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दो महीने का गेहूं हो गया है तो इस तरीके से करें देखभाल | उत्पादन में लग जाएंगे 4 चांद

दो महीने का गेहूं हो गया है तो इस तरीके से करें देखभाल | उत्पादन में लग जाएंगे 4 चांद
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अगर गेहूं की फसल दो महीने की हो गई है तो इस तरीके से करें देखभाल।

किसान भाइयों, किसानों को खेती और फसलों के बारे में सही जानकारी मिलना उनकी खेती के उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए बेहद आवश्यक है। जैसा कि हम जानते हैं, खेती में छोटे-छोटे बदलाव भी बड़े प्रभाव डाल सकते हैं। गेहूं की फसल के इस 50-60 दिन के चरण में बहुत अधिक ध्यान और देखभाल की आवश्यकता होती है। इस दौरान, सिंचाई, नाइट्रोजन की आपूर्ति, सूक्ष्म पोषक तत्वों का सही समय पर छिड़काव, और रोगों का समय पर इलाज इन सभी पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। अगर आप इन सब बातों का सही तरीके से पालन करते हैं, तो निश्चित रूप से आपको अच्छी उपज मिलेगी। आप नियमित रूप से अपने खेत का निरीक्षण करें, जो भी कमी हो, उसे तुरंत ठीक करें और खेत में किसी भी प्रकार की समस्या को दूर करें, ताकि आपकी फसल स्वस्थ और मजबूत हो सके। इसी उद्देश्य से, डॉ. अमित भटनागर, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के सदस्य विज्ञान विभाग में प्राध्यापक के रूप में किसानों को नई जानकारी और अनुसंधान परिणामों से अवगत कराया, ताकि वे इनका लाभ अपनी खेती में उठा सकें। उन्होंने किसानों को गेहूं की कुछ फसल के बारे में जानकारी दी जिसे किसानों ने 14 नवंबर के आसपास बिजाई की थी, और आज, यानी 12 जनवरी को, यह लगभग 60 दिन पुरानी हो चुकी है। इस समय गेहूं की फसल एक महत्वपूर्ण अवस्था में है, और इसे सही तरीके से देखभाल करना जरूरी है ताकि इसकी उपज अच्छी हो। इस रिपोर्ट में हम इस फसल के वर्तमान चरण के बारे में बात करेंगे और साथ ही यह भी समझेंगे कि इस समय किस तरह की देखभाल और कृषि उपायों की आवश्यकता है। तो चलिए गेहूं के चरण में होने वाली गतिविधियों पर डॉक्टर साहब की राय पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

टिलरिंग स्टेज
किसान साथियों, डॉ. अमित भटनागर के अनुसार जब गेहूं की फसल लगभग 50-60 दिन की हो जाती है, तो यह एक महत्वपूर्ण अवस्था में पहुँच जाती है, जिसे हम "टिलरिंग स्टेज" कहते हैं। टिलरिंग का मतलब है जब मुख्य पौधे से कई साइड ब्रांच (टिलर) निकलते हैं। इस अवस्था में फसल की वृद्धि बहुत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि जितने टिलर निकलते हैं, उन्हें मजबूत और स्वस्थ होना चाहिए ताकि उनमें बाली आ सके। आमतौर पर, इस स्टेज में हर पौधे से चार से सात तक टिलर निकलते हैं। कुछ पौधों में तो चार टिलर होते हैं, तो कुछ में पांच या छह। जैसे हम एक पौधे को देखते हैं, तो इसमें पाँच टिलर निकले होते हैं, जबकि दूसरे में चार टिलर हैं। इन टिलरों का होना ही फसल की उपज के लिए जरूरी है। यदि टिलर तो निकल गए लेकिन वे कमजोर पड़ गए, तो वे पोषण लेने के बजाय पूरे पौधे की ऊर्जा खत्म कर सकते हैं, जिससे बाली नहीं बन पाएगी और अंततः उपज में कमी आएगी। इसलिए, इस अवस्था में सबसे अधिक ध्यान इस बात पर दिया जाना चाहिए कि टिलर मजबूत और स्वस्थ रहें। जब तक टिलर अपने विकास की अंतिम अवस्था तक नहीं पहुँचते, हमें यह सुनिश्चित करना है कि उनमें कोई पोषक तत्व की कमी न हो, नमी ठीक तरह से बनी रहे और वे स्वस्थ तरीके से बढ़ें।

