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गेहूं में कब और कितना सल्फर डालना चाहिए | जानिए क्या हैं सल्फर की कमी के लक्षण

गेहूं में कब और कितना सल्फर डालना चाहिए | जानिए क्या हैं सल्फर की कमी के लक्षण
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किसान साथियो सल्फर गेहूं की फसल के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, जो पौधों की वृद्धि और उपज बढ़ाने में सहायक होता है। यह खाद, फंगीसाइड, कीटनाशक और पीजीआर (प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर) टॉनिक के रूप में कार्य करता है। सल्फर का सही उपयोग करने से फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है और उत्पादन अधिक मिलता है। वर्तमान समय में मिट्टी में सल्फर की कमी देखी जा रही है, इसलिए इसका उपयोग आवश्यक हो गया है। चलिए जानते सल्फर की कमी के क्या लक्षण होते है इसे खेत में डालने से क्या फायदे होते है और इसे खेत में कब डाले और कितनी मात्रा में डाले इस बारे में बात करते है

सल्फर की कमी के क्या है लक्षण
साथियो सल्फर की कमी होने पर गेहूं की फसल में कई प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं। सबसे पहले पौधों की वृद्धि रुक जाती है और पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। पौधों की वेजिटेटिव ग्रोथ धीमी हो जाती है, जिससे उनकी उत्पादकता प्रभावित होती है। इसके अलावा, फसल में फंगस और अन्य रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है, जिससे पौधों की जड़ों और पत्तियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सल्फर की कमी के कारण पौधे कमजोर हो जाते हैं और ठंड तथा पाले का प्रभाव अधिक पड़ता है।

खेत में सल्फर डालने के क्या फायदे होते है
सल्फर का सही समय पर प्रयोग करने से फसल को कई फायदे मिलते हैं। यह पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जिससे वे बीमारियों और कीटों से सुरक्षित रहते हैं। सल्फर फसल को ठंड और पाले से बचाने में भी मदद करता है। यह पौधों की जड़ों को मजबूत बनाता है और उनका विकास बेहतर करता है। सल्फर का उपयोग करने से फंगस और कीटों का प्रभाव कम होता है, जिससे फसल स्वस्थ और हरी-भरी रहती है। यह फसल की टिलरिंग (शाखाओं की वृद्धि) को बढ़ाने और उत्पादन को बेहतर बनाने में भी सहायक है।

सल्फर के प्रयोग का सही समय क्या है
सल्फर के प्रयोग का सही समय फसल की बुवाई और सिंचाई के अनुसार तय किया जाता है। अगर किसान ने बुवाई के समय एसएसपी (सिंगल सुपर फॉस्फेट) का प्रयोग किया है, तो अलग से सल्फर देने की जरूरत नहीं होती क्योंकि इसमें पहले से सल्फर उपलब्ध रहता है। लेकिन यदि बुवाई के समय डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) या एनपीके (नाइट्रोजन फॉस्फोरस पोटैशियम) का प्रयोग किया गया है, तो पहली या दूसरी सिंचाई में सल्फर का प्रयोग करना आवश्यक होता है। अगर पहली सिंचाई में सल्फर नहीं दिया गया है, तो दूसरी सिंचाई में यूरिया के साथ सल्फर का उपयोग कर सकते हैं।

सल्फर कितने प्रकार के होते है और इन्हे कितनी मात्रा में डाले
मार्केट में सल्फर तीन प्रकार में उपलब्ध है – दानेदार, लिक्विड और पाउडर। हालांकि सभी प्रकार के सल्फर का परिणाम समान मिलता है, लेकिन गेहूं की फसल के लिए बेंटोनाइट 90% सल्फर सबसे अधिक प्रभावी माना जाता है। यह सल्फर धीरे-धीरे घुलता है और पौधों को लंबे समय तक पोषण प्रदान करता है। प्रति एकड़ 5-10 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करना चाहिए। सल्फर को यूरिया के साथ मिलाकर प्रयोग करने से पौधों को अधिक फायदा होता है और यह फसल की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है।

सल्फर के प्रयोग करते समय यह रखे सावधानियां
सल्फर का उपयोग करते समय कुछ सावधानियां बरतना जरूरी है। इसे सही समय और उचित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि अधिक मात्रा में सल्फर का प्रयोग पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है। सल्फर को हमेशा सिंचाई के साथ मिलाकर उपयोग करना चाहिए ताकि यह पौधों की जड़ों तक आसानी से पहुंच सके। इसके अलावा, सल्फर का प्रयोग करते समय मिट्टी की जांच कर लेना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मिट्टी में पहले से सल्फर की कितनी मात्रा उपलब्ध है।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को मिलाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।