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क्या है गेहूं की बुवाई का सबसे सही समय | 80% लोगों को नहीं पता

क्या है गेहूं की बुवाई का सबसे सही समय | 80% लोगों को नहीं पता
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 गेहू बुवाई का सही समय

गेहूं की खेती में समय का महत्वपूर्ण स्थान होता है। गेहूं की खेती के लिए सही समय और तकनीकों का पालन करना बेहद जरूरी है। अगर किसान सही तरीके अपनाते हैं, तो वे बहुत अच्छा उत्पादन हासिल कर सकते हैं और मुनाफा भी बढ़ा सकते हैं। गेहूं की बुवाई के लिए सबसे उचित समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच तक करना सबसे फायदेमंद होता है। इस समय पर बुआई करने से फसल का अंकुरण और उत्पादन बेहतर होता है। इस अवधि के दौरान, उच्च गुणवत्ता वाली प्रजातियों की बुवाई करे । इस समय उचित किस्में चुने और उर्वरकों का सही इस्तेमाल करके गेहूं की पैदावार को दोगुना किया जा सकता है। इसके बाद, 15 दिसंबर से 20-25 दिसंबर के बीच मध्यम और देरी वाली प्रजातियों की बुवाई की जाती है। सही समय पर बुवाई करने से फसल की वृद्धि और उत्पादन में महत्वपूर्ण सुधार होता है, इसलिए किसान को समय का ध्यान रखना चाहिए।  

खेत की तैयारी और बीज की मात्रा

खेत को अच्छी तरह से तैयार करना गेहूं की अच्छी फसल के लिए आवश्यक है। गेहूं की बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह से तैयारी करना आवश्यक है। जुताई करते समय, खेत को नमी युक्त बनाना चाहिए ताकि बीज अच्छी तरह से जम सके। सबसे पहले, गोबर की खाद को दो से तीन ट्राली खेत में बिखेरकर हल्की गहरी जुताई करानी चाहिए। इसके बाद, रोटावेटर से खेत को समतल करके मिट्टी को भुरभुरी बनाना चाहिए, ताकि बीजों का सही अंकुरण हो सके। एक बीघा भूमि के लिए, 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच बुवाई करते समय 25 किलोग्राम बीज और अगर गेहू की देर से बुवाई (15 दिसंबर से 25 दिसंबर के बीच मध्यम) तो बीज की मात्रा बढ़ाकर 35 किलोग्राम करनी पड़ती है। इस प्रकार, बीज की मात्रा का सही चयन फसल के स्वास्थ्य और उपज को प्रभावित करता है।

उर्वरक प्रबंधन

उर्वरकों का सही उपयोग गेहूं की खेती में बहुत जरुरी होता है इसलिए सही मात्रा में ही इसका प्रयोग करे | यदि खेत में गोबर और कंपोस्ट की कमी है, तो किसानों को नाइट्रोजन (जैसे यूरिया), डीएपी, फास्फोरस (जैसे सिंगल सुपर फास्फेट), और पोटाश (जैसे न्यूरोटा पोटाश) का उपयोग करना चाहिए। बुवाई के समय, 5 किलोग्राम सल्फर और 3 किलोग्राम जिंक सल्फेट का प्रयोग करना लाभकारी होता है। ये सभी तत्व फसल की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं, जिससे उपज में वृद्धि होती है।

उर्वरक मात्रा (1 बीघा के लिए):

  • नाइट्रोजन (यूरिया): 30-35 किलोग्राम
  • डीएपी और पोटाश: 25-30 किलोग्राम
  • सल्फर: 5 किलोग्राम
  • जिंक सल्फेट: 3 किलोग्राम

खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के 24 घंटे के अंदर खाली खेत में ही खरपतवार नाशक का छिड़काव करना चाहिए। अगर बुआई के बाद भी खरपतवार बढ़ते हैं, तो 25-30 दिन की फसल पर खरपतवार नाशक का प्रयोग करें।

बुवाई की विधि

गेहूं की बुवाई के लिए सीड ड्रिल विधि को अपनाना अधिक लाभप्रद हो सकता है। इस विधि में बीज और उर्वरक को एक साथ डाला सकते है, जिससे पौधों को जमाव के साथ ही आवश्यक पोषक तत्व मिलना शुरू हो जाता है। इससे पौधों की वृद्धि में तेजी आती है और उन्हें स्वस्थ बनाए रखने में मदद मिलती है।

पौधों के बीच की दूरी (4-5 सेंटीमीटर) और पंक्तियों के बीच की दूरी (7-8 इंच) सही रखनी चाहिए। बुआई की गहराई भी 4-5 सेंटीमीटर होनी चाहिए ताकि बीज सही गहराई पर रहे और अंकुरण सही हो।

सिंचाई और नाइट्रोजन का उपयोग

गेहूं की फसल के लिए सिंचाई का सही समय भी महत्वपूर्ण है।गे हूं की फसल के लिए पहली सिंचाई बुआई के तुरंत बाद करनी चाहिए। पहली सिंचाई 20 से 25 दिनों के भीतर अवश्य करनी चाहिए। इस दौरान, नाइट्रोजन (यूरिया) का उपयोग करना भी आवश्यक होता है। सिंचाई और उर्वरकों का संतुलन बनाए रखना फसल की वृद्धि और उत्पादन के लिए बहुत जरूरी है। यदि सिंचाई सही समय पर की जाती है, तो फसल स्वस्थ और उपज में बढ़िया रहती है।दोस्तों , मिट्टी के प्रकार के अनुसार सिंचाई की संख्या भिन्न हो सकती है, लेकिन सामान्यतः 5-6 सिंचाइयां आवश्यक होती हैं।

उन्नत किस्में का चयन

अलग-अलग क्षेत्रों और मिट्टी के प्रकार के आधार पर उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए। उदाहरण के लिए, पूसा तेजस, 8663 (पोषण), और श्रीराम 303, 463, और 322 जैसी वैरायटी अच्छी उपज देने वाली किस्में हैं।और एचडी 2967, एचडी 3086 और डब्ल्यूएच 1105 इन उन्नत किस्मों की खेती करके किसान बेहतर उत्पादन और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। गेहूं की फसल के लिए सही बुवाई का समय, उर्वरक प्रबंधन और सिंचाई की योजनाओं का पालन करके किसान अपनी फसल से अधिकतम लाभ उठा सकते हैं।

सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, गेहूं की खेती एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सही बुवाई का समय, बीज की उचित मात्रा, उर्वरक प्रबंधन, सही बुवाई विधि, और सिंचाई का संतुलन इन सभी तत्वों का ध्यान रखना आवश्यक है। इन पहलुओं पर ध्यान देकर किसान अपनी गेहूं की फसल की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं और बेहतर आय प्राप्त कर सकते हैं।

नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।