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धान में 30 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन लेना है तो ये रिपोर्ट जरूर देख लें

dhan ka utpadan kaise badhayen
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धान का अच्छा उत्पादन लेने के लिये हमारे किसान साथी शुरुआत से आखिर तक हर काम सावधानी से करते हैं। लेकिन इतनी मेहनत के बावजूद धान के कल्ले (Paddy Clumps) निकलते समय की बार परेशानियां सामने आती है । धान की फसल के लिये ये सबसे जरूरी समय होता है, इसलिये जरूरी है कि उर्वरक, खाद और सिंचाई के साथ दूसरे प्रबंधन(Crop Management) कार्य ठीक प्रकार करके धान का बेहतर उत्पादन (Rice Production) लिया जाये। किसान साथियो इस समय बासमती की रोपाई पूर्ण हो चुकी है। धान में अब फूटाव (कल्ले निकलना) की अवस्था चल रही है। इस अवस्था में फ़सल का सही रख रखाव आपके धान के उत्पादन को 2 गुना तक बढ़ा सकता है। बासमती में सही मात्रा में उर्वरक और कीटनाशकों के प्रयोग की आवश्यकता होती है। जरूरत से ज्यादा उपयोग भी आपकी फ़सल को खराब कर सकता है। आज की रिपोर्ट में हम आपके लिए कुछ ऐसी जानकारी लेकर आए हैं जो आपको फ़सल के फूटाव को बढ़ा सकती है।

उर्वरक एवं खाद
हमारे किसान काफी ज्यादा मात्रा में यूरिया का प्रयोग करते हैं जिससे फ़सल में अत्याधिक ऊंचाई और गहराई आ जाती है लेकिन सच यही है कि बासमती धान की परम्परागत प्रजातियों में अपेक्षाकृत कम यूरिया की आवश्यकता होती हैं। उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी के अनुसार व फसल की मांग के आधार पर आवश्यकतानुसार करना चाहिए। यूरिया की बात करें तो 35 दिन की फ़सल होने तक यूरिया की पूरी डोज दे देनी चाहिए। कल्ले फूटने की अवस्था आम तौर पर 18-20 दिन बाद आ जाती है। इस समय से पहले यानि कि 8-10  दिन की फ़सल में यूरिया की पहली डोज दे दें। 30 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से यह काफी रहता है। उसके बाद आप दूसरी 22-25 दिन की फ़सल होने पर 50 किलो यूरिया में 10 किलो जिंक मिलाकर दे दें। और तीसरी डोज 35 दिन की फ़सल होने पर 50 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से दे दें।

बासमती निर्यात विकास अनुसंधान के अनुसार पूरी फसल के दौरान ऊँची बढने वाली प्रजातियों जैसे 1121 और 1718 आदि के लिए प्रति एकड़ 40 कि० ग्रा० डी ए पी एवं 28 कि०ग्रा० एम ओ पी (पोटाश) और 10 कि०ग्रा० जिंक सल्फेट की मात्रा पर्याप्त होती है। चाहें तो आप प्रति एकड़ 4-5 किलो मैग्नीशियम सल्फेट भी डाल सकते हैं। बौनी प्रजातियों के लिए यूरिया 56 कि०ग्रा० एवं 28 कि०ग्रा० एम ओ पी (पोटाश) और 10 कि०ग्रा० जिंक सल्फेट की मात्रा पर्याप्त होती है। डी ए पी, एम ओ पी (पोटाश) और जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा अंतिम पडलिंग के समय प्रयोग करनी चाहिए। जिंक का प्रयोग करते समय ध्यान रहे कि जिंक को कभी भी फॉस्फेटिक उर्वरको के साथ मिलाकर न दें।

बासमती निर्यात विकास अनुसंधान के अनुसार यूरिया की आधी मात्रा रोपाई के 7-10 दिन बाद एवं शेष मात्रा को दो बार में आवश्यकतानुसार प्रयोग करें। गोभ अवस्था आने के बाद यूरिया का प्रयोग नही करना चाहिए। गोभ में बाली बनते समय घुलनशील पोटाश (0:0:50) की 2 कि०ग्रा० मात्रा प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करने से दानों में चमक आती है दाने का विकास अच्छा होता है और बीमारी भी कम आती है। पोटाश पौधों में उर्वरकों के ट्रांसपोर्ट का काम करता है।

खरपतवार प्रबन्धन
लेबर उपलब्ध होने पर धान की दो बार क्रमश: 20 व 40 दिन पर निराई कर देनी चाहिए । अगर आपको दवा का प्रयोग करना है तो रसायनिक नियंत्रण हेतु ब्यूटाक्लोर 0.6 कि०ग्रा० सक्रिय पदार्थ अथवा प्रीटिलाक्लोर 50 ई0 सी0 500 मि०ली० या फिर आक्साडाजिल 80% WP 40 ग्राम सक्रिय पदार्थ की मात्रा का प्रति एकड़ प्रयोग रोपाई के 1-3 दिन के अन्दर करना चाहिए । खरपतवारनाशी प्रयोग करते समय खेत में 2-3 से०मी० पानी होना चाहिए ।

अधिक फूटाव के लिए करें पाटे का प्रयोग
बासमती धान के खेतों में अधिक फुटाव के लिए किसान भाई विभिन्न दवाओं का उपयोग करते है जबकि अधिक फुटाव के लिए सरकारी संस्थाओं द्वारा किसी भी रसायन की सिफारिश नहीं की गई है। खेत में अधिक फुटाव (अधिक कल्ले निकलना) के लिए आसान तकनीक बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित की गई है जिसमें खेत में धान की रोपाई करने के बाद 15-25 दिन होने पर एक हल्का पाटा या सीधी लकडी का लटठा (जिसका वजन लगभग 12-18 किलो तक हो व लम्बाई लगभग 2 से 3 मीटर के बीच हो) को खेत में पानी भरकर एक अथवा दो बार रस्सी की सहायता से चलाया जा सकता हैं इस तकनीक का उपयोग करने से निम्न फायदे होते हैं:
1.धान में ज्यादा कल्ले निकलते हैं यानी कि फूटाव ज्यादा होता है
2. मिट्टी की ऊपरी सतह अस्त-व्यस्त होने से भूमि में वायु संचार अधिक होता है और जड़ों का विकास बहुत अच्छा होता हैं । भूमि में दरार नहीं पडती और पानी की बचत होती हैं ।
3. पत्ती लपेटक एवं तना छेदक कीट से फसल की प्रारम्भिक अवस्था में बचाव होता है।  पूरे पौधे की बढ़वार सही तरीके से होती है। छोटे-छोटे खरपतवारों को भी नष्ट करने में मदद मिलती है। और उत्पादन में वृद्धि होती है।

उपर दिए गए विवरण को इस्तेमाल करके आप अपनी धान की फ़सल में अधिक फूटाव और अधिक उत्पादन की उम्मीद कर सकते हैं।

Disclaimer: दी गई जानकारी सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और किसानों के अनुभव से प्राप्त जानकारी पर आधारित है। मंडी भाव टुडे किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।