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फायदे का सौदा बन रही मिर्च की खेती | जाने कितनी होगी कमाई

फायदे का सौदा बन रही मिर्च की खेती | जाने कितनी होगी कमाई
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मिर्च की खेती किसानों के लिए एक फायदे का सौदा साबित हो सकती है, क्योंकि इसकी मांग पूरे साल बनी रहती है। मिर्च एक ऐसी फसल है, जो न सिर्फ खाने के स्वाद को बढ़ाती है, बल्कि इसका उपयोग कई अन्य घरेलू और औद्योगिक कार्यों में भी किया जाता है। हालांकि, मिर्च की खेती करना आसान नहीं है। इसे उगाने में किसानों को कीट और रोगों से बचाव के लिए अतिरिक्त सतर्कता बरतनी पड़ती है, क्योंकि यह फसल कीट और बीमारियों के प्रति संवेदनशील होती है, जो कभी-कभी पूरी फसल को नष्ट कर सकती हैं।
मिर्च की खेती मुख्य रूप से जून से अक्टूबर के बीच की जाती है। इसके रोपण का समय जून से जुलाई और सितंबर से अक्टूबर तक होता है। भारत के विभिन्न राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार में मिर्च की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। अररिया, बिहार के किसान रौशन सिंह ने इस साल अपने खेतों में एक एकड़ जमीन पर मिर्च की खेती की है और उनका कहना है कि मिर्च की फसल से अच्छी कमाई होती है।
मिर्च की खेती में समय और मेहनत दोनों की जरूरत होती है, लेकिन सही तकनीक और प्रबंधन से किसान इससे अच्छा लाभ कमा सकते हैं। इसे उगाने के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और सही समय पर कीटनाशकों का उपयोग करना महत्वपूर्ण होता है।
हरे मिर्च की नर्सरी को कोकोपीट में तैयार करना एक अत्यधिक प्रभावी विधि है, जो पारंपरिक खेत में तैयार की जाने वाली नर्सरी की तुलना में बेहतर परिणाम देती है। मिर्च की खेती के एक जानकार, ने इस प्रक्रिया को विस्तार से समझाया है। यहाँ प्रक्रिया का सारांश दिया गया है:

कोकोपीट का उपयोग: नर्सरी के लिए कोकोपीट का उपयोग किया जाता है, जिसे बाजार से खरीदा जा सकता है। इसे लाने के बाद 12 से 24 घंटे के भीतर पानी में भिगोकर उसमेरिक्त पानी निकाल लिया जाता है।

मिश्रण तैयार करना: कोकोपीट में फंगीसाइड और कुछ माइक्रो न्यूट्रिएंट्स मिलाए जाते हैं। इस मिश्रण को अच्छे से मिलाने के बाद, इसे पोट ट्रे में भर दिया जाता है।

बीज बोना: मिर्च के बीजों को पोट ट्रे में हल्के हाथों से भरते हुए बोया जाता है। बीजों को हल्के से ढकने के बाद ट्रे को पॉलिथीन से ढककर 5-6 दिन तक एक कमरे में रखा जाता है, जिसमें धूप नहीं आती।

ग्रीन हाउस में स्थानांतरित करना: अंकुरित होने के बाद, नर्सरी को ग्रीन हाउस या पॉली हाउस में रखा जाता है। यहाँ उन्हें सुबह-शाम हल्के से पानी दिया जाता है।

ट्रांसप्लांटेशन: 20-22 दिनों में नर्सरी तैयार हो जाती है और पौधों को खेत में ट्रांसप्लांट किया जाता है। कोकोपीट में तैयार पौधे खेत में सीधे लगाने पर अच्छी वृद्धि करते हैं क्योंकि उनकी जड़ें टूटती नहीं हैं और वे तेजी से विकसित होते हैं।

कठोर बनाना: ट्रांसप्लांटेशन से पहले, पौधों को दो दिनों तक धूप में रखा जाता है ताकि वे कठोर हो जाएं और खेत में लगाने के बाद उनकी मृत्त्यु दर कम हो।

आगे किसान ने बताया कि उन्होंने हाइब्रिड बीज का उपयोग किया है क्योंकि यह कम समय में अधिक उत्पादन देता है और रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होता है। इसके अलावा, उन्होंने बताया कि यदि कोई किसान नर्सरी तैयार नहीं कर सकता तो वे उनसे सीधे पौधे भी मंगवा सकते हैं।

यह प्रक्रिया पारंपरिक विधियों की तुलना में अधिक प्रभावी है और मिर्च की अच्छी फसल देने में सहायक होती है।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।