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प्याज के आयात निर्यात नियंत्रण पर सोच विचार की जरूरत | जाने क्या है समस्या

प्याज के आयात निर्यात नियंत्रण पर सोच विचार की जरूरत | जाने क्या है समस्या
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दोस्तों भारत में प्याज केवल एक सब्जी नहीं, बल्कि हर रसोई की नींव और राजनीतिक बहस का केंद्र बिंदु है। इसकी कीमतों में जरा सी उथल-पुथल आमजन के गुस्से और सरकार की चिंता का कारण बन जाती है। बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार बार-बार निर्यात पर रोक, न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) लागू करने और भारी निर्यात शुल्क लगाने जैसे तात्कालिक कदम उठाती रही है। हालांकि, ये उपाय लघुकालीन राहत दे सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टिकोण से ये घरेलू बाजार और निर्यात दोनों को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में अब वक्त है कि एक स्थायी विकल्प की ओर देखा जाए—निर्यात कोटा प्रणाली।

भारत की निर्यात नीति की अस्थिरता

पिछले कुछ वर्षों में प्याज निर्यात पर नियंत्रण की नीति काफी उतार-चढ़ाव भरी रही है। कभी निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा दी जाती है, तो कभी भारी शुल्क और MEP लगाकर आपूर्ति सीमित कर दी जाती है। उदाहरण के तौर पर, सितंबर 2019, 2020 और दिसंबर 2023 में तीन बार प्याज का निर्यात पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया, जो बाद में चरणबद्ध तरीके से हटाया गया। हालांकि, इस अस्थिर नीति से न उपभोक्ता को राहत मिली, न किसान को लाभ हुआ।

प्याज निर्यात पर नियंत्रण के प्रमुख निर्णय (पिछले 5 वर्षों में)

  • 29 सितंबर 2019: ऊँची कीमतों को नियंत्रित करने हेतु निर्यात पर प्रतिबंध, 26 फरवरी 2020 को हटाया गया

  • 13 सितंबर 2020: भारी वर्षा से फसलों को नुकसान होने पर फिर से निर्यात पर रोक, 1 जनवरी 2021 को हटाई गई

  • 8 दिसंबर 2023: कमजोर फसल अनुमानों को देखते हुए 31 मार्च 2024 तक निर्यात पर रोक

  • 26 अप्रैल 2024: प्रतिबंध के बावजूद 99,150 मीट्रिक टन प्याज छह पड़ोसी देशों को निर्यात की अनुमति

  • 4 मई 2024: MEP $550/टन और 40% शुल्क के साथ प्रतिबंध हटाया गया

  • 16 सितंबर 2024: चुनाव पूर्व किसानों को राहत देने हेतु MEP समाप्त और निर्यात शुल्क घटाकर 20%

  • 23 सितंबर 2024: घरेलू कीमतें काबू में रखने के लिए सरकारी भंडारण से प्याज जारी करने की घोषणा

निर्यात पर रोक के बावजूद बढ़ा निर्यात

इन सभी रोकथाम उपायों के बावजूद, भारत का प्याज निर्यात सालाना 7% की दर से बढ़कर FY20 के $324 मिलियन से FY24 में $473 मिलियन पहुंच गया। यह दर्शाता है कि वैश्विक स्तर पर भारतीय प्याज की मजबूत मांग बनी हुई है। लेकिन निरंतर और बार-बार लागू होने वाले प्रतिबंध इस विकास गति को खतरे में डाल सकते हैं। जब भारत प्याज निर्यात से पीछे हटता है, तब पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान जैसे अन्य देश बाज़ार में अपनी पकड़ मजबूत कर लेते हैं। उदाहरण के लिए, दिसंबर 2023 की रोक के बाद भारत का प्याज निर्यात $100 मिलियन (नवंबर 2023) से घटकर $11 मिलियन (जनवरी 2024) रह गया, जबकि पाकिस्तान का निर्यात इसी अवधि में $11 मिलियन से बढ़कर $50 मिलियन हो गया। इससे साफ होता है कि प्रतिबंध से भारत की बाज़ार हिस्सेदारी कम होती है और प्रतिद्वंद्वी देशों को अवसर मिल जाता है।

प्याज उत्पादन और निर्यात (पिछले 3 वर्षों में)

  • 2021-22: उत्पादन – 31.68 मिलियन टन | निर्यात – 1.53 मिलियन टन

  • 2022-23: उत्पादन – 30.20 मिलियन टन | निर्यात – 2.52 मिलियन टन

  • 2023-24: उत्पादन – 24.26 मिलियन टन | निर्यात – 1.71 मिलियन टन

Monthly Prices of Onions in the Last 5 Years
Source: APMC Data

निर्यात कोटा प्रणाली क्यों है बेहतर विकल्प?

