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खल के भाव तेज होंगे या नहीं | जाने क्या कहती है खल की तेजी मंदी रिपोर्ट

खल के भाव तेज होंगे या नहीं | जाने क्या कहती है खल की तेजी मंदी रिपोर्ट
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किसान साथियो और व्यापारी भाइयो जब से चीन और अमेरिका के बीच में टैरिफ वार शुरू हुआ है तब से सरसों खल सोयाबीन DOC और पूरे खल बाजार में खलबली मच गई है। किसान से लेकर व्यापारी यह जानना चाह रहे हैं कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खल में क्या कुछ चल रहा है। साथियो हाल ही में सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) ने खल के निर्यात को लेकर आंकड़े जारी किए हैं इनका आंकड़ों के आधर पर क्या रूझान बन रहा है आइए जानते हैं सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) के आंकड़ों के अनुसार 2024-25 के दौरान ऑयलमील के कुल निर्यात में 11 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 1 अप्रैल 2024 से लेकर 31 मार्च 2025 की अवधि में 43.42 लाख टन ऑयलमील का निर्यात किया है।  पिछले साल इसी अवधि में यह आंकड़ा 48.85 लाख टन था। एफओबी (फ्री ऑन बोर्ड) मूल्य के आधार पर, कुल निर्यात में और भी बड़ी गिरावट देखी गई, जो वर्ष 2023-24 के ₹15,368 करोड़ से घटकर वर्ष 2024-25 में ₹12,171 करोड़ रह गया, इस प्रकार 21 प्रतिशत की कमी आई।

 रेपसीड और कैस्टरसीड (सरसों और अरंडी) खली में क्या रहा रूझान
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) के आंकड़ों मे रेपसीड मील और कैस्टरसीड मील के निर्यात में भी गिरावट बतायी है। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024-25 में रेपसीड मील का निर्यात घटकर 18.75 लाख टन रह गया, जबकि वर्ष 2023-24 में यह 22.13 लाख टन था। इसी तरह, कैस्टरसीड मील के निर्यात में भी कमी आई और यह 2023-24 के 3.72 लाख टन से घटकर 2.99 लाख टन रह गया।  अगर आप भी मंडी बाजार से जुड़े हैं और आपको रोजाना भाव और आगे का अनुमान साथ में आयात-निर्यात से संबंधित जानकारी चाहते हैं, तो हमारी प्रीमियम सेवा मात्र ₹500 में 6 महीने के लिए उपलब्ध है। इसके लिए 9518288171 पर संपर्क करें। इस गिरावट के पीछे मुख्य वजह गंतव्य देशों से मांग में कमी और पिछले एक साल में कीमतों में आई गिरावट को बताया है । उन्होंने जानकारी दी कि अप्रैल 2024 में रेपसीड मील की औसत कीमत 278 डॉलर प्रति टन थी, जो 15 अप्रैल 2025 तक घटकर 209 डॉलर प्रति टन रह गई।

 चीन को लेकर जागी उम्मीद की किरण
SEA के कार्यकारी अधिकारी श्री मेहता ने रेपसीड मील के निर्यात के लिए चीनी बाजार पर फिर से कब्जा करने की संभावनाओं पर जोर देते हुए, कहा कि यूरोपीय संघ (ईयू) में रेपसीड मील की मौजूदा कमी के कारण वैश्विक कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। चीन, जो रेपसीड मील का एक प्रमुख उपभोक्ता है, वर्तमान में मुख्य रूप से कनाडा और यूरोपीय संघ से आयात करता है। अगर आप भी मंडी बाजार से जुड़े हैं और आपको रोजाना भाव और आगे का अनुमान साथ में आयात-निर्यात से संबंधित जानकारी चाहते हैं, तो हमारी प्रीमियम सेवा मात्र ₹500 में 6 महीने के लिए उपलब्ध है। इसके लिए 9518288171 पर संपर्क करें। उन्होंने कहा कि मौजूदा आपूर्ति संबंधी चुनौतियों और बढ़ती कीमतों को देखते हुए, भारत के पास चीन के बाजार में अपनी खोई हुई हिस्सेदारी को तलाशने और उसे फिर से प्राप्त करने का एक नया अवसर मौजूद है। यही कारण है कि घरेलू बाजार में सरसों खल के रेट 2050 से उठकर अब 2300 के आसपास पहुंचने लगे हैं।

