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सब्जियों के भाव बढ़ने के बावजूद किसानों को क्यों नहीं मिलता फायदा | RBI की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

सब्जियों के भाव बढ़ने के बावजूद किसानों को क्यों नहीं मिलता फायदा | RBI की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के एक हालिया रिसर्च पेपर में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि टमाटर, प्याज और आलू जैसी आवश्यक सब्जियों की महंगाई का लाभ किसानों को पूरी तरह से नहीं मिल पाता है। उपभोक्ताओं द्वारा इन सब्जियों के लिए जो कीमत चुकाई जाती है, उसका केवल एक छोटा हिस्सा ही किसानों तक पहुंचता है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन तीन प्रमुख सब्जियों की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव के बावजूद किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता, जो कृषि व्यवस्था में असमानता और बिचौलियों के प्रभुत्व की ओर इशारा करता है।

कितना % लाभ किसान को मिलता है

रिसर्च के अनुसार, प्याज की महंगाई का अधिकांश लाभ बिचौलियों और थोक व्यापारियों को मिलता है, जबकि किसानों को इसका बहुत ही कम हिस्सा प्राप्त होता है। जब बाजार में प्याज की कीमतें 100 रुपये प्रति किलो तक पहुँच गई थीं, तब किसानों को उनकी प्याज का केवल 40-45 रुपये प्रति किलो का मूल्य मिला। इसका मतलब है कि उपभोक्ताओं द्वारा प्याज के लिए चुकाई गई कीमत का केवल 36% हिस्सा ही किसान तक पहुँचता है। इस असमान वितरण का मुख्य कारण आपूर्ति श्रृंखला में बिचौलियों की भूमिका और मंडी तंत्र की कमियाँ हैं, जिससे किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता।

इसी तरह, टमाटर की महंगाई का भी फायदा किसानों तक पूरी तरह नहीं पहुँचता। RBI के शोध के अनुसार, उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई गई टमाटर की कीमत का केवल 33% हिस्सा ही किसानों को मिलता है। टमाटर की कीमत जब 120 रुपये प्रति किलो तक पहुँच गई थी, तब किसानों को मंडियों में केवल 40-50 रुपये प्रति किलो का मूल्य मिला। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि टमाटर की आपूर्ति श्रृंखला में भी बिचौलियों का दबदबा है, और किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिल पाता।

आलू के मामले में स्थिति थोड़ी बेहतर है, लेकिन फिर भी किसान तक इसका केवल 37% हिस्सा ही पहुंच पाता है। आलू उत्पादन की लागत और बाजार में आलू की कीमत के बीच का बड़ा अंतर किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है, क्योंकि अधिकांश लाभ वितरण और आपूर्ति में शामिल अन्य चरणों में चला जाता है । इसलिए आलू की स्थिति भी कुछ खास बेहतर नहीं कही जा सकती है। उपभोक्ता द्वारा चुकाए गए हर 100 रुपए में से केवल 37 रुपए ही आलू किसानों तक पहुंचते हैं। आलू उत्पादन में अधिक लागत और वितरण में शामिल कई चरणों के कारण किसानों तक उचित लाभ नहीं पहुंच पाता है। आलू की कीमतें भी सीजनल रूप से बढ़ती और घटती रहती हैं, लेकिन इसका सीधा फायदा किसानों को नहीं मिलता।

क्या है समस्या की जड़

RBI के इस अध्ययन से यह साफ हो जाता है कि कृषि उपज की मूल्य श्रृंखला में किसानों को मिलने वाला हिस्सा बहुत कम है। इसका मुख्य कारण बिचौलियों का प्रभुत्व और खराब वितरण प्रणाली है। किसान सीधे बाजार तक अपनी उपज नहीं पहुंचा पाते, जिसके चलते उन्हें फसल की वास्तविक कीमत से वंचित रहना पड़ता है

रिसर्च में यह भी बताया गया है कि प्याज, टमाटर, और आलू जैसी फसलों की कीमतों में असमानता का एक बड़ा कारण है बिचौलियों का प्रभुत्व और कृषि वितरण प्रणाली में मौजूद खामियां। उत्पादन से उपभोक्ता तक पहुंचने के बीच कई चरण होते हैं, जहां कीमतें बढ़ती हैं लेकिन इसका फायदा किसानों तक नहीं पहुंच पाता। इसके अलावा, प्राइवेट मंडियों की कमी और कृषि आपूर्ति श्रृंखला में सुधार की आवश्यकता भी इस असमानता को बढ़ाती है।

समाधान क्या है इसका

दोस्तों , अध्ययन से पता चला कि चना, तुअर और मूंग जैसी दालों पर किसानों को तो उनके उत्पाद का अधिकांश हिस्सा मिलता है, जिसमें चना के लिए 75%, मूंग के लिए 70% और तुअर के लिए 65% हिस्सा किसानों के पास जाता है। यह तुलना दर्शाती है कि सब्जियों की तुलना में दालों से किसानों की आय अधिक होती है, जो इस बात की ओर संकेत करता है कि सब्जियों के मूल्य निर्धारण और विपणन में सुधार की आवश्यकता है

रिसर्च पेपर में निजी मंडियों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया गया है, खासकर सब्जियों की शीघ्र खराब होने वाली प्रकृति के संदर्भ में। इसमें कहा गया है कि सब्जियों की वितरण प्रणाली में पारदर्शिता और कुशलता लाने के लिए निजी मंडियों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है। इससे किसानों को अपनी उपज का बेहतर मूल्य मिल सकेगा और साथ ही उपभोक्ताओं को भी राहत मिलेगी। प्रतिस्पर्धा के कारण स्थानीय कृषि बाजारों का बुनियादी ढांचा मजबूत होगा, जिससे उपज का सही मूल्यांकन हो पाएगा और किसानों को उनकी मेहनत का उचित लाभ मिलेगा। इसके अलावा, यह कदम कृषि बाजार में स्थिरता लाने और मूल्य निर्धारण में सुधार का एक प्रयास है।

भंडारण सुविधाओं की कमी और वितरण की अव्यवस्था के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए, किसानों को संगठित करके और वायदा कारोबार (फ्यूचर्स ट्रेडिंग) जैसे उपायों से जोखिम प्रबंधन को मजबूत करने की सलाह दी गई है। इससे न केवल किसानों को अनुकूलतम मूल्य मिल सकेगा, बल्कि सब्जियों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव पर भी नियंत्रण रखा जा सकेगा, जिससे उपभोक्ता और किसान दोनों को फायदा होगा।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।