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80 क्विंटल का उत्पादन देने वाली गेहूँ की किस्म की पूरी जानकारी यहां है | अभी देखे इस रिपोर्ट में

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किसान भाइयों भारत के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में गेहूं की खेती एक महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है, जो देश की खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसे-जैसे धनौर कपास की फसल है परिपक्वता की ओर बढ़ रही है, वैसे-वैसे किसानों में गेहूं की अधिक पैदावार वाली किस्म को लेकर आपस में होड़ लगी हुई है। हर एक किसान भाई यही सोचता है कि वह गेहूं की ऐसी किस्म का चयन करें जो अधिक पैदावार के साथ गुणवत्ता में भी सबसे ऊपर हो। इसके लिए वह गेहूं की किस्म को लेकर संभव प्रयास करते हैं। गेहूं की खेती में अधिक उपज प्राप्त करने के लिए गेहूं की उच्च कोटि की किस्मों की जरूरत होती है। जो न सिर्फ अधिक पैदावार वाली हो बल्कि, रोगों के प्रति भी रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली हो। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित गेहूं की उत्तम किस्म HD 3086 (पूसा गौतमी) उत्तर भारत के किसानों के लिए एक वरदान है, जो अधिक उत्पादन के साथ साथ, रोग प्रतिरोधक क्षमता और समय पर परिपक्वता जैसी गुणों के कारण किसानों को अपनी तरफ आकर्षित कर रही है। एचडी 3086 वैरायटी किसानों के लिए एक वरदान के समान है। इसके बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आइए पढ़ते हैं आज की यह रिपोर्ट। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे

1.उत्पादन क्षमता:
गेहूं की वैरायटी एचडी 3086 किसानों के लिए बहुत ही बढ़िया पैदावार देने वाली किस्म है। अगर जलवायु मिट्टी और मौसम खेती के अनुकूल रहते हैं तो गेहूं की HD 3086 वैरायटी आपको 80 से 85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन दे सकती है। इसके लिए आपको कृषि के सही नियमों का पालन करना होगा। इसका यह गुण इसको गेहूं की अन्य वैरियटियों से काफी अलग बना देता है। जिसके कारण यह किस्म काफी चर्चा में रहती है। 

2.रोगों के प्रति प्रतिरोधक: 
एक सर्वे के अनुसार यह अनुमान सामने आया है कि गेहूं की किस्म एचडी 3086 एक रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्म है,जो पीले और भूरे रतुए के प्रति बहुत अधिक प्रतिरोधक क्षमता रखती है, जिसके कारण गेहूं की वैरायटी में बीमारियां लगने की उम्मीद बहुत कम होती है। अगर इसमें थोड़ी बहुत बीमारी आ भी जाती है तो उसका समाधान आसानी से किया जा सकता है।

3.सिंचाई प्रबन्धन:
 गेहूं की वैरायटी एचडी 3086 को लगाने के लिए आमतौर पर 4 से 5 सिंचाई की आवश्यकता होती है, अगर आपकी मिट्टी रेतीली है तो इसमें आपको 6 से 7 सिंचाई करनी पड़ सकती हैं। और यदि आपकी मिट्टी भारी और दोमट है तो आप तीन से चार सिंचाई में भी काम चला सकते हैं। लेकिन जलवायु और मौसम के हिसाब से सिंचाई के आंकड़े बदल भी सकते हैं। गेहूं कि इस किस्म को सिंचाई के लिए लगभग 40 सेंटीमीटर पानी की आवश्यकता होती है। अगर आप समय और नियम से खाद और सिंचाई करते हैं तो आपकी फसल का उत्पादन  काफी मात्रा में बढ़ सकता है। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे

4.समय पर तैयार: 
गेहूं की किस्म एचडी 3086 भारत के उत्तर पश्चिमी मैदाने में मात्र 140 से 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जबकि उत्तर पूर्वी क्षेत्र में यह है सिर्फ 120 दिनों में ही पककर तैयार हो जाती है। जिससे किसानों को अगली फसल के लिए भरपूर समय मिल जाता है।

5.उत्तम गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ: 
गेहूं की इस किस्म मैं काफी अधिक मात्रा में पोषकिय गुण होते हैं जो गेहूं से बनने वाले खाद्य पदार्थों की क्वालिटी को और भी बेहतर बनाते हैं। इसके आटे से बनी चपाती खाने में काफी स्वादिष्ट और पोष्टिक होती है। इसकी उच्च निष्कर्ष  दर 70.5 और उत्कृष्ट चपाती गुणवत्ता मूल्यांकन 7.7 है।

6.जलवायु प्रभाव : 
गेहूं की यह किस्म जलवायु परिवर्तन के अनुकूल है, जो इसे भविष्य के लिए उपयुक्त बनाती है। वैसे गेहूं की यह किस्म विशेष, जलवायु के अनुसार क्षेत्र के लिए तैयार की गई है, यह वैरायटी उत्तर पश्चिम क्षेत्र, हरियाणा, पंजाब ,राजस्थान, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्से, पूर्वी उत्तर प्रदेश ,बिहार ,झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल ,असम, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कृषि क्षेत्र में अधिक उत्पादन देती है। चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे

7.बिजाई और खाद्य प्रबंधन:   
गेहूं की इस किस्म को संतुलित उर्वरकों की आवश्यकता होती है, जो मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखते हैं। अगर आप इसमें सिंचाई अधिक करते हैं, और आप रासायनिक खेती करते हैं तो आप इसमें खाद की मात्रा सामान्य से थोड़ी बढ़ा भी सकते हैं, या फिर आप खाद की मात्रा को संतुलित ही रखें। गेहूं की किस्म एचडी 3086 कि अगर बीज की बात की जाए तो आप अपने क्षेत्र के अनुसार 100-120 किग्रा. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से ले सकते हैं, जो इसकी बिजाई के लिए बीज की सही मात्रा है। अगर इसके बिजाई के सही समय की बात की जाए तो उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में अक्टूबर-नवंबर में बुवाई बुवाई का समय सबसे उपयुक्त है। इस समय पर की हुई बुवाई से आपकी फसल है समय पर पैक कर तैयार हो जाती है और आपके पास है अगली फसल के लिए काफी समय बच जाता है।

नोट:- रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी हमारे अपने निजी विचारों पर आधारित है कृषि क्षेत्र से जुड़ी किसी भी जानकारी के लिए आप किसी वैज्ञानिकों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।