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धान की पराली से बम्पर मुनाफा लेना है | तो जरूर देखें ये रिपोर्ट

धान की पराली से बम्पर मुनाफा लेना है | तो जरूर देखें ये रिपोर्ट
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किसान भाइयों, भारत में खेती-किसानी न केवल आर्थिक, बल्कि सांस्कृतिक जीवन का भी अहम हिस्सा है। पराली प्रबंधन एक ऐसा विषय है जो आज भारतीय कृषि और पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है। धान की फसल कटाई के बाद बची हुई पराली को जलाना किसानों के लिए एक सरल विकल्प लगता है, लेकिन इसके गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव हैं। पराली, जो धान और गेहूं की कटाई के बाद बचा हुआ भाग है, पिछले कुछ वर्षों से किसानों और सरकार के बीच चर्चा का केंद्र बना हुआ है। सरकार किसानों को पराली न जलाने के प्रति जागरूक करने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है, साथ ही पराली के सही उपयोग के लिए आवश्यक मशीनों पर भी सरकार 50 से 60% तक की सब्सिडी दे रही है। हर साल उत्तर भारत के कई राज्यों में पराली जलाने से वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि होती है। लेकिन पराली प्रबंधन के लिए जागरूकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर इस समस्या को हल किया जा सकता है। हाल ही में हरियाणा के हिसार जिले में डीडी किसान चैनल द्वारा आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में पराली प्रबंधन पर विस्तार से चर्चा की गई। इस कार्यक्रम में कई विशेषज्ञों, छात्रों और किसानों ने हिस्सा लिया और पराली प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार साझा किए। इस रिपोर्ट में हम पराली जलाने के कारण, इसके दुष्प्रभाव और समाधान के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। इन सब बातों पर विस्तार से जानकारी लेने के लिए चलिए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।

पराली जलाने के प्रमुख कारण
किसान भाइयों, पराली को जलाने के कई ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से किसानों को पराली को जलाने वाला तरीका सबसे आसान और सही लगता है। धान की कटाई के बाद किसानों को अगली फसल (मुख्यतः गेहूं) की बुआई के लिए खेत को जल्दी तैयार करना होता है। इसके समाधान के रूप में धान की पराली जलाना उन्हें सबसे आसान और तेज़ तरीका लगता है। पराली को जलाने का एक कारण यह भी है कि छोटे और मझोले किसान अक्सर आधुनिक मशीनों जैसे सुपर सीडर या हैप्पी सीडर का खर्च नहीं उठा पाते। इनके बिना पराली को खेत में समायोजित करना मुश्किल हो जाता है और उन्हें मजबूरन पराली को खेत में ही जलाना पड़ता है। कई किसानों को पराली के सही उपयोग के बारे में जानकारी नहीं होती। किसान पराली को वेस्ट (कचरा) समझने की धारणा के कारण इसे जलाने को ही सही विकल्प मानते हैं। हालांकि, असलियत में यह एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक उर्वरक है, लेकिन उन्हें जागरूकता की कमी के कारण इसके उपयोग की विधि के बारे में पता नहीं होता। पराली को जलाने का एक अन्य कारण यह है कि कुछ किसानों के पास पराली को हटाने या खेत में मिलाने के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी होती है। किराए पर मशीनें लेने का खर्च भी कई बार उनके बजट से बाहर होता है, जिसके चलते मजबूरन उन्हें पराली को खेत में ही जलाना पड़ता है।

पराली जलाने के दुष्प्रभाव
किसान साथियों, पराली को जलाना पर्यावरण के लिए बहुत ही हानिकारक है। इससे पैदा होने वाला प्रदूषण मानव जीवन के स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि सभी जीवों के स्वास्थ्य पर अत्यंत हानिकारक प्रभाव डालता है। पराली जलाने से खेत तैयार करने का काम भले ही जल्दी हो जाता हो, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव बेहद हानिकारक हैं। पराली जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें वायुमंडल में फैलती हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता खराब होती है। यह सांस की बीमारियों का प्रमुख कारण बनता है। पराली को खेत में जलाने से मिट्टी में मौजूद ऑर्गेनिक मैटर (जैविक पदार्थ) और सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं। इससे खेत की उर्वरता में कमी आती है, जो फसल की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करता है। पराली को खेत में जलाने से जमीन में रहने वाले जैविक कीट और केचुए नष्ट हो जाते हैं, जो प्राकृतिक रूप से मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में मदद करते हैं। पराली जलाने से वायुमंडल में भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की समस्या और गंभीर हो जाती है। पराली को खेत में जलाने के बाद खेत की उर्वरता को बनाए रखने के लिए किसानों को अधिक मात्रा में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ता है, जो किसानों के लिए फसल पर आने वाले अतिरिक्त खर्च को बढ़ाता है।

