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गेहूं का बम्पर उत्पादन चहिए तो अभी से अपना लो बुवाई से सिंचाई तक की ये जरूरी टिप्स

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किसान साथियो बिहार में गेहूं की खेती एक महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है, जो न केवल राज्य के किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारती है बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बदलते मौसम और कृषि के आधुनिक तरीकों ने गेहूं की खेती को और भी प्रभावशाली बना दिया है। सही प्रजातियों का चयन, समय पर बुवाई और उन्नत प्रबंधन तकनीकें अपनाकर किसान अपनी उपज में न केवल वृद्धि कर सकते हैं, बल्कि इसकी गुणवत्ता को भी बेहतर बना सकते हैं।

बिहार राज्य में गेहूं की खेती का क्या है महत्व
बिहार की उपजाऊ भूमि और अनुकूल जलवायु गेहूं की खेती के लिए आदर्श मानी जाती है। इस क्षेत्र में उगाए जाने वाले गेहूं की अच्छी गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता इसे देश के अन्य हिस्सों से अलग बनाती है। हालांकि, खेती में आने वाली चुनौतियां जैसे बदलता मौसम, फसल की बीमारियां, और जल प्रबंधन की समस्याएं किसानों के लिए चिंता का विषय बनती हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सही जानकारी और उन्नत प्रबंधन का होना जरूरी है।

गेहूं की खेती करते समय करे गेहूं की उन्नत प्रजातियों का चयन
किसी भी फसल की उपज और गुणवत्ता में बीज की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। बिहार में गेहूं की खेती के लिए अगात और मध्यात प्रजातियों का चयन किया जाता है। अगात प्रजातियां जल्दी पकने वाली होती हैं और कम समय में अच्छा उत्पादन देती हैं। HD 2967 और सबौर श्रेष्ठ जैसी प्रजातियां इस श्रेणी में आती हैं। इनकी बुवाई का सही समय 25 नवंबर से 5 दिसंबर तक होता है। दूसरी ओर, मध्यात प्रजातियां जैसे सबौर निर्जल 6 दिसंबर से 20 दिसंबर के बीच बोई जाती हैं। ये उन्नत प्रजातियां न केवल अधिक पैदावार देती हैं, बल्कि रोग प्रतिरोधी भी होती हैं, जिससे किसानों का उत्पादन जोखिम कम हो जाता है। इसके अलावा, सबौर निर्जल जैसी प्रजातियां कम पानी में भी अच्छा उत्पादन देने की क्षमता रखती हैं, जो बिहार के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है।

गेहूं की बुवाई का सही समय और तरीका क्या है
गेहूं की फसल के लिए सही समय पर बुवाई करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह फसल के विकास और पैदावार को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। बिहार में अगात प्रजातियों की बुवाई 25 नवंबर से शुरू हो जाती है और 5 दिसंबर तक पूरी कर लेनी चाहिए। इसी तरह, मध्यात प्रजातियों के लिए 6 दिसंबर से 20 दिसंबर का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। बुवाई के समय बीजों का चयन और उनका उपचार भी महत्वपूर्ण है। बीजों को बुवाई से पहले रोगनाशक दवाओं से उपचारित करना चाहिए, ताकि फसल की बीमारियों से बचाव किया जा सके। सही मात्रा में बीजों का उपयोग और उचित दूरी पर बुवाई से पौधों को पर्याप्त पोषण मिलता है, जिससे उनकी वृद्धि में कोई बाधा नहीं आती।

