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सरसों की बुवाई से पहले एक बार जरूर पढ़ ले ये रिपोर्ट

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राजस्थान और हरियाणा में रबी की फसलों में सरसों का महत्वपूर्ण स्थान है। सरसों की खेती की ख़ासियत यह है कि यह कम पानी में अच्छी पैदावार दे सकती है।  सरसों के तेल में 40 से 45% तेल की मात्रा पाई जाती है। पिछले दो साल से सरसों के भाव भी ठीक ठाक मिल रहे हैं और यह लगातार समर्थन मूल्य से उपर बिक रही है। गेहूं के मुकाबले सरसों की खेती में खर्च कम आता है। चूंकि सरसों की बुवाई का सीज़न चल रहा है इसलिए इस पोस्ट में हम सरसों की बुवाई के लिए कुछ जरूरी जानकारी लेकर आए हैं जिससे आपको कम खर्च में अच्छी पैदावार मिल सके उम्मींद है यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी। 

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किसान साथियो खेत किसानी के जानकार डॉक्टर रघुवीर सिंह कलीरामणा के अनुसार सरसों की खेती के लिए लिए 15 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान अनुकूल होता है। सामान्य शरद ऋतु की पहली वर्षा के दौरान ही खेतों में सरसों की बुवाई प्रारंभ हो जाती है। हाल फिलहाल में हुई बारिश का फायदा उठाकर किसानो को सरसों की बुवाई शुरू कर देनी चाहिए। आमतौर पर किसान भाई 10 अक्टूबर एवं 25 अक्टूबर के मध्य ही सरसों की बुवाई करना प्रारंभ कर देते हैं क्योंकि सरसों की खेती में थोड़ी देर होने पर यानी कि पछेती फ़सल होने पर सरसों में कीट एवं रोगों का प्रकोप अधिक होने की संभावना बढ़ जाती है।

जहां तक मिट्टी की बात है सरसों की बुवाई के लिए बलुई एवं बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी गई है। खेत में दो से तीन गहरी जुताई करने के बाद मिट्टी को भूर-भूरी करने के बाद पाटा लगा कर खेत को समतल कर देना चाहिए। कम सिंचाई के क्षेत्र में सरसों के लिए बीज की मात्रा 4 किलोग्राम प्रति हेक्टर  होती है। जबकि सिंचित क्षेत्रों में 2.5 से 3 किलो बीज दर उपयुक्त है।

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सरसों के बुवाई के दौरान सिंगल सुपर फास्फेट अथवा डाई अमोनियम फास्फेट को सिड्रील मशीन के द्वारा बीज के साथ बूआई भी की जाती है और सरसों की पौध से पौध और कतार से कतार दूरी 45 15 सेंटीमीटर के साथ बीज की गहराई 3-5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। सरसों की फसल को रोगों एवं कीटों से बचाने के लिए बुआई से पहले ही बीज उपचार करना आवश्यक है 

बिजाई का समय : सरसों की बुवाई का सही समय 15 सितंबर से 15 अक्टूबर है।

फासला : सरसों की बिजाई के लिए लाइन से लाइन का फासला 30 सें.मी. और पौधे से पौधे का फासला 10 से 15 सें.मी. रखें। 

बीज का उपचार: बीज को मिट्टी के अंदरूनी कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए बीजों को 3 ग्राम थीरम / बावस्टीन से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करें।

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बीज की गहराई :- बीज 4-5 सें.मी. गहरे बीजने चाहिए। 

बिजाई का तरीका:- बिजाई के लिए बुवाई वाली मशीन का ही प्रयोग करें। बीज की मात्रा: बीज की मात्रा 1.5 किलोग्राम प्रति एकड़ की जरूरत होती है। बिजाई के 3 सप्ताह बाद कमज़ोर पौधों को नष्ट कर दें और सेहतमंद पौधों को खेत में रहने दें।

भूमि का चयन:- सरसों की खेती रेतीली से लेकर भारी मृदाओ में की जा सकती है। लेकिन बलुई दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है। यह फसल हल्की क्षारीयता को सहन कर सकती है। लेकिन मृदा अम्लीय नही होनी चाहिए।
उपयुक्त जलवायु:- भारत में सरसों की खेती शीत ऋतु में की जाती है। इस फसल को 18 से 25 सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। सरसों की फसल के लिए फूल आते समय वर्षा, अधिक आर्द्रता एवं वायुमण्डल में बादल छायें रहना अच्छा नही रहता है
उन्नत किसमें
RH30, T59( वरुणा), RH8113 (सौरभ), RH8812 (लक्ष्मी), RH819, RH781, RH9304 (वसुंधरा), RH9801, (स्वर्ण ज्योति), RH0749, RH725,  RH0406