खाद्य वस्तुओं के दाम आसमान पर लेकिन किसानो को नहीं मिल रहा फायदा
रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतें
किसान साथियों हाल के महीनों में भारत में सोयाबीन तेल, प्याज और आटे जैसी अति आवश्यक खाद्य वस्तुओं के दामों में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि देखने को मिली है। यह स्थिति तब आई जब देश में कई प्रमुख फसलों का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। इसके बावजूद महंगाई का बढ़ना सरकार की नीतियों और व्यापारिक रणनीतियों के प्रभाव का परिणाम है। इस रिपोर्ट में खाद्य वस्तुओं के दामों में वृद्धि के कारणों का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
सोयाबीन तेल की महंगाई
सोयाबीन तेल के दाम में महज 13 दिनों में 30% की वृद्धि दर्ज की गई। इसका प्रमुख कारण सरकार द्वारा आयात शुल्क में वृद्धि करना है। सोयाबीन तेल उत्पादन में 40% विदेशी पाम ऑयल मिलाया जाता है, और पाम ऑयल पर आयात शुल्क 13.75% से बढ़ाकर 35.75% कर दिया गया। इससे घरेलू बाजार में सोयाबीन तेल की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।
देश में इस साल 1.27 करोड़ टन सोयाबीन उत्पादन का अनुमान है, जो पिछले साल के 1.25 करोड़ टन उत्पादन से थोड़ा अधिक है। फिर भी, किसानों को मंडियों में उचित मूल्य नहीं मिल रहा था, जिसके कारण किसान आंदोलन की स्थिति बनी। उनकी नाराजगी को दूर करने के लिए सरकार ने सोयाबीन का समर्थन मूल्य बढ़ाकर ₹4,892 प्रति क्विंटल कर दिया, जिससे कीमतों में और भी तेजी आई।
प्याज की कीमतों में उछाल
देश में इस साल प्याज का उत्पादन भी 27% अधिक हुआ है। रबी सीजन में 1.91 करोड़ टन प्याज का उत्पादन हुआ,तो अनुमान है कि इस बार कुल उत्पादन 3.5 करोड़ टन तक पहुंच सकता है, जो एक रिकॉर्ड होगा। इसके बावजूद प्याज के दामों में भारी वृद्धि देखने को मिली।
प्याज के निर्यात पर लगी रोक मई में हटा दी गई, जिसके बाद प्याज के दामों में तेजी आई। हालांकि, एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव में कीमतें केवल ₹7-8 प्रति किलो बढ़ीं, इतना ही नहीं इस साल तो देश के कई हिस्सों में प्याज की कीमतें दोगुनी होकर ₹60 प्रति किलो तक पहुंच गईं।
आटा और गेहूं की बढ़ती कीमतें
2023 से 2024 के सीजन में भारत में रिकॉर्ड 11.292 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ, जो पिछले वर्ष से 3% अधिक था। इसके बावजूद आटे की कीमतों में भी वृद्धि देखी गई है। पिछले छह महीनों में आटे की कीमत में ₹7 प्रति किलो की बढ़ोतरी हुई। यह वृद्धि इस वजह से हुई कि सरकार ने अपने भंडार भरने के लिए गेहूं की भारी मात्रा में खरीद की, जिससे खुले बाजार में गेहूं की उपलब्धता कम हो गई और मुनाफाखोरों ने इसका फायदा उठाते हुए दाम बढ़ा दिए।
किसानों को क्यों नहीं मिल रहा फायदा
दोस्तों, ऊपर दिये गए विश्लेषण सही है तो साफ है की खाने पीने की चीजों के दम बड़े हैं लेकिन किसानों को इसका ज्यादा फायदा नहीं मिला है ऐसा इसलिए कहा जा रहा है। क्योंकी एक तरफ जहां आटे के दम बढ़े हैं वहीं गेहुं के दम मंडियों में 2600-2700 से ऊपर कहीं नहीं मिल रहे हैं। इसी तरह से खाद्य तेलों में प्रति, किलो भाव 20 से ₹30 तक बढ़ चुके हैं लेकिन किसानों को सोयबीन का एमएसपी भाव भी नहीं मिल पा रहा है। मूंग और चने को छोडकर अन्य दलहन फसलों का भी यही हाल है।
अंत में, भारत में रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि का प्रमुख कारण सरकारी नीतियां और व्यापारिक रणनीतियां हैं। सरकार द्वारा निर्यात की अनुमति और आयात शुल्क में वृद्धि ने सोयाबीन तेल, प्याज और आटे जैसी आवश्यक वस्तुओं के दामों में अप्रत्याशित उछाल ला दिया है। सरकार द्वारा समर्थन मूल्य बढ़ाने और खाद्य भंडारण नीतियों के कारण भी बाजार में आपूर्ति और मांग का असंतुलन बना हुआ है, जिसका सीधा असर आम जनता पर पड़ रहा है।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।