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देसी चने में तेजी की उम्मीद है बरकरार। जानिए क्या है फिलहाल मंदी का कारण

देसी चने में तेजी की उम्मीद है बरकरार। जानिए क्या है फिलहाल मंदी का कारण
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किसान साथियों, बाजार में इन दिनों देसी चने समेत सभी दलहनों में मंदी का दौर चल रहा है, लेकिन एक्सपर्ट्स और ट्रेडर्स का मानना है कि आने वाले समय में इसमें तेजी देखने को मिल सकती है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि देसी चने की सप्लाई उत्पादक मंडियों में काफी कम हो गई है। साथ ही, ऑस्ट्रेलिया से आयातित चने की खेप भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है, जिससे घरेलू बाजार में इसकी डिमांड बढ़ने की संभावना है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश में इस साल भी चने का उत्पादन कम हुआ है। जहां सरकार का अनुमान 110 लाख मीट्रिक टन का है, वहीं प्राइवेट एजेंसियों के मुताबिक, उत्पादन महज 80 लाख मीट्रिक टन के आसपास ही रह सकता है। वहीं, हमारी कुल जरूरत 130 लाख मीट्रिक टन से भी ज्यादा है। यानी, सप्लाई और डिमांड के बीच एक बड़ा गैप है, जो भविष्य में कीमतों को बढ़ा सकता है। फिलहाल, बाजार में रुपए की कमी के चलते खरीदारी कमजोर है, इसके चलते फिलहाल चने के भाव 5725 से 5750 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास हैं। लेकिन जैसे-जैसे स्थिति सुधरेगी, चने के दामों में उछाल आ सकता है। क्योंकि मानसून का आगमन और आगामी त्योहारी सीजन को देखते हुए बेसन की डिमांड बढ़ने से घरेलू बाजारों में चने की मांग और भी अधिक तेज हो जाएगी, जिसके चलते आने वाले समय में चने की कीमतों में तेजी की पूरी संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। चने की कीमतों में तेजी के संकेत क्यों दिखाई दे रहे हैं और कौन से कारक चने की कीमतों को प्रभावित कर सकते हैं, इन सब बातों को विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं इस रिपोर्ट में।

देसी चने में मंदी की वजह

साथियों, फिलहाल देसी चने के बाजार में मंदी का सबसे बड़ा कारण रुपए की कमी है। किसानों और व्यापारियों के पास फंड्स नहीं हैं, जिससे खरीदारी की क्षमता कमजोर हुई है। साथ ही, फॉरवर्ड ट्रेडिंग (भविष्य में डिलीवरी के लिए की गई खरीद-बिक्री) में भारी नुकसान हुआ है। कई आयातकों और स्टॉकिस्ट्स ने फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स में चना बेचा था, लेकिन जब मार्केट गिरा तो खरीदारों ने माल लेने से मना कर दिया। इस वजह से आयातकों को अपना माल घाटे में बेचना पड़ा, जिससे उन्हें करीब 30 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। यही वजह है कि अभी ऑस्ट्रेलिया से चने के नए ऑर्डर नहीं आ रहे हैं, हालांकि वहां कीमतें काफी कम हैं। अक्टूबर-नवंबर की शिपमेंट के लिए चना 5900 रुपए प्रति क्विंटल (मुंदड़ा पोर्ट पर) मिल रहा है, लेकिन भारतीय आयातक इसे खरीदने में हिचकिचा रहे हैं।

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उत्पादन कम, सप्लाई टूटी

इस साल देसी चने का उत्पादन काफी कम हुआ है। महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में पैदावार घटी है। कई इलाकों में बारिश कम होने और दाने छोटे रह जाने की वजह से प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। अगर आवक की बात करें तो चने का प्रमुख उत्पादक राज्य *राजस्थान के बीकानेर, शेखावाटी, तारानगर, नोहर-भादरा और सवाई माधोपुर जैसी मंडियों में पिछले साल के मुकाबले 23% कम आवक हुई है, जो आने वाले समय में चने की कीमतों को प्रभावित कर सकती है। वहीं दूसरी ओर, मध्य प्रदेश के चने की कीमतें ऊंची हैं, जिससे दिल्ली और एनसीआर की दाल मिलों को सस्ता माल नहीं मिल पा रहा। इसके अलावा *महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के राज्यों में भी सप्लाई प्रेशर कम हो गया है, जिससे बाजार में तेजी की उम्मीद बढ़ी है।

