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इन कारणों से लेट हो रहा आपके आसपास का सड़क और हाईवे निर्माण | जाने क्या है इसकी वज़ह

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दोस्तों, भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स (Infrastructure Projects) की देरी सरकार के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बनती जा रही है। खासकर राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं (National Highway Projects) में हो रही देरी से न केवल विकास की रफ्तार प्रभावित हो रही है, बल्कि इससे रोड डेवलपर्स (Road Developers) और निवेशकों पर भी दबाव बढ़ रहा है। इस स्थिति को और अधिक जटिल बनाते हुए, हाइब्रिड एन्युइटी मॉडल (HAM) के तहत आवंटित 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं गंभीर रूप से प्रभावित हो रही हैं। रेटिंग एजेंसी केयरएज (CareEdge) रेटिंग्स ने शुक्रवार को इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की।

राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण की गति में गिरावट

केयरएज रेटिंग्स के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 (FY25) में राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण की गति में 7-10 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है। वित्त वर्ष 2023-24 (FY24) में जहां 12,350 किलोमीटर राजमार्गों का निर्माण हुआ था, वहीं FY25 में यह आंकड़ा घटकर 11,100-11,500 किलोमीटर तक सीमित रह सकता है। इसका अर्थ है कि राजमार्ग निर्माण की दैनिक गति घटकर लगभग 31 किलोमीटर प्रतिदिन रह सकती है।

HAM मॉडल के तहत परियोजनाओं की वर्तमान स्थिति

राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने 2015 से 2024 के बीच 374 HAM (Hybrid Annuity Model) परियोजनाओं का आवंटन किया है, जिनकी कुल लंबाई लगभग 16,000 किलोमीटर है। इन परियोजनाओं की कुल अनुमानित लागत 4.03 लाख करोड़ रुपये से अधिक है। ये परियोजनाएं देशभर में बुनियादी ढांचे के विकास को गति देने के उद्देश्य से लागू की गई हैं। सितंबर 2024 के अंत तक, इन परियोजनाओं में से 42 प्रतिशत परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, जिनकी कुल लागत लगभग 1.65 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है। इन पूरी हो चुकी परियोजनाओं से संबंधित सड़कें अब यातायात के लिए खुली हैं, जिससे परिवहन व्यवस्था में सुधार हुआ है और यात्रा का समय कम हुआ है। इनका लाभ स्थानीय अर्थव्यवस्था और लॉजिस्टिक्स सेक्टर को भी मिला है।

वर्तमान में, 45 प्रतिशत परियोजनाएं निर्माण चरण में हैं, जिनकी अनुमानित लागत 1.80 लाख करोड़ रुपये है। इन परियोजनाओं पर तेजी से कार्य किया जा रहा है, जिससे अगले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण हिस्से पूरे होने की उम्मीद है। हालांकि, कुछ परियोजनाएं मौसम, भूमि अधिग्रहण, और वित्तीय मंजूरी जैसी चुनौतियों का सामना कर रही हैं, लेकिन सरकार और संबंधित एजेंसियां इन्हें समय पर पूरा करने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।

इसके अलावा, 13 प्रतिशत परियोजनाएं अभी भी 'नियुक्ति तिथि' (Appointed Date) की प्रतीक्षा में हैं, जिससे उनका निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है। इन परियोजनाओं में देरी मुख्य रूप से भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंजूरी, और वित्तीय बंदोबस्त से जुड़ी प्रक्रियाओं के कारण हुई है। सरकार इस दिशा में तेजी से काम कर रही है ताकि ये परियोजनाएं जल्द से जल्द निर्माण चरण में प्रवेश कर सकें।

परियोजनाओं में बढ़ती देरी के कारण

रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 55 प्रतिशत HAM परियोजनाओं में छह महीने से अधिक की देरी हो चुकी है, जबकि जून 2023 में यह आंकड़ा मात्र 33 प्रतिशत था। यह स्पष्ट संकेत देता है कि राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण में देरी की समस्या तेजी से बढ़ रही है। हालांकि, कई परियोजनाओं को ‘समय विस्तार’ (Extension of Time - EOT) दिया गया है, जिससे परियोजनाओं पर तत्काल प्रभाव कुछ हद तक कम होता है। लेकिन यह विस्तार समग्र निर्माण गति और राजमार्ग डेवलपर्स की लाभप्रदता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। परियोजनाओं की लागत बढ़ने के साथ-साथ उनके आर्थिक और तकनीकी पहलुओं पर भी दबाव पड़ता है, जिससे राजमार्ग निर्माण उद्योग में अस्थिरता देखने को मिल रही है।

इन देरी के कई प्रमुख कारण सामने आए हैं। सबसे पहले, निर्माण अवधि का मानकीकरण एक महत्वपूर्ण कारण है। प्रत्येक परियोजना को पूरा करने के लिए सिर्फ दो वर्षों का समय दिया जाता है, चाहे परियोजना की जटिलता और भौगोलिक स्थितियां कैसी भी हों। इससे डेवलपर्स को अतिरिक्त दबाव का सामना करना पड़ता है, और यदि कोई अप्रत्याशित समस्या आती है, तो उसे हल करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। यह कड़ाई से निर्धारित समयसीमा कई मामलों में अव्यवहारिक साबित हो रही है।

