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मलेशियाई पाम ऑयल वायदा में आई गिरावट। जानिए कैसा रहा आज का बाजार

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ईरान और इज़राइल के बीच बढ़े तनाव और सीज़फायर की घोषणा के बाद मलेशिया के पाम ऑयल वायदा बाजार (Palm Oil Futures Market) में काफ़ी उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। 26 जून को, बेंचमार्क सितंबर पाम ऑयल वायदा (Benchmark September Palm Oil Futures) में 0.50% की गिरावट दर्ज की गई, जिसके बाद यह 3,202 रिंगिट (लगभग 935.77 डॉलर) प्रति टन पर बंद हुआ। यह गिरावट कई कारकों की वजह से आई, जिनमें इज़राइल-ईरान तनाव, मजबूत निर्यात आंकड़े और अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थितियां शामिल हैं। इस रिपोर्ट में हम पाम ऑयल की कीमतों पर किन चीज़ों का असर पड़ रहा है*, क्यों निवेशकों (Investors) में अनिश्चितता बनी हुई है**, और कैसे अन्य वनस्पति तेलों (Vegetable Oils) के साथ प्रतिस्पर्धा पाम ऑयल के दामों को प्रभावित कर रही है। साथ ही, हम यूरोपीय बाजार में पाम ऑयल की मांग और अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने के प्रभाव पर भी चर्चा करेंगे।

इज़राइल-ईरान तनाव का असर

पाम ऑयल वायदा बाजार में गिरावट का एक बड़ा कारण मध्य-पूर्व (Middle East) में बढ़ता तनाव है। क्योंकि इज़राइल और ईरान के बीच बढ़ते हुए संघर्ष ने निवेशकों को सतर्क कर दिया है। जब भी जियोपॉलिटिकल टेंशन (Geopolitical Tension) बढ़ता है, तो कमोडिटी मार्केट में अस्थिरता आ जाती है। क्योंकि निवेशक सेफ्टी (Safety) के लिए अपने पैसे अन्य जगहों पर लगाना पसंद करते हैं, जिससे पाम ऑयल जैसी कमोडिटीज़ की डिमांड कम हो जाती है। हालांकि, इस बार गिरावट ज़्यादा नहीं हुई, क्योंकि मलेशिया से पाम ऑयल निर्यात के आंकड़े मजबूत रहे। लेकिन फिर भी, अनिश्चितता (Uncertainty) बनी हुई है। अगर मध्य-पूर्व में हालात और बिगड़ते हैं, तो पाम ऑयल की कीमतों पर इसका और नकारात्मक असर पड़ सकता है।

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मलेशिया के पाम ऑयल

एक अच्छी खबर यह है कि मलेशिया से पाम ऑयल और उसके उत्पादों का निर्यात पिछले महीने की तुलना में 6.60% से 6.80% तक बढ़ा है। यह आंकड़ा जून महीने के पहले 25 दिनों का है। निर्यात बढ़ने का मतलब है कि ग्लोबल डिमांड अभी भी मजबूत है। लेकिन, निर्यात बढ़ने के बावजूद पाम ऑयल की कीमतों में गिरावट क्यों आई? इसका जवाब है मार्केट सेंटीमेंट (Market Sentiment)। क्योंकि जब निवेशकों को लगता है कि भविष्य में रिस्क (Risk) बढ़ सकता है, तो वे शॉर्ट-टर्म (Short-Term) में बिकवाली (Selling) कर देते हैं। इसलिए, अच्छे आंकड़ों के बावजूद कीमतों में थोड़ी गिरावट देखने को मिली।

अन्य खाद्य तेलों का असर

पाम ऑयल की कीमतें अन्य वनस्पति तेलों (Vegetable Oils) जैसे सोयाबीन ऑयल (Soybean Oil) और रैपसीड ऑयल (Rapeseed Oil) से भी प्रभावित होती हैं। कल शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (CBOT)** में सोयाबीन ऑयल के दाम 0.06% गिरे, जिसका असर पाम ऑयल पर भी पड़ा। दरअसल, पाम ऑयल और सोयाबीन ऑयल एक-दूसरे के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी (Competitors) हैं। अगर सोयाबीन ऑयल सस्ता होता है, तो कई खरीदार उसकी तरफ चले जाते हैं, जिससे पाम ऑयल की डिमांड कम हो जाती है। इसलिए, इंटरनेशनल मार्केट में दूसरे तेलों के दामों में उतार-चढ़ाव का सीधा असर पाम ऑयल पर पड़ता है।