गेहूं की फसल में कब करनी चाहिए सिंचाई
सिंचाई गेहूं की खेती में एक प्रमुख भूमिका निभाती है। फसल को उसकी आवश्यकतानुसार पानी मिलना बेहद जरूरी है। बिहार के किसानों के लिए यह जानना आवश्यक है कि सिंचाई कब और कितनी बार करनी चाहिए। पहली सिंचाई बुवाई के 21 दिन बाद करनी चाहिए। इस समय जड़ें विकसित हो रही होती हैं और पानी पौधे की बढ़वार में सहायक होता है। दूसरी सिंचाई 45-50 दिन बाद करनी चाहिए, जब पौधे में बालियां बनने लगती हैं। तीसरी सिंचाई 55-60 दिन बाद और चौथी सिंचाई 75-80 दिन के बाद करनी चाहिए। अगर मौसम शुष्क है और फसल को अतिरिक्त पानी की जरूरत महसूस हो, तो 110 दिन बाद अंतिम सिंचाई की जानी चाहिए। अंतिम सिंचाई फसल को "टर्मिनल हिट" से बचाने में मदद करती है। यह समस्या गर्मियों में अधिक तापमान के कारण होती है, जिससे गेहूं के दाने चटक जाते हैं और उत्पादन में कमी आ जाती है। इस सिंचाई से दानों की गुणवत्ता बनी रहती है और पैदावार में भी सुधार होता है।

गेहूं की फसल में खरपतवार को कैसे करे नियंत्रण
फसल के बेहतर विकास के लिए खेत में खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी है। अनचाहे पौधे न केवल गेहूं की फसल के पोषक तत्वों का उपभोग करते हैं, बल्कि उनकी वृद्धि में भी बाधा डालते हैं। खेत में समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके इन खरपतवारों को हटा देना चाहिए। इसके अलावा, फसल की नियमित निगरानी करें, ताकि किसी भी तरह की बीमारी या कीटों के आक्रमण का तुरंत समाधान किया जा सके। कीटनाशकों और जैविक उपचार का उपयोग करके फसल की रक्षा की जा सकती है।

फसल को टर्मिनल हिट से कैसे बचाए
बिहार जैसे राज्यों में गेहूं की फसल को टर्मिनल हिट की समस्या से बचाना एक चुनौती है। जब फसल पकने के आखिरी चरण में होती है, तो तापमान में वृद्धि के कारण दाने सूखने और चटकने लगते हैं। इससे न केवल उत्पादन में गिरावट आती है, बल्कि गेहूं की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। टर्मिनल हिट से बचाव के लिए 110 दिन बाद फसल की अंतिम सिंचाई जरूर करें। यह सिंचाई पौधों को पर्याप्त नमी प्रदान करती है और दानों को समय से पहले सूखने से रोकती है।

गेहूं की कोसनी प्रजातिया बेहतर है
HD 2967, सबौर श्रेष्ठ और सबौर निर्जल जैसी प्रजातियां किसानों के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती हैं। ये प्रजातियां बेहतर गुणवत्ता के साथ अधिक उत्पादन देती हैं। HD 2967 रोग प्रतिरोधी है और जलवायु में बदलाव का प्रभाव भी इस पर कम पड़ता है। सबौर श्रेष्ठ जल्दी पकने वाली प्रजाति है, जो बाजार में जल्दी पहुंचने के कारण बेहतर कीमत दिला सकती है। सबौर निर्जल कम पानी में भी अच्छे परिणाम देती है, जो जल संकट वाले क्षेत्रों में उपयोगी है।

खेती में जैविक और उन्नत तकनीकों का करे उपयोग
गेहूं की खेती में उन्नत तकनीकों और जैविक तरीकों को शामिल करके उत्पादन और गुणवत्ता में बड़ा सुधार किया जा सकता है। जैविक खादों का उपयोग मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखता है और फसल को प्राकृतिक पोषण प्रदान करता है। इसके साथ ही, ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग जैसी तकनीकें पानी की बचत करती हैं और फसल को आवश्यक नमी प्रदान करती हैं।

गेहूं की फसल से क्या होगा फायदा
गेहूं की उन्नत प्रजातियों का उपयोग, सही समय पर बुवाई, सिंचाई और फसल प्रबंधन से न केवल उत्पादन में वृद्धि होती है, बल्कि किसानों की आय में भी सुधार होता है। उच्च गुणवत्ता वाले गेहूं की मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है, जिससे किसानों को अच्छे दाम मिल सकते हैं। इसके अलावा, अगर किसान जैविक गेहूं का उत्पादन करते हैं, तो उन्हें प्रीमियम कीमतें मिल सकती हैं। जैविक फसलों की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे किसानों के लिए नए अवसर पैदा हो रहे हैं।

नोट:- रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।