दूसरा प्रमुख कारण बढ़ती प्रतिस्पर्धा है। पिछले कुछ वर्षों में सड़क निर्माण क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, जिससे राजमार्ग डेवलपर्स को कई आर्थिक और तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कंपनियों को कम लागत पर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे संसाधनों की उपलब्धता और कार्य की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। इसके अलावा, ठेकेदारों को समय पर भुगतान न मिलने और वित्तीय संकट का सामना करने जैसी समस्याएं भी निर्माण कार्यों की गति को धीमा कर रही हैं।

तीसरा बड़ा कारण अवरोध-मुक्त भूमि की अनुपलब्धता है। सरकार और एजेंसियों की ओर से कई परियोजनाओं के लिए ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रिया में देरी हो रही है। जब तक ज़मीन पूरी तरह से उपलब्ध नहीं होती, तब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सकता। रिपोर्ट के अनुसार, कई परियोजनाएं नियुक्ति तिथि (Appointed Date) की प्रतीक्षा में हैं, क्योंकि उन्हें अभी तक पर्याप्त ज़मीन नहीं सौंपी गई है। इसके अलावा, ज़मीन अधिग्रहण से जुड़े कानूनी विवाद भी निर्माण कार्य में देरी का एक बड़ा कारण बन रहे हैं।

अंत में, अत्यधिक वर्षा भी एक महत्वपूर्ण बाधा बन रही है। विशेष रूप से मानसून के दौरान लगातार और अत्यधिक बारिश के कारण निर्माण गतिविधियां बाधित होती हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय पर होने वाली भारी बारिश से सड़क निर्माण की योजना प्रभावित होती है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में मौसम से जुड़ी समस्याओं का प्रभाव निर्माण कार्य पर बढ़ता जा रहा है, जिससे प्रोजेक्ट्स की डिलीवरी और डेवलपर्स की लागत पर असर पड़ रहा है।

राजमार्ग डेवलपर्स की आर्थिक स्थिति

राजमार्ग निर्माण कंपनियों की आर्थिक स्थिति पर दबाव बढ़ता जा रहा है, क्योंकि NHAI द्वारा परियोजनाओं के आवंटन में धीमी गति और लंबित प्रोजेक्ट्स की बढ़ती संख्या से उनकी राजस्व स्थिरता प्रभावित हो रही है। वित्त वर्ष 2025 में ऑपरेटिंग प्रॉफिटेबिलिटी में 200 आधार अंकों की गिरावट आने की संभावना है, जिसका मुख्य कारण प्रतिस्पर्धा में वृद्धि, प्रशासनिक और परिचालन खर्चों में बढ़ोतरी, आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत मासिक भुगतान की सुविधा का समापन और कार्यशील पूंजी चक्र में 15-20 दिनों की वृद्धि है। हालांकि, प्रमुख कंपनियों की पूंजी संरचना मजबूत बनी हुई है, जिससे वे वित्तीय प्रबंधन में सक्षम हैं।

हाईवे निर्माण की रफ्तार

राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण की गति भी FY25 में 7-10% तक घटने की संभावना है, जिससे यह आंकड़ा 12,350 किमी से घटकर 11,100-11,500 किमी तक सीमित रह सकता है। इसकी प्रमुख वजहें HAM प्रोजेक्ट्स में देरी, प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी, जलवायु परिवर्तन से निर्माण कार्यों में बाधा और भूमि अधिग्रहण में समस्याएं हैं। 2015 से 2024 के बीच स्वीकृत 16,000 किमी लंबे 374 HAM प्रोजेक्ट्स में से केवल 42% पूरे हुए हैं, जबकि 45% निर्माणाधीन हैं और 13% अब तक शुरू भी नहीं हो पाए हैं। इसके पीछे निर्माण अवधि का सही निर्धारण न होना, बाधा-मुक्त भूमि न मिल पाना और तेजी से बदलती सरकारी नीतियां प्रमुख कारण हैं।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 55% हाईवे प्रोजेक्ट्स छह महीने से अधिक की देरी पर हैं, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 33% था। इस देरी से न केवल लॉजिस्टिक्स और यात्रा प्रभावित होगी, बल्कि रोड डेवलपर्स की लाभप्रदता और सरकार की वित्तीय योजना पर भी दबाव बढ़ेगा। निर्माण लागत में बढ़ोतरी के कारण 2025 तक डेवलपर्स की कमाई और मुनाफे में कमी आने की संभावना है। NHAI की परियोजनाओं की मंजूरी में कमी के चलते डेवलपर्स की Revenue Visibility प्रभावित हुई है, वहीं आत्मनिर्भर भारत योजना के बंद होने से ठेकेदारों की कार्यशील पूंजी चक्र लंबा हो गया है। हालांकि, बड़े डेवलपर्स अपनी मजबूत पूंजी संरचना और ऑपरेशनल असेट्स के चलते इस वित्तीय संकट से उबर सकते हैं, लेकिन छोटे डेवलपर्स के लिए कर्ज और नकदी प्रवाह का प्रबंधन कठिन हो सकता है।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।

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