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समय से 8 दिन पहले आया मानसून | जाने किन फसलों को मिलेगा सबसे ज्यादा फायदा

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भारत में बारिश का मतलब सिर्फ़ मौसम का बदला मिज़ाज नहीं होता, ये लोगों की ज़िंदगियों से जुड़ा होता है। शहर में लोग भले ही इसे बस “भीगने” या “राहत” से जोड़ें, लेकिन गांव में मानसून का आना खेतों की धड़कन जैसा होता है। किसानों की नज़रें महीनों से आसमान में टिक जाती हैं, और हर एक बादल उन्हें उम्मीदों का साया लगता है। ऐसे में जब मानसून अपने तय वक्त से भी पहले आ जाए, तो वो खबर सिर्फ मौसम की नहीं होती, वो किसानों के चेहरे की मुस्कान बन जाती है। इस साल मानसून ने 25 मई को केरल में दस्तक दी, जबकि आमतौर पर ये 1 जून को आता है। मतलब, पूरे 8 दिन पहले और ये सिर्फ तारीख का फ़र्क नहीं है, ये 16 साल में सबसे जल्दी आने वाला मानसून है। अब इससे जुड़े कई सवाल उठते हैं, क्या अब हर जगह बारिश जल्दी होगी? क्या इस बार खेत लहलहाएंगे और सबसे अहम, क्या ये वाकई फायदेमंद साबित होगा। चलिए इन सब बातों को समझने की कोशिश करते हैं विस्तार से इस रिपोर्ट में।

मानसून की ताज़ा दस्तक

हर साल मानसून आता है, लेकिन इस बार तो जैसे उसे जल्दी थी! 25 मई को केरल में पहली बारिश हुई, जो कि आमतौर पर 1 जून के बाद आती है। IMD यानी मौसम विभाग ने कहा कि 2009 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब मानसून इतनी जल्दी आ गया। 2009 में वो बस 1 दिन पहले आया था, लेकिन इस बार पूरे 8 दिन पहले। अगर मानसून के इतिहास की बात करें तो इतिहास में और भी रोचक बातें हैं। 1918 में मानसून 11 मई को ही आ गया था, और सबसे लेट 1972 में 18 जून को। यानी हर साल की तारीख पक्की नहीं होती। ये मौसम के ग्लोबल पैटर्न्स, जैसे El Niño और La Niña, पर बहुत कुछ निर्भर करता है। IMD की एक बात हमेशा ध्यान रखने लायक होती है—जल्दी आना मतलब अच्छी बारिश नहीं होता, और देर से आना मतलब खराब मानसून भी नहीं होता। असली बात ये है कि मानसून की चाल कैसी रहती है, और पूरे सीजन में पानी कितना बरसता है।

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दक्षिण भारत में राहत

केरल में जैसे ही मानसून ने दस्तक दी, वैसे ही तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों में भी बारिश की उम्मीदें बन गईं। यहां के किसान खास तौर पर धान, मक्का और कपास जैसी फसलें उगाते हैं, जो पूरी तरह से मानसून की मेहरबानी पर टिकी होती हैं। अब अगर बारिश वक्त पर या थोड़ा पहले हो जाए, तो मिट्टी में नमी जल्दी आ जाती है। इसका सीधा फायदा ये होता है कि खरीफ फसल की बुवाई समय पर शुरू हो जाती है। और सिंचाई पर कम खर्च होता है। समय पर सिंचाई होने से फसल की जड़ें मजबूत होती हैं, और उत्पादन लागत घट जाती है। और यदि शहरों की बात करें तो चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहरों को भी इससे राहत मिलेगी। वहां के जलाशयों में पानी भरने का काम शुरू हो जाएगा, जो आगे चलकर पीने के पानी और बिजली उत्पादन दोनों में काम आता है।

मानसून का सफर

मौसम विभाग का कहना है कि इस बार मानसून की चाल तेज हो सकती है। अनुमान है कि 4 जून तक ये पूर्व और मध्य भारत को भी छू लेगा। यानी छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, बंगाल जैसे राज्य जल्दी ही बारिश में भीग सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो किसानों को बड़ा फायदा मिलेगा। इससे किसानों को धान की नर्सरी डालने का वक्त पूरा मिलेगा। इन राज्यों में अक्सर बारिश की देरी या असमानता से किसान परेशान रहते हैं। लेकिन इस बार मौसम की चाल उम्मीद जगा रही है कि सब कुछ समय पर और संतुलन में हो सकता है।

जल्दी मानसून का प्रभाव

बहुत लोगों को लगता है कि अगर मानसून जल्दी आ गया, तो अब खूब बारिश होगी। लेकिन ऐसा नहीं है। IMD बार-बार कहता है कि "जल्दी आना" और "अच्छी बारिश होना" ये दो अलग बातें हैं। 2023 में मानसून 8 जून को आया था, लेकिन फिर भी 6% कम बारिश हुई क्योंकि उस वक्त El Niño का असर था। इसके उलट, कई बार मानसून देर से शुरू हुआ लेकिन बारिश शानदार रही। इसलिए असली बात ये है कि बारिश कैसे आगे बढ़ती है, कहां-कहां कितनी गिरती है, और कितने दिन टिकती है। यही तय करता है कि फसल और किसान को असल फायदा मिलेगा या नहीं।

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क्या इस बार El Niño की टेंशन नहीं है

अब बात करते हैं El Niño की, जो अक्सर किसानों के लिए डर का नाम होता है। ये समुद्र के तापमान में बदलाव से जुड़ी जलवायु घटना है, जो भारत में मानसून को कमजोर कर देती है। जब ये सक्रिय होता है, तो बारिश अक्सर घट जाती है। लेकिन इस बार राहत की बात ये है कि 2025 के लिए El Niño की संभावना बहुत कम है। मौसम विभाग ने अप्रैल में ही बता दिया था कि इस साल नॉर्मल से ऊपर बारिश हो सकती है, अगर बीच में चाल धीमी न पड़े। मतलब ये कि अभी तक सब कुछ ठीक दिख रहा है, पर नज़र बनाए रखना ज़रूरी होगा।

अगले 24 घंटे में बारिश का अनुमान

मौसम विभाग की मानें तो अगले 24 घंटे कुछ इलाकों के लिए बरसात की सौगात लेकर आएंगे। जिन राज्यों में तेज बारिश की उम्मीद है—ये राज्य हैं कोंकण और गोवा, तटीय कर्नाटक और मराठवाड़ा, मध्य महाराष्ट्र, लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार, सिक्किम और पूर्वोत्तर भारत। इन जगहों पर तेज हवाओं और गरज-चमक के साथ भारी बारिश हो सकती है। खासतौर पर पूर्वोत्तर भारत के लिए ये बहुत जरूरी होता है क्योंकि वहां की खेती और जीवनशैली मानसून की पहली बारिश पर ही टिकी रहती है।

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उत्तर भारत की राह अब भी बाकी है

अब बात करें उत्तर भारत की, तो यहां मानसून को अभी कुछ हफ्ते लग सकते हैं। लेकिन हल्की-फुल्की बारिश और गरज-चमक की गतिविधि जरूर देखने को मिल सकती है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और ओडिशा में कहीं-कहीं बौछारें पड़ सकती हैं। राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में भीषण गर्मी और लू का असर बना रहेगा। कुछ जगहों पर धूलभरी आंधी और हल्की फुहारें राहत जरूर देंगी, पर तापमान में ज्यादा फर्क नहीं आने वाला।


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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।