गेहूं की फ़सल में यह प्रयोग आपको बना देगा करोड़पति | पैदावार 80 मण प्लस
किसान साथियों भारत में कृषि अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में लगातार नए प्रयास किए जा रहे हैं ताकि किसानों को अधिक उत्पादन मिले और उनकी आमदनी बढ़े। इसी दिशा में इंदौर स्थित कृषि अनुसंधान केंद्र ने गेहूं की दो नई उन्नत किस्में विकसित की हैं, जिन्हें HI 1650 और HI 1655 नाम दिया गया है। ये किस्में पारंपरिक गेहूं की तुलना में कई मामलों में बेहतर हैं, जिनमें उच्च पोषण मूल्य, बेहतर उपज, और कम सिंचाई की आवश्यकता प्रमुख हैं।
HI 1650 और HI 1655 किस्मों का विशेष रूप से बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश के अन्य सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में सफल परीक्षण किया गया है। इनके पौधों की वृद्धि और उपज दर को देखते हुए यह स्पष्ट हो गया है कि ये किस्में किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। इस अनुसंधान का प्रमुख उद्देश्य किसानों को ऐसी किस्में प्रदान करना था जो कम पानी में भी अधिक उत्पादन दे सकें, जिससे जल संकट वाले क्षेत्रों में खेती करना आसान हो जाए।
कम सिंचाई में उच्च उपज
परंपरागत गेहूं की किस्मों को अधिक जल की आवश्यकता होती है, जिससे सिंचाई पर निर्भरता बढ़ जाती है। लेकिन HI 1650 और HI 1655 किस्मों को विकसित करने का मुख्य उद्देश्य यह था कि कम से कम सिंचाई में भी गेहूं की पैदावार अधिक हो। इन किस्मों को मात्र तीन सिंचाइयों की आवश्यकता होती है, जिससे यह पानी की बचत करने के साथ ही किसानों के लिए आर्थिक रूप से भी फायदेमंद साबित होती हैं।
ये दोनों किस्में 70 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देने में सक्षम हैं, जो पारंपरिक गेहूं किस्मों की तुलना में कहीं अधिक है। औसतन, इन किस्मों से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज ली जा सकती है, जो बाजार में बेहतर कीमत दिलाने में सहायक होगी।
पोषण तत्वों से भरपूर गेहूं
HI 1650 और HI 1655 केवल उच्च उपज ही नहीं देते, बल्कि इनके दानों में प्रोटीन, जिंक, और आयरन जैसे पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यह खासियत इन्हें पारंपरिक गेहूं से अलग बनाती है, जिससे यह सेहत के लिए अधिक लाभदायक होते हैं।
अक्सर देखा गया है कि बाजार में मिलने वाले गेहूं में पोषण तत्वों की मात्रा कम होती है, जिससे लोगों को आवश्यक पोषण नहीं मिल पाता। लेकिन इन नई किस्मों में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद कर सकते हैं। यही कारण है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ और खाद्य उद्योग भी इस गेहूं को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
ब्रेड, बिस्कुट और चपाती उद्योग में बढ़ती मांग
HI 1650 और HI 1655 किस्मों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनका उपयोग ब्रेड, बिस्कुट और चपाती बनाने में किया जाता है। इन गेहूं के दाने बेहद चमकीले और सुनहरे होते हैं, जो इन उत्पादों के लिए आदर्श माने जाते हैं। इसकी मांग भारत और अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेड और बिस्कुट उद्योग लगातार बढ़ रहा है। इन खाद्य उत्पादों के लिए उच्च गुणवत्ता वाला गेहूं आवश्यक होता है, जो सही स्वाद और बनावट प्रदान कर सके। इन नई किस्मों की मांग बड़ी कंपनियों द्वारा तेजी से बढ़ रही है ये इसको परंपरागत गेहूं की तुलना में HI 1650 और HI 1655 की बाजार में अधिक कीमत मिलती है। सामान्य गेहूं की तुलना में इनकी कीमत डेढ़ से दो गुना तक अधिक होती है
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।