यूरोपीय बाजार में मांग

यूरोपीय संघ (European Union) के आंकड़ों के मुताबिक, वर्तमान मार्केटिंग सीज़न (2024-25) में यूरोप ने सोयाबीन का 1.379 मिलियन टन आयात किया, जो पिछले साल के मुकाबले थोड़ा ज़्यादा है। लेकिन, पाम ऑयल का आयात घटकर 2.70 लाख टन रह गया, जबकि पिछले साल यह 4.70 लाख टन था। इसका मतलब है कि यूरोप में पाम ऑयल की डिमांड कम हुई है। इसकी वजह यूरोप की पर्यावरण नीतियां (Environmental Policies) हो सकती हैं, जहां पाम ऑयल को बायोडीजल (Biodiesel) में इस्तेमाल करने पर रोक लगाई जा रही है। अगर यूरोप जैसे बड़े बाजार में डिमांड कम होती है, तो इसका असर ग्लोबल पाम ऑयल प्राइस पर पड़ता है।

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अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना

एक और फैक्टर जिसने पाम ऑयल की कीमतों को प्रभावित किया, वह है अमेरिकी डॉलर (US Dollar) का मजबूत होना। मलेशियाई रिंगिट (Malaysian Ringgit) डॉलर के मुकाबले 0.12% मजबूत हुआ, जिससे विदेशी खरीदारों के लिए पाम ऑयल महंगा हो गया। जब डॉलर मजबूत होता है, तो दूसरे देशों के लिए डॉलर में ट्रेड की जाने वाली कमोडिटीज़ (जैसे पाम ऑयल) खरीदना महंगा हो जाता है। इसलिए, डिमांड थोड़ी कम हो जाती है, जिसका असर कीमतों पर पड़ता है।

भविष्य में क्या है उम्मीद

अभी के हालात देखें, तो पाम ऑयल मार्केट में मिक्स्ड ट्रेंड (Mixed Trend) चल रहा है। एक तरफ निर्यात बढ़ रहा है, जो सपोर्टिव फैक्टर है, लेकिन दूसरी तरफ जियोपॉलिटिकल टेंशन, यूरोप में कम डिमांड और डॉलर का मजबूत होना चिंता का विषय है। मलेशिया में उत्पादन धीमा होने के कारण केएलसी (बुर्सा मलेशिया डेरिवेटिव एक्सचेंज) में कल मजबूती दर्ज की गई, जहां सितंबर अनुबंध 1.19% बढ़त के साथ बंद हुआ। इसके साथ ही मलेशिया ने पाम तेल पर निर्यात शुल्क 9.58% से घटाकर 8.5% कर दिया है, जिससे वैश्विक मांग में सुधार की संभावना जताई गई है। लेकिन घरेलू बाजार में फिलहाल पाम तेल की आपूर्ति तंग बनी हुई है, हालांकि जून महीने के अंत तक आवक बढ़ने की उम्मीद है। इसलिए विशेषज्ञों के अनुसार तुरंत बड़ी तेजी नहीं दिखेगी, लेकिन आगे चलकर पाम तेल में सकारात्मक सुधार होने की उम्मीद है। इसके अलावा अगर मध्य-पूर्व में तनाव कम होता है, तो पाम ऑयल की कीमतों में सुधार आ सकता है। वहीं, यूरोप और चीन जैसे बड़े बाजारों में डिमांड बढ़ने से भी पाम ऑयल को सपोर्ट मिल सकता है। इसलिए फिलहाल निवेशकों को बाजार की गतिविधियों पर नज़र रखनी चाहिए। व्यापारी जरूरत अनुसार काम करें और लंबी अवधि के लिए योजना बंद तरीके से सीमित स्टॉक बनाकर रख सकते हैं। व्यापार अपने विवेक और संयम से करें।


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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।