 भारत चीन का खली का बड़ा आपूर्तिकर्ता बन सकता है
यदि चीन भारतीय रेपसीड मील के आयात पर लागू अपनी वर्तमान कठोर शर्तों में कुछ ढील देता है, तो भारत इस उत्पाद का एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता बनकर चीन की मांग का एक बड़ा हिस्सा पूरा करने की क्षमता रखता है। अगर आप भी मंडी बाजार से जुड़े हैं और आपको रोजाना भाव और आगे का अनुमान साथ में आयात-निर्यात से संबंधित जानकारी चाहते हैं, तो हमारी प्रीमियम सेवा मात्र ₹500 में 6 महीने के लिए उपलब्ध है। इसके लिए 9518288171 पर संपर्क करें। वर्तमान में, अंतरराष्ट्रीय बाजार में रेपसीड मील की कीमत लगभग 335 डॉलर प्रति टन है, जबकि भारतीय रेपसीड मील की एफएएस कीमत केवल 209 डॉलर प्रति टन है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस अनुकूल मूल्य अंतर का लाभ उठाकर भारत न केवल अपने निर्यात को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा सकता है, बल्कि वैश्विक बाजार में रेपसीड मील की कीमतों को स्थिर करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

 डी-ऑइल राइस ब्रान (डीओआरबी) पर प्रतिबंध
2024-25 में सोयाबीन मील, यानी खली का निर्यात लगभग स्थिर रहा। इसका श्रेय यूरोपीय देशों द्वारा किए गए बड़े आयात को दिया गया है, क्योंकि भारत गैर-जीएम सोयाबीन मील की आपूर्ति करता है। बी.वी. मेहता ने डी-ऑइल राइस ब्रान (डीओआरबी) के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि सरकार ने घरेलू कीमतों में वृद्धि की चिंताओं के कारण जुलाई 2023 में डीओआरबी के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था, जो लगभग ₹18,000 प्रति टन तक पहुंच गई थीं। प्रतिबंध से पहले, भारत मुख्य रूप से वियतनाम, बांग्लादेश और अन्य एशियाई देशों को सालाना लगभग 4-5 लाख टन डीओआरबी का निर्यात कर रहा था। उन्होंने  कहा कि तब और अब बाजार की परिस्थितियों में काफी बदलाव आ चुका है डीओआरबी (डी-ऑयल्ड राइस ब्रान) की मौजूदा कीमत तेजी से गिरकर ₹8,000 प्रति टन से भी नीचे चली गई है। अगर आप भी मंडी बाजार से जुड़े हैं और आपको रोजाना भाव और आगे का अनुमान साथ में आयात-निर्यात से संबंधित जानकारी चाहते हैं, तो हमारी प्रीमियम सेवा मात्र ₹500 में 6 महीने के लिए उपलब्ध है। इसके लिए 9518288171 पर संपर्क करें। इसके अतिरिक्त, पशु आहार में डिस्टिलर सूखे अनाज घुलनशील (डीडीजीएस) की बढ़ती उपलब्धता और उसे अपनाने के कारण डीओआरबी की घरेलू मांग में उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे अतिरिक्त स्टॉक के निपटान की समस्या और बढ़ गई है। कीमतों में यह गिरावट पिछले एक साल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऑयलमील की कीमतों में आई कमी के कारण भी है, जिसके चलते निर्यात में भी गिरावट दर्ज हुई है। बात सोयाबीन खल की करें तो सोयाबीन खली का एफएएस मूल्य अप्रैल 2024 में 491 डॉलर प्रति टन था, जो मार्च 2025 में घटकर 356 डॉलर प्रति टन हो गया, वहीं रेपसीड खली का मूल्य अप्रैल 2024 में 285 डॉलर प्रति टन से गिरकर मार्च 2025 में 196 डॉलर प्रति टन हो गया। इस अवधि में, भारतीय रुपया कमजोर हुआ और विनिमय दर ₹83.62 प्रति अमेरिकी डॉलर से बढ़कर ₹86.52 प्रति अमेरिकी डॉलर हो गई।

