तीन किस्मों के बीज प्राप्त करना चाहते हैं तो आप बासमती निर्यात विकास फाउंडेशन (BEDF) मेरठ और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान IARI दिल्ली के बीज केंद्र से ये बीज प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा अगर आप सिरसा के आसपास रहते हैं तो आप 9991823203 पर कॉल करके महाबल का बीज़ भी लेक सकते हैं
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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।