भारत में प्याज का अधिकांश उत्पादन रबी सीज़न में होता है, जो कुल वार्षिक उत्पादन का लगभग 65% है। यह फसल अप्रैल में मंडियों में आती है, और जून-जुलाई तक कीमतें स्थिर बनी रहती हैं। लेकिन जैसे-जैसे रबी का स्टॉक कम होता है, नवंबर से जनवरी के बीच कीमतें तेजी से बढ़ती हैं, जब खरीफ की फसल पर्याप्त नहीं होती। ऐसे में यदि सरकार रबी सीजन में एक निश्चित प्रतिशत निर्यात की अनुमति दे और बचे हुए हिस्से को घरेलू उपभोग हेतु आरक्षित रखे, तो संतुलन बना रह सकता है। निर्यात कोटा प्रणाली से घरेलू आपूर्ति सुनिश्चित होती है, और सभी हितधारकों को स्थिरता का लाभ मिलता है। अचानक लगने वाले प्रतिबंध या शुल्क बाज़ार में भ्रम पैदा करते हैं। जबकि अगर उत्पादन का एक तय हिस्सा (जैसे 5-8%) निर्यात हेतु आरक्षित कर दिया जाए, तो घरेलू जरूरतें भी पूरी होंगी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार भी निर्बाध जारी रह सकेगा। भारत की व्यापार साख को बनाए रखना भी अत्यंत आवश्यक है। पड़ोसी देश जैसे बांग्लादेश, श्रीलंका और UAE भारतीय प्याज पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। बार-बार की प्रतिबंध नीति से इन देशों को वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता खोजना पड़ता है, जिससे भारत की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं। कोटा प्रणाली से भारत की विश्वसनीयता बनी रह सकती है और दीर्घकालिक व्यापार संबंधों को मजबूती मिल सकती है।

इसके अतिरिक्त, कोटा प्रणाली को मौसमी और भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर लचीलापन भी दिया जा सकता है। अगर उत्पादन अधिक हो तो कोटा बढ़ाया जा सकता है, और अगर वर्षा या जलवायु से फसल प्रभावित हो, तो घरेलू खपत को प्राथमिकता दी जा सकती है। साथ ही, चूंकि कटाई के बाद नुकसान 7.5% से 19% तक होता है, बेहतर भंडारण की सुविधा और कोटा प्रणाली साथ मिलकर अधिशेष को भी नियंत्रित कर सकती है।

 

ET Online : Monthly onion exports of India, Pakistan and China
Source: ITC trade map

नीति में बदलाव अब अनिवार्य हो गया है

कुल मिलाकर, निर्यात कोटा प्रणाली वर्तमान अस्थिर प्याज नीति का स्थायी और व्यवहारिक समाधान बन सकती है। यह न तो प्रतिबंधों की तरह बाजार को चौंकाती है, न MEP की तरह कठोरता लाती है, और न ही भारी शुल्क की तरह किसानों पर बोझ डालती है। यह प्रणाली न केवल घरेलू कीमतों को स्थिर बनाएगी बल्कि निर्यात को बढ़ावा भी देगी। भारत को अपनी घरेलू आवश्यकताओं को सुरक्षित रखते हुए व्यापारिक वर्चस्व बनाए रखना है, तो निर्यात कोटा प्रणाली ही एकमात्र स्थायी विकल्प है। अब समय है कि हम अस्थिर निर्णयों से हटकर योजनाबद्ध नीतियों की ओर बढ़ें—क्योंकि प्याज केवल सब्जी नहीं, भारत की आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता का संवेदनशील बिंदु बन चुका है।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।