साठा धान की जगह पर अभी से लगा दें यह फसल | कम पानी में मिलेगा भरपूर उत्पादन
किसान साथियों मार्च के महीने में किसान अक्सर सरसों, आलू और गन्ने की कटाई के बाद खेतों को खाली छोड़ देते हैं। पारंपरिक रूप से, कुछ किसान इस समय साठा धान की खेती करते हैं, लेकिन यह जल संकट को और गहरा बना सकता है। धान की फसल को अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती है, जिससे भूमिगत जल स्तर तेजी से घटता है। इसके अतिरिक्त, साठा धान की खेती से किसानों को अपेक्षाकृत कम लाभ होता है। इसके विपरीत, मक्का की खेती एक उत्कृष्ट विकल्प है क्योंकि इसे कम पानी में भी उगाया जा सकता है। मक्का तेजी से बढ़ने वाली फसल है और इसकी कटाई मात्र 90-95 दिनों में की जा सकती है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, मक्का की खेती कम लागत में अधिक उत्पादन प्रदान करती है। यह फसल उर्वरकों और कीटनाशकों की अधिक मात्रा की मांग नहीं करती, जिससे किसानों का खर्च कम हो जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र नियामतपुर के प्रभारी डॉ. एन. सी. त्रिपाठी के अनुसार, मक्का की खेती किसानों के लिए बेहद उपयोगी हो सकती है, क्योंकि यह कम लागत में अधिक मुनाफा देती है। मक्का का उपयोग विभिन्न तरीकों से किया जाता है, जैसे कि पशु चारे के रूप में, मुर्गियों के दाने के रूप में, और ताजा भुट्टे के रूप में। इसकी बहुउद्देश्यीय उपयोगिता इसे साठा धान की तुलना में अधिक लाभकारी बनाती है। किसान इसे कच्चे, पकाए हुए या हरे चारे के रूप में बेच सकते हैं, जिससे उन्हें अलग-अलग स्रोतों से आय प्राप्त होती है।
मक्का की खेती के लिए सबसे पहले उच्च गुणवत्ता वाले बीज का चयन करना आवश्यक होता है। यदि किसान देसी किस्म के बीज का उपयोग करना चाहते हैं, तो कंचन, सूर्या या जौनपुरी जैसी किस्में एक बेहतरीन विकल्प हो सकती हैं। इसके अलावा, हाइब्रिड और बेबी कॉर्न की विभिन्न किस्में भी बाजार में उपलब्ध हैं, जो अधिक उपज देने में सक्षम होती हैं। मक्का की बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करना चाहिए। खेत की उचित नमी बनाए रखने के लिए इसे डिस्क हैरो से अच्छी तरह जोतना चाहिए। बुवाई के दौरान, लाइन से लाइन की दूरी लगभग 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेमी रखनी चाहिए। बीज लगाने से पहले, उन्हें रोग प्रतिरोधक बनाने के लिए शोधन करना जरूरी होता है। 1 किलो बीज को शुद्ध करने के लिए 2.5 ग्राम कारबेंडाजिम का उपयोग किया जा सकता है। यह तकनीक मक्का की फसल को बीमारियों से बचाने में मदद करती है और फसल की गुणवत्ता को बढ़ाती है।
मक्का की खेती में जल प्रबंधन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। चूंकि यह फसल कम पानी में भी अच्छी उपज देती है, इसलिए ड्रिप सिंचाई या स्प्रिंकलर सिस्टम का उपयोग करना लाभकारी हो सकता है। इससे न केवल पानी की बचत होती है, बल्कि पौधों को समान रूप से नमी भी मिलती है। उर्वरकों के सही उपयोग से फसल की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है। मक्का की फसल को उर्वरकों की अधिक मात्रा की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और पोटाश की संतुलित मात्रा देना आवश्यक है। 50-60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फॉस्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से देना चाहिए। साथ ही, जैविक खाद और हरी खाद का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
साथियों मक्का की कटाई 90-95 दिनों में की जा सकती है। जब फसल पूरी तरह पक जाती है, तो इसे काटकर बाजार में आसानी से बेचा जा सकता है। यदि किसान जल्दी मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो वे मक्का को हरे चारे के रूप में बेच सकते हैं या कच्चे भुट्टे के रूप में बाजार में उतार सकते हैं। मक्का का इस्तेमाल मुर्गियों और मवेशियों के चारे के रूप में भी किया जाता है, जिससे इसकी मांग बाजार में बनी रहती है। इसके अलावा, उद्योगों में भी मक्का का उपयोग किया जाता है, जैसे कि स्टार्च निर्माण, फूड प्रोसेसिंग और बायोफ्यूल उत्पादन में। इन सभी कारणों से, मक्का की खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है।
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।