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कम खर्च में बम्पर पैदावार लेनी है तो यहां जाने आलू की उन्नत खेती की A टू Z जानकारी

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किसान साथियों, इस समय उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आलू की बुवाई की तैयारी जोरों पर है। किसान अगेती आलू की बुवाई के लिए अपनी भूमि तैयार कर रहे हैं, जिससे वे जल्दी फसल काट सकें और बाजार में अच्छा मुनाफा कमा सकें। आलू की खेती में सही समय पर बुवाई और उर्वरक का उपयोग करना अत्यंत आवश्यक होता है, ताकि फसल की वृद्धि अच्छी हो और उत्पादन अधिक हो।

अगेती आलू की खेती का महत्व

अगेती आलू की बुवाई किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है, जो जल्दी उपज प्रदान करती है और मुनाफा बढ़ाने में मदद करती है। उत्तर प्रदेश के कई जिलों, जैसे शाहजहांपुर आगरा, में किसान अगेती आलू की बुवाई करते हैं। अगेती आलू की बुवाई का सही समय सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के पहले सप्ताह तक होता है। इस समय मौसम ठंडा और अनुकूल होता है, जो आलू के पौधों की बेहतर वृद्धि में सहायक होता है। इस समय पर की गई बुवाई से फसल को सर्दियों की शुरूआत में पकने का मौका मिलता है, जिससे किसान जल्दी आलू की कटाई कर सकते हैं।

आलू की प्रमुख किस्में और उनकी विशेषताएं

  1. सूर्या किस्म
    आलू की सूर्या किस्म जल्दी पकने वाली किस्मों में से एक है, जिसे 70 से 90 दिनों में तैयार किया जा सकता है। यह किस्म मध्य सितंबर में बुवाई के लिए उपयुक्त है, और किसान इससे 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर सकते हैं। अक्टूबर के पहले सप्ताह में लगाने पर यह पैदावार 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकती है।

  2. कोलंबा किस्म
    कोलंबा आलू की किस्म आमतौर पर 75 दिनों में तैयार हो जाती है और यह दुनिया के 50 से अधिक देशों में उगाई जाती है। इसकी उच्च गुणवत्ता, आकर्षक दिखावट, और स्वाद इसे किसानों के बीच बेहद लोकप्रिय बनाता है। यह किस्म कई रोगों के प्रति प्रतिरोधी होती है और इसे लंबे समय तक संग्रहीत किया जा सकता है। यहां तक कि कम उपजाऊ भूमि में भी कोलंबा किस्म से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है,

  3. सैंटाना किस्म
    सैंटाना आलू की किस्म उच्च उपज देने के लिए जानी जाती है। इसके आलू बड़े और एकसमान होते हैं, जिससे बाजार में इसकी मांग अधिक होती है। सैंटाना किस्म की फसल रोग प्रतिरोधी होती है, जो किसानों को अतिरिक्त लाभ प्रदान करती है। इसका अच्छा स्वाद और बेहतरीन गुणवत्ता इसे भारत में कई क्षेत्रों में लोकप्रिय बनाते हैं।

  4. कुफरी पुखराज किस्म
    कुफरी पुखराज आलू की किस्म कम समय में तैयार हो जाती है और इसे विशेष रूप से उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इसका उत्पादन अन्य किस्मों की तुलना में अधिक होता है और इसके कंद सफेद और अंदर से पीले होते हैं। इस किस्म की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर होती है, जिससे किसान इसका चयन अधिक करते हैं।

  5. कुफरी सिंदूरी किस्म
    कुफरी सिंदूरी आलू की किस्म भी कम समय में पकने वाली किस्मों में से एक है। यह किस्म 80 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को जल्दी लाभ प्राप्त होता है। इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 300 क्विंटल तक हो सकती है। बाजार में इसकी मांग अधिक होती है, जिससे किसान इस किस्म से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

खरपतवार प्रबंधन की आवश्यकता

आलू की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है, लेकिन फसल में खरपतवार एक बड़ी समस्या बनती है। खरपतवार न केवल आलू के पौधों के साथ पोषक तत्वों और पानी के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, बल्कि कई कीटों को संरक्षण भी प्रदान करते हैं। खरपतवारों से आलू की फसल को बचाने के लिए जरूरी है कि किसान बुवाई के समय ही सही प्रबंधन अपनाएं। खरपतवार नियंत्रण न करने पर ये फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे उपज में कमी आ सकती है। किसान अगर शुरुआत में ही इस समस्या का समाधान करते हैं, तो आलू की गुणवत्ता और उपज में वृद्धि हो सकती है।

आलू की फसल में उर्वरक का संतुलित उपयोग

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, आलू की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए उर्वरकों का सही और संतुलित उपयोग अत्यंत आवश्यक है। आलू की बुवाई के समय किसानों को प्रति हेक्टेयर 100 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 45 से 60 किलोग्राम फास्फोरस, और 100 किलोग्राम पोटेशियम का प्रयोग करना चाहिए।

उर्वरक डालने का सही तरीका भी बहुत महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि उर्वरकों की आधी मात्रा बुवाई के समय बेसल डोज के रूप में डालें, और शेष आधी मात्रा बुवाई के 25 से 27 दिनों के बाद डालें। यह सुनिश्चित करता है कि पौधों को पोषक तत्वों की निरंतर आपूर्ति होती रहे, जिससे फसल की वृद्धि बेहतर हो सके।

बीज शोधन से रोगों से बचाव

खेत तैयार करने के बाद बीज शोधन करना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि यह फसल को फंगस जैसे रोगों से बचाता है। बीज शोधन के लिए किसान 0.02 ग्राम मैंकोजेब (Mancozeb 75% WP) को प्रति लीटर पानी में घोलकर आलू के कटे हुए या साबुत आलू को 10 मिनट तक इसमें भिगो सकते हैं। इसके बाद, आलू को छाया में सुखा लें और फिर खेत में बोएं। यह विधि फसल को बीमारियों से बचाकर उसकी गुणवत्ता और उपज को बढ़ाने में मदद करती है।

खरपतवार प्रबंधन

किसान भाइयो आलू की फसल में खरपतवार एक बड़ी समस्या है, जो पौधों की वृद्धि में रुकावट पैदा करती है।इसके लिए किसानों को बुवाई के तुरंत बाद पेंडीमेथिलीन (Pendimethalin) नामक रासायनिक खरपतवार नाशक का प्रयोग करना चाहिए। इस रसायन का 500 मिलीलीटर से 1 लीटर घोल बनाकर खेत में छिड़काव करें। इससे खेत में खरपतवार उगने से रोका जा सकता है, जिससे फसल की वृद्धि में कोई बाधा नहीं आती और उपज बेहतर होती है।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।