इस साल ला नीना का जाएगा या नहीं | जाने मौसम में क्या हो सकता है बदलाव
किसान साथियो दुनिया में हर कुछ सालों में अल नीनो और ला नीना जैसे प्रभाव देखने को मिलते हैं। ये घटनाएं प्रशांत महासागर से शुरू होती हैं लेकिन इनका असर पूरी दुनिया, खासतौर से एशिया, यूरोप और अमेरिका पर पड़ता है। इस साल भीषण गर्मी का कारण अल नीनो था, जिसकी वजह से इन इलाकों में गर्मियों ने सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। फिलहाल विश्व मौसम विभाग का कहना है कि आने वाले तीन महीनों में ला नीना के हालात बनने की संभावना है। ऐसे में सवाल उठता है कि इसका भारत पर क्या असर पड़ेगा? क्या इससे मानसून प्रभावित होगा? और इससे ठंड बढ़ेगी या गर्मी बढ़ेगी?
विश्व मौसम विभाग से क्या आई है रिपोर्ट ?
साथियो विश्व मौसम विभाग के अनुसार, फिलहाल दुनिया का मौसम सामान्य स्थिति में चल रहा है। हालांकि, उनके अनुमान के मुताबिक, दिसंबर 2024 से फरवरी 2025 तक ला नीना की स्थिति बनने की 55 प्रतिशत संभावना है। ला नीना एक जलवायु परिघटना है जो प्रशांत महासागर के मध्य और पूर्वी भाग में समुद्र के सतह के तापमान में कमी के साथ जुड़ी हुई है। हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ला नीना कमजोर होगा और लंबे समय तक नहीं चल पायेगा। फरवरी 2025 से अप्रैल 2025 तक मौसम की स्थिति धीरे-धीरे सामान्य होने की ओर लौट सकती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ला नीना का वैश्विक मौसम पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। यह विभिन्न क्षेत्रों में सूखे, बाढ़ और अन्य चरम मौसमी घटनाओं का कारण बन सकता है।
क्या होता है ला नीना?
प्रशांत महासागर में होने वाली ला नीना और अल नीनो जैसी घटनाओं का असर दुनिया भर के मौसम पर पड़ता है। जब दक्षिणी प्रशांत महासागर का पानी ठंडा होता है, तो ला नीना की स्थिति पैदा होती है। इस दौरान, पश्चिम की ओर एशिया और यूरोप की ओर व्यापारिक हवाएँ बहुत तेज़ गति से चलने लगती हैं। इसके साथ ही, प्रशांत महासागर का गर्म पानी एशिया की ओर खिसकने लगता है। ये बदलाव दुनिया भर में मौसमी पैटर्न को प्रभावित करते हैं और अक्सर सूखे, बाढ़ या अत्यधिक गर्मी जैसी घटनाये उतपन करते है।
कैसा होता है ला नीना का असर?
ला नीना का प्रभाव दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीके से दिखाई देता है। दक्षिणी गोलार्ध में ला नीना के कारण अत्यधिक गर्मी, सूखा और जंगलों में आग जैसी घटनाएं आम हो जाती हैं। वहीं, उत्तरी गोलार्ध में ला नीना के कारण कड़ाके की ठंड पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। इसका मतलब है कि यूरोप, अमेरिका और एशिया जैसे देशों में इस साल सामान्य से अधिक ठंड पड़ सकती है जिससे आम जनता को परेशानी का सामना करना पद सकता है।
ला नीना का भारत पर कैसा असर पड़ सकता है?
भारत में मौसम पर अल नीनो और ला नीना का काफी प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव सिर्फ गर्मी या सर्दी तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि मानसून पर भी इनका असर देखने को मिलता है। अगर इस बार ला नीना की स्थिति बनी रहती है, तो भारत में सामान्य से अधिक बारिश होने की उम्मीद है। साथ ही, मानसून का मौसम भी सामान्य से लंबा चल सकता है। इसके अलावा, ला नीना के कारण सर्दियों का मौसम भी लंबा और अधिक ठंडा होता है। ला नीना के प्रभाव से प्रशांत महासागर से एशिया की ओर हवाएं तेज गति से चलती हैं, जो मानसून को प्रभावित करती हैं। हालांकि, मानसून पर इसका सटीक प्रभाव बता पाना मुश्किल है कि यह कम होगा या अधिक, लेकिन इतना निश्चित है कि ला नीना का मानसून पर कोई न कोई प्रभाव जरूर पड़ेगा।
इस साल शायद ज्यादा ना हो पाए ठंड
विश्व मौसम विभाग के महासचिव सेलस्टो साउलो ने हाल ही में बताया है कि 2024 में दुनिया के उत्तरी देशों में रिकॉर्ड गर्मी का कारण अल नीनो रहा है। हालांकि, अब ला नीना का प्रभाव दिखने लगा है, लेकिन यह रिकॉर्ड गर्मी के प्रभाव को पूरी तरह कम करने में सक्षम नहीं हो पाएगा। यदि ला नीना का प्रभाव बढ़ता है, तो भारत में मानसून की बारिश सामान्य से अधिक हो सकती है। लेकिन इसके बाद के ठंड के मौसम के बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल है। मार्च तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि ला नीना का प्रभाव कितना रहा है। विभाग ने ला नीना के आने की संभावना को 55% बताया है, जो कि सितंबर में दिए गए 60% के अनुमान से थोड़ा कम है। हालांकि, इन अनुमानों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह हमें संभावित स्थितियों के लिए तैयार रहने में मदद करता है।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।