गेहूं के आखिरी समय पर करें यह उपाय, उत्पादन में होगी 5 क्विंटल तक बढ़ोतरी
किसान साथियों, हर किसान का सबसे बड़ा सपना होता है कि उसकी फसल बेहतर हो और वह उच्च गुणवत्ता का उत्पादन हासिल कर सके। भारत में उगाई जाने वाली फसलों में गेहूं एक ऐसी फसल है, जो बहुत महत्वपूर्ण है और किसानों के लिए मुख्य आय का आर्थिक स्रोत भी है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मौसम में आए बदलाव और बढ़ते तापमान ने किसानों के लिए गेहूं की फसल की उपज पर असर डालना शुरू कर दिया है। गेहूं के उत्पादन में इस गिरावट का मुख्य कारण यही बढ़ता तापमान है। क्योंकि जब तापमान अत्यधिक बढ़ता है, तो गेहूं की फसल का विकास प्रभावित हो सकता है। बढ़ते तापमान का असर दानों के आकार, उनके विकास, और अंततः उपज पर पड़ता है।
लेकिन क्या आपको लगता है कि इस बढ़ते तापमान के बावजूद गेहूं के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, तो हम आपको बता दें कि हां, यह संभव है। इस रिपोर्ट में हम आपको कुछ ऐसी तकनीकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी मदद से आप बढ़ते तापमान के बावजूद अपने गेहूं के उत्पादन को 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ा सकते हैं। यह जानकारी खासतौर पर उन किसानों के लिए बेहद उपयोगी होगी जो गेहूं की बुवाई करने के बाद अब इसकी देखभाल करने के बारे में सोच रहे हैं। तो चलिए इस विशेष जानकारी को विस्तार से जानते हैं इस रिपोर्ट में।
तापमान के अनुसार सिंचाई
दोस्तों, जब तापमान बढ़ता है, तो सबसे पहले गेहूं की फसल में जो असर दिखाई देता है, वह उसकी बालियों के आकार और दानों के भरने पर होता है। अगर तापमान बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, तो दाने छोटा आकार ले सकते हैं और उनमें भराव ठीक से नहीं हो पाता। इसके अलावा, अगर पानी की कमी हो, तो दाने पिचक सकते हैं, जिससे उपज में कमी आती है। इस समस्या का सबसे प्रभावी समाधान सिंचाई है। सिंचाई के माध्यम से आप अपनी फसल को जरूरी पानी दे सकते हैं और तापमान के प्रभाव को कुछ हद तक कम कर सकते हैं। बढ़ते तापमान के कारण बाहर के वातावरण का तापमान बढ़ जाता है, लेकिन जब आप खेत में सिंचाई करते हैं तो यह तापमान तीन से पांच डिग्री तक कम हो सकता है। सिंचाई का सबसे अच्छा समय सुबह या शाम के वक्त होता है, क्योंकि दिन में पानी का वाष्पीकरण ज्यादा होता है।
सिंचाई के तरीके
साथियों, अगर आप स्प्रिंकलर से सिंचाई करते हैं तो भी यह काफी प्रभावी हो सकता है, लेकिन अगर आप फ्लड इरिगेशन का तरीका अपनाते हैं, तो खेत में पानी भरने से खेत का तापमान और भी कम हो सकता है। सिंचाई करते समय यह ध्यान रखें कि यदि हवा तेज चल रही हो, तो सिंचाई न करें। हवा की दिशा को ध्यान में रखते हुए सिंचाई करनी चाहिए। यदि आप रात में सिंचाई करते हैं, तो यह और भी लाभकारी हो सकता है क्योंकि रात के समय पानी अधिक अच्छी तरह से मिट्टी में समा जाता है और फसल उसे अच्छे से अवशोषित करती है।
बढ़ते तापमान के बीच पौधों का स्ट्रेस
दोस्तों, यह समय गेहूं के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है क्योंकि जब बालियां निकल रही होती हैं। तो इस समय पर किसी भी तरह का स्ट्रेस फसल के उत्पादन पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। इस समय यदि पौधों को पानी की कमी या अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़े, तो दाने छोटे हो सकते हैं और उनका वजन भी कम हो सकता है। इसके लिए सबसे जरूरी है कि आप खेत में समय-समय पर सिंचाई करते रहें और फसल को किसी भी तरह के स्ट्रेस से बचाएं।
पोषक तत्वों का सही प्रबंधन
साथियों, गेहूं की फसल की इस आखिरी स्टेज पर आपकी फसल को सही पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, ताकि वह गर्मी और बढ़ते तापमान से बच सके। इसके लिए सबसे पहले आपको एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) का सही अनुपात देना चाहिए। गेहूं की फसल में इस दौरान, पोटाश का उपयोग खासतौर पर महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पौधों को स्ट्रेस से बचाता है और बालियों में दानों का भराव ठीक से होने में मदद करता है। पोटाश की स्प्रे करने से आपकी फसल न केवल तापमान के प्रभाव से बच सकती है, बल्कि यह पौधों के अंदर भोजन बनाने की प्रक्रिया को भी तेज कर देती है। पोटाश की सही मात्रा का स्प्रे करने के लिए आप एनपी 00:00:50 की 1 किलो मात्रा को 150 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे कर सकते हैं। गेहूं की फसल में उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ पोटाश में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी काफी अधिक होती है जो फसल को रोगों के प्रभाव से बचाने में भी मददगार होती है।
गेहूं की फसल में बीमारियों से बचाव
साथियों, जब गेहूं की फसल बढ़ रही होती है, तो कई बार फसल में बीमारियां भी आ सकती हैं, और कई बार तो कई प्रकार की बीमारियां फसल में एक साथ आ जाती हैं जैसे येलो रस्ट (पीड़ा रथवा)। यह बीमारी खासकर गेहूं की पत्तियों को प्रभावित करती है और यदि इसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया जाए, तो यह उत्पादन को आधे से भी ज्यादा घटा सकती है। येलो रस्ट के लक्षणों को पहचानने के लिए, आपको पत्तियों को ध्यान से देखना चाहिए। अगर पत्तियां पीली या हल्दी रंग की हो रही हैं, तो यह येलो रस्ट का संकेत हो सकता है। ऐसे में आपको तुरंत फंजीसाइड का इस्तेमाल करना चाहिए, जैसे कि टेबुकोनाजोल या एजक्स स्टोबल। इनका उपयोग करने से इस बीमारी का प्रभाव कम हो सकता है और फसल की सेहत बनी रहती है। इसकी रोकथाम के लिए प्रोपिकोनाज़ोल 25 ईसी या टेबुकोनाज़ोल 25.9 ईसी का 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 200 लीटर घोल का प्रति एकड़ छिड़काव करें।
विशेष देखभाल और फसल का पालन
साथियों, जब गेहूं की बालियां पूरी तरह से बाहर निकलने लगती हैं, तो यह वह समय होता है जब सबसे अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है। इस समय के दौरान, आपको अपनी फसल को पोषक तत्वों की सही मात्रा देना चाहिए और किसी भी तरह के तनाव से बचाना चाहिए। साथ ही, जो फसल पिछेती बुवाई के कारण कमजोर है, उसे अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है। ऐसी फसलों को स्प्रे द्वारा पोषक तत्व जैसे कि एनपीके या पोटाश दिया जा सकता है, जो उन्हें बढ़ते तापमान के प्रभाव से बचा सकते हैं और दानों के अच्छे विकास में मदद कर सकते हैं।
नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।