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तिल की खेती की पूरी जानकारी, कम बारिश में भी मिलेगा बढ़िया उत्पादन | कम लागत में ज्यादा मुनाफा

तिल की खेती की पूरी जानकारी, कम बारिश में भी मिलेगा बढ़िया उत्पादन | कम लागत में ज्यादा मुनाफा
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किसान साथियों सफेद तिल की उन्नत खेती किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प हो सकती है, खासकर जब तिल के बाजार मूल्य में वृद्धि हो रही हो। सफेद तिल की फसल की अवधि लगभग 80-85 दिनों की होती है, जिससे यह एक त्वरित और लाभकारी फसल बनती है। इस फसल की बुवाई रबी सीजन में फरवरी-मार्च (गेहूं, मटर, सरसों, आलू, चना की कटाई के बाद) और खरीफ सीजन में जून के अंत और जुलाई के मध्य की जाती है।

लागत: एक एकड़ में सफेद तिल की खेती की कुल लागत लगभग 12,000-15,000 रुपये के बीच आती है। इसमें बीज का खर्च 675 रुपये (2-3 किलोग्राम बीज), खेत की तैयारी का खर्च 4,000 रुपये (रोटावेटर का उपयोग), खाद का खर्च 1,800 रुपये, कीटनाशक और खरपतवार नाशक का खर्च 850 रुपये, और अन्य खर्च मिलाकर कुल लागत 9,750 रुपये के आसपास होती है।

उत्पादन: एक एकड़ में तिल की फसल से आमतौर पर 3-4 क्विंटल उत्पादन प्राप्त होता है। खाद प्रबंधन और उचित पौधे की दूरी बनाए रखते हुए, अच्छी देखभाल से यह उत्पादन बढ़ सकता है। खेत की तैयारी, उर्वरक का सही उपयोग और फसल की उचित देखरेख से बेहतर उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकता है।

समय: तिल की बुवाई जायद (गर्मियों) और खरीफ (मॉनसून) दोनों सीजन में की जा सकती है। जायद सीजन में बुवाई फरवरी के महीने में की जाती है और खरीफ सीजन में जुलाई के मध्य तक की जा सकती है। फसल की पूरी समय साइकिल लगभग 80-85 दिन होती है, जिससे यह एक त्वरित फसल बनती है।

आमदनी: तिल की एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) 2022-23 में 8,300 रुपये प्रति क्विंटल थी, जिसे 2023-24 में बढ़ाकर 8,635 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। एक एकड़ से 4 क्विंटल उत्पादन होने पर, कुल आमदनी 34,540 रुपये होती है। यह आमदनी स्थानीय मंडी भाव के अनुसार भी बढ़ सकती है।

प्रॉफिट: लागत और आमदनी के आधार पर, एक एकड़ तिल की खेती से लगभग 25,565 रुपये का लाभ होता है। यह लाभ किसानों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाता है, खासकर जब फसल की अवधि छोटी और देखरेख की जरूरत कम होती है।

भारत में सफेद तिल की खेती के लिए प्रमुख राज्य मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, और छत्तीसगढ़ हैं। उन्नत किस्में, जो भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र और प्राइवेट कंपनियों द्वारा विकसित की गई हैं, जैसे RT 446 (चेतक), RT 351, TC 25, Avani 19, Paras 2, और Swarnam Gold, फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक होती हैं। बीज की मात्रा प्रति एकड़ 2-3 किलोग्राम होती है।

भूमि की तैयारी के दौरान, खेत की मिट्टी को भुरभुरी करके जल निकास का उचित प्रबंध किया जाना चाहिए। बीज की गहराई 2-3 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20-25 सेंटीमीटर रखी जानी चाहिए। बीजों का उपचार 5 ग्राम फंगीसाइड से किया जाना चाहिए।

कीट प्रबंधन

  • 25 दिन बाद: प्रोफेनोफॉस 40% + साइपरमेथन 4% EC (25 एमए) + प्रॉपी नेप 70% WP (40 ग्राम) का स्प्रे
  • 40 दिन बाद: डाईमेथड 30% EC (25-30 एमए) + इक्का (10 ग्राम) + रोको फंगीसाइड (40 ग्राम)
  • 65 दिन बाद: सिजेंटा कंपनी की सिमस 25 एए (25 एमए) + एनपीके 13:0:45 (100 ग्राम) + बायर की एंबिशन टोनिक (25 एमए) + स्वाधीन फंगीसाइड (40 ग्राम)

खाद प्रबंधन

  • बुवाई के समय: SSP (45 किग्रा), MOP (30 किग्रा), यूरिया (20 किग्रा), गोबर की खाद (2-3 ट्रॉली)
  • 18-20 दिन बाद: यूरिया (20 किग्रा), माइक्रोन्यूट्रिएंट फर्टिलाइजर (5 किग्रा)
  • 35 दिन बाद: जिंक सल्फेट (5 किग्रा), यूरिया (30 किग्रा), ब्रक खाद, बोरनन (500 ग्राम)
  • बायर कंपनी की वीप सुपर 30 एमए का स्प्रे करें (15 लीटर पानी में 30 एमए) जब फसल 25 दिन की हो।

सल्फर का उपयोग फसल की तेल मात्रा बढ़ाने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाने में सहायक होता है। तिल की फसल में कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का समय पर स्प्रे भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।  

नोट :- दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटेरनेट पर उपलब्ध विश्वसनीय स्रोतों से की गई है किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले नजदीकी कृषि सलाह केंद्र से सम्पर्क जरूर कर लें 

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।