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मांग न होने के कारण जीरा की कीमतें पढ़ी सुस्त देखे पूरी जानकारी

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उत्तर भारत से मानसून विदा हो चुका है लेकिन गुजरात में अभी मानसून का वापस होना शेष है। इतना ही नहीं, नई फसल की बुआई भी करीब एक महीने बाद शुरू होने वाली है। आवक भी सीमित बनी हुई है। जब तक निर्यातकों की मांग नहीं निकलती है, तब तक जीरे में सुस्ती बनी रहने के आसार नजर आ रहे हैं। WhatsApp पर भाव देखने के लिए हमारा ग्रुप जॉइन करें

आप सुधि पाठकों को समय-समय पर जीरे की तेजी-मंदी के सम्बन्ध में नवीनतम जानकारियां मिलती रहती हैं और उन्हें इससे लाभ भी होता है। राजधानी दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई राज्यों से इस वर्ष का मानसून सीजन विदा हो चुका है। हालांकि अभी गुजरात से इसका वापिस होना शेष है। मौसम विभाग ने चालू अक्तूबर महीने के अंत तक गुजरात में हल्दी से मध्यम वर्षा होने का अनुमान व्यक्त किया है। हालांकि बीता अगस्त महीना ऐतिहासिक सूखा साबित हुआ था। गुजरात में इस बार वर्षा की कमी की स्थिति बनी हुई है। राज्य में जीरे की नई फसल की बिजाई दशहरे के आसपास शुरू होती है। फिलहाल तापमान में कमी आनी शुरू हो गई है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है बिजाई अपने समय पर ही शुरू हो सकती है। कीमत आकर्षक बनी होने के कारण अभी से जीरे की सवाई- ड्यौढ़ी बिजाई होने के अनुमान व्यक्त किए जा रहे हैं। मौसम विभाग का कहना है कि गुजरात में वर्तमान मानसून सीजन के आरंभ से लेकर अभी तक करीब 21 प्रतिशत वर्षा कम हुई है। हालांकि जीरे में हाल ही में आई मंदी के बाद किसानों की बिकवाली सीमित ही बनी हुई है।

यही वजह है कि ऊंझा मेंड़ी में जीरे की किसानी आवक फिलहाल करीब 3-4 हजार बोरियों की ही हो रही है। इसके बाद भी ऊंझा में जीरे की कीमत हाल ही में 200-300 रुपए मंदी होकर फिलहाल 11,000/11,350 रुपए प्रति 20 किलोग्राम पर बनी हुई है। इधर, स्थानीय थोक किराना बाजार में भी लिवाली बढ़ने से जीरा सामान्य 500 रुपए तेज होकर फिलहाल 63,500/64,000 रुपए प्रति क्विंटल पर बना हुआ है। इससे पूर्व इसमें 1 हजार रुपए की मंदी आई थी। कीमत में आई इस नवीनतम मंदी कारण किसान अपनी इस फसल की बिक्री हाथ रोककर कर रहे हैं। आवक तुलनात्मक रूप से नीची बनी होने का प्रमुख कारण यह है कि बीते मार्च महीने में हुई वर्षा के कारण खासकर राजस्थान में फसल को हानि हुई थी । इसके अलावा बंगलादेश समेत अन्य परम्परागत आयातक देशों की ऊंझा मंड़ी में जीरे में सक्रियता का अभाव बना हुआ है। दूसरी ओर, बीते सीजन के दौरान जीरे के उत्पादन में करीब एक तिहाई की गिरावट आने की आशंका के बाद से इसकी थोक कीमत ने रुक-रुककर नए-नए रिकॉर्ड कायम किए थे।

बड़ी चिंता की बात यह है कि समुद्री भाड़ा भी बीते कुछ समय के दौरान बढ़ता हुआ फिलहाल करीब 3 गुणा तक ऊंचा बना हुआ है। भाड़े की दर ऊंची होने के करण भी अन्य प्रमुख जिंसों के साथ-साथ जीरे की निर्यात का अभाव बना हुआ है। भारत के अलावा विश्व में तुर्की और सीरिया को जीरे के अन्य उत्पादक देशों के रूप में जाना जाता है लेकिन अब अफगानिस्तान तथा ईरान भी चुनौती पेश करने लगे हैं। आमतौर पर तुर्की एवं सीरिया में संयुक्त रूप से करीब 35 हजार टन जीरे का उत्पादन होता है और इनकी क्वालिटी भारतीय जीरे की तुलना में हल्की होती है। चालू वित्त वर्ष 2023-24 के आरंभिक तीन महीनों में जीरे का 53,399.64 टन का हुआ। इससे 1834.15 करोड़ रुपए की आ हुई। एक वर्ष पूर्व की आलोच्य अवधि में देश से 940.04 करोड़ रुपए मूल्य के 47, 190 टन जीरे का निर्यात हुआ था । आगामी दिनों में जब तक निर्यातकों की लिवाली नहीं निकलती है, तब तक जीरे में सुस्ती बनी रह सकती है।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।