DBW 377 गेहूं की बम्पर पैदावार देखकर निकल गई सबकी हवा | जाने कितना दिया उत्पादन
किसान साथियों भारत में वर्तमान समय में गेहूं की कटाई अपने चरम पर है और कृषि अधिकारियों द्वारा विभिन्न उन्नत किस्मों के उत्पादन का विश्लेषण किया जा रहा है। इसी क्रम में जबलपुर जिले के पाटन विकासखंड के कुकरभुका गांव में हुए फसल कटाई प्रयोग के परिणामों ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है। यह प्रयोग 24 मार्च 2025 को किसान अर्जुन पटेल के खेत में किया गया, जिसमें गेहूं की किस्म DBW 377 ने 73 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की रिकॉर्ड तोड़ उपज दी। यह उपज पारंपरिक विधियों से मिलने वाले 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन से कहीं अधिक थी। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, यह शानदार उपज मुख्य रूप से रेज्ड बेड पद्धति से की गई बुआई के कारण संभव हो पाई।
रेज्ड बेड पद्धति बढ़ाती है उत्पादन
रेज्ड बेड पद्धति आधुनिक कृषि तकनीकों में से एक है, जो जल प्रबंधन, नमी संरक्षण और पौधों के उचित विकास को बढ़ावा देती है। किसान अर्जुन पटेल ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, करनाल से प्राप्त ब्रीडर बीज को अपनाया और 30 किलो प्रति एकड़ की दर से बीज बोया। यह पारंपरिक विधियों की तुलना में बीज की खपत को काफी कम करता है, जहां आमतौर पर 80-100 किलो प्रति एकड़ बीज का उपयोग किया जाता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, इस पद्धति में पौधों में अधिक कल्ले विकसित होते हैं और फसल गिरने की संभावना नगण्य रहती है। जबकि पारंपरिक विधि में केवल तीन से चार कल्ले ही आते हैं, रेज्ड बेड पद्धति से उगाए गए गेहूं में 15 से 16 कल्ले विकसित हुए, जिससे उत्पादन क्षमता में भारी वृद्धि हुई।
क्या रही कृषि अधिकारियों की प्रतिक्रिया और विश्लेषण
फसल कटाई प्रयोग के दौरान उप संचालक कृषि डॉ. एस. के. निगम की उपस्थिति में यह परीक्षण किया गया। परीक्षण के लिए पांच मीटर लंबे और पांच मीटर चौड़े क्षेत्र में फसल कटाई की गई, जिसमें 18 किलो 424 ग्राम गेहूं का उत्पादन प्राप्त हुआ। इन आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद प्रति हेक्टेयर उत्पादन 73 क्विंटल पाया गया, जो कि एक असाधारण उपलब्धि थी। डॉ. निगम ने इस उन्नत उपज के पीछे मुख्य कारकों के रूप में बेहतर जल निकासी, उपयुक्त प्रकाश संश्लेषण और पौधों के मध्य संतुलित स्थान को प्रमुख वजह बताया।
उन्नत कृषि तकनीकों का बढ़ता प्रभाव
रेज्ड बेड पद्धति के लाभों को समझाते हुए कृषि अधिकारियों ने बताया कि यह विधि विशेष रूप से नमी संरक्षण के लिए विकसित की गई है। इसमें प्रत्येक दो कतारों के बीच 25-30 सेंटीमीटर चौड़ी और 15-20 सेंटीमीटर गहरी नाली बनाई जाती है, जो न केवल जल संचयन को सक्षम बनाती है, बल्कि सिंचाई के दौरान पानी की कुशल खपत भी सुनिश्चित करती है। इससे पौधों को लंबे समय तक नमी उपलब्ध रहती है, जिससे वे सूखे जैसी परिस्थितियों में भी स्वस्थ बने रहते हैं। इस तकनीक से पौधों को सूर्य की किरणें भी अधिक मात्रा में प्राप्त होती हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण बेहतर होता है और उत्पादन में बढ़ोतरी देखी जाती है।
इस फसल कटाई प्रयोग के उत्साहजनक परिणामों को देखते हुए कृषि विभाग किसानों को उन्नत तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। रेज्ड बेड पद्धति को व्यापक रूप से अपनाने से जल संरक्षण, उत्पादन लागत में कमी और किसानों की आय में वृद्धि संभव है। कृषि विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि सरकार और कृषि अनुसंधान संस्थानों को इस प्रकार की उन्नत विधियों के बारे में किसानों को जागरूक करने के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए। इस किसान जैसे प्रगतिशील किसानों की सफलता की कहानियां अन्य किसानों को भी आधुनिक तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।