उपाय
1. सुपर सीडर और हैप्पी सीडर का उपयोग

किसान भाइयों, सुपर सीडर मशीन पराली को खेत में ही समायोजित करके अगली फसल के लिए खेत तैयार करती है। यह मशीन एक घंटे में एक एकड़ जमीन में फैली पराली को नष्ट कर देती है और इसके बाद गेहूं की बुआई करती है। इसके अलावा आप हैप्पी सीडर मशीन का उपयोग भी कर सकते हैं। हैप्पी सीडर एक नो-टिल प्लांटर है, जिसे ट्रैक्टर के पीछे खींचा जाता है। यह बिना किसी पूर्व बीज-बिस्तर की तैयारी के सीधे पंक्तियों में बीज बोता है। इसे ट्रैक्टर के पीटीओ से संचालित किया जाता है और इसे तीन-बिंदु लिंकेज के साथ जोड़ा जाता है। हरियाणा और पंजाब में सरकार ने इन मशीनों पर सब्सिडी भी उपलब्ध करवाई है। आप सब्सिडी का लाभ उठाकर पर्यावरण और अपने खेत की उर्वरता शक्ति को बढ़ा सकते हैं।

2. जागरूकता अभियान
किसान भाइयों, जिन किसानों को पराली के सही उपयोग और उसके लाभों के बारे में जानकारी नहीं है, उन किसानों को पराली के लाभ और इसके सही प्रबंधन के तरीकों के बारे में शिक्षित करने के लिए कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए। सरकार को इस प्रकार के कार्यक्रमों को आयोजित करने पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

3. पराली का पुनर्चक्रण
किसान साथियों, सरकार को चाहिए कि वह औद्योगिक क्षेत्र में भी पराली के उपयोग के नए विकल्पों को तलाश करे। औद्योगिक क्षेत्र में पराली के उपयोग से न सिर्फ पराली को जलाने पर रोक लगेगी, बल्कि किसानों को आर्थिक रूप से भी मजबूती मिलेगी। पराली से जैविक खाद, जैव ऊर्जा, और पशु चारा जैसे उत्पाद बनाए जा सकते हैं। इसके लिए सरकार और निजी कंपनियों को मिलकर काम करना होगा।

4. वैज्ञानिक समाधान
किसान भाइयों, आप डी-कंपोजर की मदद से पराली का निस्तारण कर सकते हैं। डी-कंपोजर कैप्सूल की शक्ल में होता है। 250 लीटर पानी में डी-कंपोजर के 4 कैप्सूल, 1 किलो गुड़ और 1 किलो चने का बेसन मिलाकर उसको 24 घंटे के लिए छोड़ देना है, जिसके बाद घोल बनकर तैयार हो जाएगा। इस घोल को खेत में फैली पराली के ऊपर छिड़काव कर देना है और 2 दिन बाद फिर से पराली को पलट कर एक बार फिर से इसी घोल का छिड़काव करना है। एक सप्ताह के अंदर पराली पूरी तरह से सड़ जाएगी। डी-कंपोजर किसानों को निशुल्क दिया जाता है। किसान राजकीय कृषि बीज भंडार से जाकर डी-कंपोजर कैप्सूल ले सकते हैं।

5. सरकारी सहयोग
किसान भाइयों, सरकार को किसानों को जागरूक करने के लिए पराली के फायदे और नुकसान से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए। साथ ही, सरकार को पराली का सही उपयोग करने के लिए मिलने वाली मशीनों पर सब्सिडी योजनाओं का विस्तार करना चाहिए, ताकि हर किसान इनका लाभ उठा सके। साथ ही, पराली जलाने पर कड़ी निगरानी और जुर्माने का प्रावधान होना चाहिए।

6. सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम
किसान भाइयों, कंबाइन में लगने वाला एसएमएस (सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम) एक विशेष उपकरण है, जो कंबाइन यानी हार्वेस्टर के साथ जुड़ा होता है। यह धान की कटाई के दौरान बचने वाले फसल अवशेष यानी पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता है। एसएमएस पराली को खेत में ही निस्तारित करने में मदद करता है। छोटे-छोटे टुकड़ों में कटी हुई पराली मिट्टी में मिलकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है। पराली को जलाने की बजाय मिट्टी में मिलाने से अगली फसल के लिए मिट्टी की नमी बनी रहती है और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट के सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।