 कौन हैं भारतीय खली के मुख्य आयातक
राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद, बांग्लादेश 2024-25 में 7.42 लाख टन तेल खली का आयात करके भारत से तेल खली का सबसे बड़ा खरीदार रहा। इस आयात में 5.88 लाख टन रेपसीड खली और 1.54 लाख टन सोयाबीन खली शामिल हैं, जबकि पिछले वर्ष 2023-24 में बांग्लादेश ने 8.92 लाख टन तेल खली का आयात किया था। इसी अवधि में, भारत ने दक्षिण कोरिया को 6.99 लाख टन ऑयलमील का निर्यात किया, जिसमें 4.62 लाख टन रेपसीड मील, 1.80 लाख टन कैस्टरसीड मील और 0.57 लाख टन सोयाबीन मील शामिल हैं। अगर आप भी मंडी बाजार से जुड़े हैं और आपको रोजाना भाव और आगे का अनुमान साथ में आयात-निर्यात से संबंधित जानकारी चाहते हैं, तो हमारी प्रीमियम सेवा मात्र ₹500 में 6 महीने के लिए उपलब्ध है। इसके लिए 9518288171 पर संपर्क करें। पिछले वर्ष यह आंकड़ा 8.32 लाख टन था। थाईलैंड ने भी 2024-25 के दौरान भारत से 4.48 लाख टन ऑयलमील का आयात किया, जिसमें 4.05 लाख टन रेपसीड मील और 0.31 लाख टन सोयाबीन मील शामिल हैं, जबकि 2023-24 में यह आंकड़ा 6.32 लाख टन था। ईरान (1.56 लाख टन), जर्मनी (2.01 लाख टन) और फ्रांस (2.22 लाख टन) भी 2024-25 में भारत से सोयाबीन मील के महत्वपूर्ण आयातक रहे, जिसमें दुबई के माध्यम से किए गए शिपमेंट भी शामिल हैं।

खल में आगे क्या रह सकता है रूझान
किसान साथियों और व्यापारी भाइयों जैसा कि आपने देखा कि खली का निर्यात घरेलू बाजार में खल के मूल्य को किस प्रकार से प्रभावित करता है।  आंकड़ों को देखें तो निर्यात घटने के कारण बाजार में ज्यादा उत्साह नहीं दिखता लेकिन मार्च 2025 के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी बदलाव आ चुका है । चीन से निकल रही डिमांड उत्साह जरूर देती है। अब यह सरकार पर निर्भर है कि वह किस तरह से निर्यात प्रोत्साहन देकर चीन की डिमांड को अपनी तरफ खींचती है। सोयाबीन और सरसों के भाव इस समय न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे ही चल रहे हैं। अगर आप भी मंडी बाजार से जुड़े हैं और आपको रोजाना भाव और आगे का अनुमान साथ में आयात-निर्यात से संबंधित जानकारी चाहते हैं, तो हमारी प्रीमियम सेवा मात्र ₹500 में 6 महीने के लिए उपलब्ध है। इसके लिए 9518288171 पर संपर्क करें। ऐसे में सस्ती भारतीय खल अंतराष्ट्रीय स्तर पर मुकाबला दे सकती है। पिछले साल के मुकाबले भाव काफी कमजोर चल रहे हैं और यहां से आगे मंदी की कम और तेजी की संभावना ज्यादा नजर आती है। साथियों ध्यान देने वाली बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रही टेरिफ वार निर्यात किए जाने वाले किसी भी जीन्स के भाव को बदल सकती है इसलिए आपको बाजार की हलचल पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है। व्यापार अपने विवेक से करें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।