Movie prime

क्या आपके चने के खेत में काली जड़ और सूंडी की समस्या है | 2 मिनट में जाने इसका इलाज

क्या आपके चने के खेत में काली जड़ और सूंडी की समस्या है | 2 मिनट में जाने इसका इलाज
WhatsApp Group Join Now
WhatsApp Channel Join Now

चने की फसल में काली जड़ और सुंडी के प्रकोप को करें जड़ से खत्म, समाधान जानिए

कृषि साथियों, भारत में चने की खेती एक महत्वपूर्ण फसल मानी जाती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। चने की फसल को लेकर किसानों की कई समस्याएं होती हैं, जिनमें बीमारियां प्रमुख होती हैं। चने के पौधों पर होने वाली बीमारियों से न केवल उत्पादन प्रभावित होता है, बल्कि किसानों को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। चने की फसल में जड़ गलन या मूल विगलन रोग लगने पर जड़ें काली होकर सड़ जाती हैं। इस रोग से ग्रस्त पौधे पीले दिखाई देते हैं और मुरझाकर मर जाते हैं। इस रिपोर्ट में हम चने की फसल में दो प्रमुख बीमारियों, काली जड़ और सुंडी के बारे में बात करेंगे, और साथ ही इनके समाधान के उपाय भी जानेंगे। इन बीमारियों से निपटने के लिए किसानों को क्या कदम उठाने चाहिए, इसे विस्तार से समझने के लिए चलिए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।

सुंडी का प्रकोप:

किसान भाइयों, चने की फसल में सुंडी का प्रकोप एक गंभीर समस्या बन सकता है। यह कीट पौधों के तने और पत्तियों को काटकर नष्ट कर देता है। इससे पौधों की बढ़वार रुक जाती है और उत्पादन में भारी गिरावट आती है। सुंडी की पहचान आसान है, यह छोटे-छोटे कीट होते हैं जो पौधों के विभिन्न हिस्सों को नष्ट कर देते हैं। चने की फसल में लगने वाले कीटों में फली भेदक सबसे खतरनाक कीट है। इस कीट के प्रकोप से चने की उत्पादकता में 20-30% की हानि होती है। इस कीट के भीषण प्रकोप की स्थिति में चने की फसल को 70-80% तक नुकसान हो सकता है। इस कीट की सुंडियां हरे या पीले रंग की होती हैं। ये पत्तियों, कलियों, और फलियों पर हमला करती हैं। ये फलियों में बन रहे हरे बीज को खाकर नष्ट कर देती हैं। इसके कारण न केवल पौधों की पत्तियाँ और तने कट जाते हैं, बल्कि वे पौधे कमजोर होकर मर सकते हैं।

सुंडी से बचाव के उपाय:

साथियों, सबसे पहले किसानों को सुंडी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए फोलियर स्प्रे का सहारा लेना चाहिए। हालांकि, सामान्य फोलियर स्प्रे से बहुत अच्छे परिणाम नहीं मिलते, जिससे खर्च भी बढ़ता है। इस स्थिति में एक प्रभावी उपाय है, लडा प्लस टरा का उपयोग। इसे 1 एमएल से लेकर 1.5 एमएल तक प्रति लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़काव करें। यह सुंडी को मारने में मदद करेगा। इसके अलावा, सुंडियों से निपटने के लिए, 50 प्रतिशत फूल आने पर 875 मिलीलीटर मोनाक्रोटोफ़ॉस 36 एसएल या 1250 ग्राम कार्बेरिल 50 डब्ल्यूपी को 625 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। चने के पौधों में सुंडी के अलावा तेला मच्छर जैसे छोटे कीट भी समस्या उत्पन्न कर सकते हैं। इनके नियंत्रण के लिए थाइमो (थाइमोथोक्साम) लिक्विड एक्टर का उपयोग किया जा सकता है। यह कीटनाशक डबल रिएक्शन में काम करता है और इसका उपयोग करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं। यह सस्ता, सुंदर और टिकाऊ विकल्प है। चने की फसल में सुंडी की रोकथाम के लिए आप 200 मिली लीटर मोनोक्रोटोफ़ास 36 एसएल या 400 मिली लीटर क्विनलफ़ास 25 ईसी या 80 मिली लीटर फ़ेनवालरेट 20 ईसी या 50 मिली लीटर साइपरमेथ्रिन 25 ईसी या 150 मिली लीटर डेकामेथ्रिन पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं। यह सभी उपाय चने की फसल को सुंडी के प्रकोप से बचाने में अत्यधिक फायदेमंद हैं।

काली जड़ (जड़ गलन) की समस्या:

किसान भाइयों, चने की फसल में काली जड़ की समस्या भी एक बड़ी चुनौती है। काली जड़ पौधों के जड़ों में फंगस के कारण उत्पन्न होती है, जिससे पौधे सूखकर मुरझाने लगते हैं। इस समस्या का प्रमुख कारण मिट्टी में मौजूद बैक्टीरिया और फंगस होते हैं, जो चने की जड़ों को संक्रमित कर देते हैं। इस संक्रमण के कारण पौधों की जड़ें सड़ने लगती हैं और फसल पूरी तरह से नष्ट हो सकती है।

काली जड़ (जड़ गलन) से बचाव के उपाय:

किसान भाइयों, काली जड़ की समस्या से चने की फसल को बचाने के लिए फसल की समय से बुआई करें और जल्दी पकने वाली प्रजातियों का चयन करें। गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। रोगी पौधों के अवशेषों को खेत में न छोड़ें। क्षेत्र के लिए सुझाई गई अवरोधी प्रजातियों का चयन करें। चने की बुआई से पहले खेतों में ट्राइकोडर्मा विरडी नामक जैव नियंत्रण की 5 किलोग्राम मात्रा को 2.5 कुंटल गोबर की खाद में मिलाकर डालें। बीज की बीजोपचार के बाद ही बुआई करें। कार्बेन्डाजिम या मैन्कोजेब या थाइरम की 1.5 से 2 ग्राम मात्रा द्वारा प्रति कि. ग्रा. बीज दर से उपचारित करें। काली जड़ से बचने के लिए ट्राइकोडर्मा का उपयोग भी अत्यधिक प्रभावशाली है। यह एक जैविक पदार्थ है, जो मिट्टी में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और फंगस को समाप्त कर देता है। यदि ट्राइकोडर्मा उपलब्ध नहीं हो तो बावा स्टीन का उपयोग भी किया जा सकता है। 2 ग्राम बावा स्टीन को 1 किलो बीज के हिसाब से मिलाकर बीजों का उपचार करें। इससे पौधों की जड़ों में संक्रमण कम होगा और सूखने की समस्या हल होगी। काली जड़ की समस्या को नियंत्रित करने के लिए किसानों को अपनी मिट्टी की देखभाल करनी भी आवश्यक है। बीज बोने से पहले मिट्टी को अच्छे से तैयार करना चाहिए और उसे जीवाणु रोधी उपचार देना चाहिए। यदि खेतों में पानी का संचरण ठीक नहीं है तो उस पर ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि पानी जमा होने से फंगस और बैक्टीरिया का विकास होता है।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

👉 चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे

👉 यहाँ देखें फसलों की तेजी मंदी रिपोर्ट

👉 यहाँ देखें आज के ताजा मंडी भाव

👉 बासमती के बाजार में क्या है हलचल यहाँ देखें

About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।