सिंचाई और नाइट्रोजन की आपूर्ति
किसान साथियों, डॉ. अमित भटनागर के अनुसार गेहूं की फसल में इस अवस्था पर सिंचाई का सही समय पर होना बहुत जरूरी है। यदि खेत में पानी की कमी होगी, तो फोटोसिंथेसिस (photosynthesis) की प्रक्रिया ठीक से नहीं हो पाएगी, जिससे फसल की वृद्धि रुक सकती है और टिलर कमजोर हो सकते हैं। इस समय, सिंचाई के साथ-साथ हमें नाइट्रोजन की आपूर्ति भी करनी होती है। सिंचाई के समय, यदि आपने यूरिया (urea) की पर्याप्त मात्रा नहीं डाली है, तो यह समय है कि आप यूरिया का एक तिहाई हिस्सा खेत में डालें। सामान्यतः एक एकड़ में एक बैग यूरिया का उपयोग किया जाता है। यूरिया पौधे को नाइट्रोजन प्रदान करता है, जो फोटोसिंथेसिस को सही तरीके से होने में मदद करता है और पौधों को मजबूत बनाए रखता है। अगर सिंचाई के समय नाइट्रोजन का सही अनुपात नहीं होगा, तो पौधा कमजोर हो सकता है और बाली का गठन भी ठीक से नहीं होगा। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि यूरिया सही मात्रा में दी जाए ताकि पौधे को पूरी तरह से पोषण मिल सके और उसकी बढ़त सही दिशा में हो।

पोषक तत्व और सूक्ष्म पोषक तत्व
किसान भाइयों, कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर के वैज्ञानिक डॉ. अमित भटनागर ने बताया कि पौधों की वृद्धि के लिए किस अवस्था में गेहूं की फसल के लिए नाइट्रोजन के अलावा अन्य पोषक तत्वों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। अगर खेत में सल्फर, जिंक, कॉपर जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी है, तो फसल में पीलापन दिखाई दे सकता है और टिलर की वृद्धि प्रभावित हो सकती है। इसलिए, यह जरूरी है कि आप नियमित रूप से खेत की जांच करें और देखें कि कहीं इन सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी तो नहीं हो रही। अगर ऐसा कुछ प्रतीत हो, तो आप फोलियर स्प्रे (foliar spray) का इस्तेमाल कर सकते हैं। फोलियर स्प्रे के माध्यम से पौधे पत्तियों के जरिए पोषक तत्वों को जल्दी अवशोषित कर सकते हैं, क्योंकि इस समय पत्तियां सक्रिय रहती हैं और उनकी सतह में छोटे छिद्र (stomata) खुले होते हैं, जो पोषक तत्वों को तेजी से ग्रहण करते हैं। इस प्रकार, फोलियर स्प्रे के माध्यम से आप सल्फेट, जिंक सल्फेट, कॉपर सल्फेट, मैग्नीशियम सल्फेट जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व पौधों को दे सकते हैं, जिससे पौधे की वृद्धि और बाली का गठन बेहतर हो सकता है। गेहूं की फसल में ज़्यादा से ज़्यादा फ़ुटाव के लिए, 500 ग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 किलो यूरिया को 100 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव करना चाहिए। गेहूं की फसल में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए, किसान भाई जिंक और आयरन देने के लिए, 200 लीटर पानी में एक किलो जिंक सल्फेट और 500 ग्राम बुझा हुआ चूना मिलाकर घोल बनाना चाहिए। फिर, हर 15 दिन के अंतराल पर गेहूं पर 2-3 बार इसका छिड़काव करना चाहिए। मैंगनीज़ की कमी वाले खेत में, एक किलो मैंगनीज़ सल्फेट को 200 लीटर पानी में घोलकर दूसरी सिंचाई के 2-3 दिन पहले छिड़क देना चाहिए। आयरन सल्फेट के 0.5 प्रतिशत घोल का छिड़काव साफ मौसम में खिली धूप के बीच गेहूं पर करने से फायदा मिलता है। सल्फर की कमी वाले गेहूं के खेतों में प्रति एकड़ लगभग 10 पाउंड सल्फेट-सल्फर मिलाने की जरूरत होती है।

रोगों और खरपतवार से बचाव
किसान साथियों, डॉ. अमित भटनागर के अनुसार इस समय गेहूं की फसल में खरपतवार (weeds) से ज्यादा नुकसान नहीं होता है, क्योंकि यदि आपने पहले खरपतवार नाशक दवाइयाँ दी हैं, तो अब उनकी बढ़त नहीं होगी। हालांकि, इस समय फसल को किसी भी प्रकार के रोगों से बचाना भी बहुत महत्वपूर्ण है। खासकर रस्ट (rust) जैसे फंगल रोगों की संभावना रहती है। अगर आप देखेंगे कि आपके खेत में कहीं रस्ट या किसी अन्य रोग के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो तुरंत उस क्षेत्र में फंगल संक्रमण को रोकने के लिए फंजीसाइड (fungicide) का उपयोग करें। यह दवाइयाँ रोग को फैलने से रोकती हैं और फसल को स्वस्थ बनाए रखती हैं। गेहूं की फसल में फंगस से लड़ने के लिए, पत्तियों पर 0.1 प्रतिशत प्रोपिकोनाज़ोल (टिल्ट 25 ईसी) का एक या दो बार छिड़काव किया जा सकता है।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य ले।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।

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