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धान में यूरिया डालने से बढ़ जाता है यह रोग लगने का खतरा | जाने पूरी जानकारी इस रिपोर्ट में

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किसान साथियो कृषि विज्ञान केंद्र, करनाल के अध्यक्ष डॉ. महा सिंह जागलान ने किसानों को धान की फसल में अत्यधिक यूरिया डालने से सावधान किया है। उन्होंने बताया कि ज़्यादा यूरिया डालने से खेत में तो हरियाली बढ़ जाती है, लेकिन पत्ते नरम हो जाते हैं। नरम पत्ते कीटों के लिए आसान शिकार बन जाते हैं, जिससे फसल को नुकसान पहुंचता है। इसलिए किसानों को यूरिया का इस्तेमाल करते समय सावधानी बरतनी चाहिए और सिफारिश की गई मात्रा से अधिक यूरिया का उपयोग नहीं करना चाहिए।

धान में यूरिया कितनी मात्रा में डालना चाहिए
धान की फसल में यूरिया का इस्तेमाल करते समय किसानों को सावधानी बरतनी चाहिए। मोटे धान की खेती में प्रति एकड़ लगभग 50 किलो नाइट्रोजन (यूरिया) का इस्तेमाल किया जा सकता है। वहीं, बासमती धान के लिए यह मात्रा आधी, यानी 25 किलो प्रति एकड़ ही रखनी चाहिए। धान की फसल में यूरिया को दो बार डालना चाहिए। पहली बार धान की रोपाई के 15 से 20 दिन बाद और दूसरी बार 35 से 40 दिन बाद। इस तरह से यूरिया डालने से धान की फसल का अच्छा विकास होता है। यानी के अलग-अलग किस्मों के धान के लिए यूरिया की अलग-अलग मात्रा और समय पर डालने की आवश्यकता होती है।

धान की फसल को किन कीटों से है अधिक खतरा
धान की फसल में पत्ता लपेट सूड़ी और गोभ की सूड़ी दो प्रमुख कीट हैं जो काफी नुकसान पहुंचाते हैं। पत्ता लपेट सूड़ी पत्तों को लपेटकर उन्हें सफेद कर देती है, जबकि गोभ की सूड़ी धान के तने को काट देती है जिससे गोभ सूख जाती है। इसके अलावा, सफेद पीठा वाला तेला या भूरा तेला भी धान की फसल को नुकसान पहुंचाता है। यह कीट तने पर बैठकर रस चूसता है जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं और अंततः पूरा पौधा सूख जाता है। इन कीटों की वजह से धान की पैदावार कम हो जाती है और खेत में जगह-जगह से नुकसान शुरू हो जाता है। ये कीट वायरस को भी एक पौधे से दूसरे पौधे तक फैलाते हैं, जिससे नुकसान और बढ़ जाता है।ये कीट धान की फसल के लिए बहुत ही हानिकारक हैं और इनसे बचाव के लिए उचित उपाय करने चाहिए।

धान की फसल को कीटो से कैसे बचाए
धान की फसल में लगने वाली सूड़ियों और सफेद पीठ वाले तेले जैसी कीटों से बचाव के लिए किसान कई तरह की दवाओं का उपयोग कर सकते हैं। सूड़ियों को नियंत्रित करने के लिए कारटेप हाइड्रोक्लोराइड नामक दवा को 7.50 किलो प्रति एकड़ की दर से या फरटेरा नामक दवा को चार किलो प्रति एकड़ की दर से उपयोग किया जा सकता है। ये दवाएं दानेदार होती हैं और इन्हें खाद या मिट्टी में मिलाकर खेत में बुरकाया जाता है। इसके अलावा, फ्लूबेंडामाइड (टाकूमी) नामक दवा को भी 50 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग किया जा सकता है। वहीं, सफेद पीठ वाले तेले के लिए किसान चेस (पाइमैट्रोजिन) 50 डब्ल्यूजी को 120 ग्राम प्रति एकड़ की दर से या डाइनोटिफ्यूरान को 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं। इन कीटों से बचाव के लिए किसानों को इन दवाओं को निर्धारित मात्रा में और सही तरीके से उपयोग करना चाहिए।

Note:- किसान साथियो उपर दी गई जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध विश्वसनीय स्रोतों और किसानों के निजी अनुभव पर आधारित है। किसी भी जानकारी को उपयोग में लाने से पहले कृषि वैज्ञानिक की सलाह जरूर ले लें । कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार धान में किसी भी बीमारी के लक्षण दिखाई दे तो तुरंत कृषि वैज्ञानिकों की सलाह लेनी चाहिए।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।