ऑस्ट्रेलियाई चने का असर

साथियों, जैसा कि आपको पता है कि भारत चने का सबसे बड़ा आयातक देश है, और ऑस्ट्रेलिया हमारा मुख्य सप्लायर है। फिलहाल, ऑस्ट्रेलिया में चना 600 डॉलर प्रति टन (लगभग 50,000 रुपए प्रति टन) के भाव पर उपलब्ध है, लेकिन भारतीय आयातक नए ऑर्डर नहीं दे रहे। इसकी वजह पहले हुए फॉरवर्ड ट्रेडिंग के नुकसान हैं। क्योंकि फिलहाल **मुंदड़ा पोर्ट पर अक्टूबर-नवंबर शिपमेंट का चना 5900 रुपए प्रति क्विंटल पर मिल रहा है। लेकिन सभी खर्चे मिलाकर यह 6200 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच जाएगा। बावजूद इसके हाजिर बाजार में इसकी कीमत 5600 रुपए प्रति क्विंटल ही है, जो आयातकों के लिए फिलहाल फायदेमंद नहीं है

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चने के मंडी भाव

साथियों, अगर 14 जून के मंडियों में चने के भाव की बात करें तो इंदौर मंडी ₹5400 से ₹5700, सोलापुर मंडी ₹5500 से ₹5700, जोधपुर मंडी ₹4700 से ₹5225, नागपुर मंडी ₹5800 से ₹5850 (स्थिर), जयपुर मंडी ₹5700 (नया चना), जलना मंडी ₹5300 से ₹5400 (मंदी ₹50), लातूर मंडी ₹5500 से ₹5550, राजकोट मंडी ₹5000 से ₹5400, कोलकाता पोर्ट ₹5900 (ऑस्ट्रेलिया चना), चरखी दादरी मंडी ₹5550, दिल्ली ₹5750, और कानपुर मंडी में ₹5800 प्रति क्विंटल के रहे।

क्या होगा आगे

साथियों, जैसा कि हमने रिपोर्ट में ऊपर भी बताया है कि अभी बाजार में लिक्विडिटी क्राइसिस (पैसों की कमी) है, इसलिए मंदी चल रही है। अगर सरकार आयात पर ड्यूटी कम कर दे, तो मिलों को सस्ता माल मिल सकता है। वरना, घरेलू बाजार पर निर्भरता बढ़ेगी, जिससे देसी चने के दाम ऊपर जा सकते हैं। क्योंकि जैसे-जैसे सप्लाई कम होगी, दाम बढ़ने की संभावना है। क्योंकि जैसे-जैसे स्टॉक खत्म होगा, कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है। इसके अलावा, चने की कीमतों से उलझन में पड़ी हुई मिलें और थोक खरीदार अभी कम खरीद रहे हैं, लेकिन जल्द ही डिमांड बढ़ने की संभावना है। वहीं अगर दूसरी तरफ देखा जाए, तो अगर ऑस्ट्रेलिया से नए आयात नहीं होते, तो घरेलू बाजार में सप्लाई दबाव कम होगा। जिससे आने वाले समय में देसी चने के दाम बढ़ सकते हैं। दाल मिलें अभी कम खरीदारी कर रही हैं, क्योंकि उन्हें महंगा माल नहीं चाहिए। MP और राजस्थान के चने की कीमतें ऊंची हैं, जिससे मिलों को मार्जिन कम मिल रहा है। लेकिन जब बाजार में सप्लाई और कम होगी, और त्योहारी सीजन में बेसन की डिमांड बढ़ेगी, तो मिलों को मजबूरन खरीदना पड़ेगा, जिससे दाम बढ़ सकते हैं। अगर आपके पास चने का स्टॉक है, तो आपको सही समय का इंतजार करना चाहिए। फिलहाल बाजार में मंदी है, लेकिन आने वाले महीनों में स्थिति बदल सकती है। जिन किसानों के पास अच्छा स्टॉक है, वे अक्टूबर-नवंबर तक इंतजार कर सकते हैं, क्योंकि तब तक सप्लाई और कम हो जाएगी। लेकिन छोटे ट्रेडर्स को धीरे-धीरे खरीदारी करनी चाहिए, क्योंकि बाजार में अभी भी उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है। कुल मिलाकर फिलहाल तो बाजार में मंदी है, लेकिन जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में देसी चने में तेजी आ सकती है। किसान और ट्रेडर्स को सही समय का इंतजार करना चाहिए। व्यापार अपने विवेक और संयम से करें।


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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।