मिट्टी में PH ज्यादा या कम होने से क्या होता है | इस रिपोर्ट में जाने
किसान भाइयों, खेती और कृषि का आधार मिट्टी की उर्वरता पर निर्भर करता है, क्योंकि मिट्टी की उपजाऊ क्षमता ही यह तय करती है कि वहां उगने वाली फसलों को पोषण मिलता है या नहीं। यदि मिट्टी की उर्वरता कम हो, तो फसलों की वृद्धि रुक जाती है, और उनका उत्पादन भी कम हो जाता है। एक महत्वपूर्ण तत्व जो मिट्टी की उर्वरता पर सीधा प्रभाव डालता है, वह है मिट्टी का पीएच स्तर। पीएच (pH) मिट्टी की अम्लीय या क्षारीय प्रकृति को दर्शाता है, मिट्टी का पीएच इस बात का फैसला करता है कि मिट्टी में पड़े हुए पोषक तत्व पौधों के लिए कितना काम करेंगे या नहीं करेंगे। अगर मिट्टी का पीएच मान बहुत ज्यादा अधिक है, तो वह कई प्रकार की मुश्किलें फसल के लिए पैदा कर सकता है, जैसे सूक्ष्म जीवों की गतिविधि में कमी, मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी, और फसल की कमजोर बढ़वार। इसलिए मिट्टी का पीएच मान संतुलित होना बहुत ही जरूरी है। पीएच मान ने मिट्टी के पोषक तत्वों की उपलब्धता, सूक्ष्म जीवों की गतिविधि, और फसलों की वृद्धि पर प्रभाव डाला है, इसीलिए मिट्टी के पीएच को संतुलित रखने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण और उपयुक्त उपचार आवश्यक है। पीएच के उच्च होने के कारण मिट्टी में मौजूद ह्यूमस का निर्माण भी प्रभावित होता है, जिससे मिट्टी की जलधारण क्षमता में कमी आती है। ह्यूमस की कमी से मिट्टी में वायु संचार और पोषक तत्वों का संतुलन भी खराब होता है, और इससे पौधों को उचित पानी और पोषक तत्वों की आपूर्ति में कठिनाई होती है। इसके परिणामस्वरूप, पौधों की जड़ों की वृद्धि पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है, जिससे समग्र पौधे की वृद्धि में कमी आती है। सामान्यत: मिट्टी का पीएच 6.5 से 7.5 के बीच होता है, जो उपजाऊ मिट्टी के लिए आदर्श माना जाता है। जब पीएच 7.5 से अधिक हो जाता है, तो मिट्टी में क्षारीय गुण प्रबल हो जाते हैं। एक उच्च पीएच स्तर मिट्टी में लवण और क्षार की अधिकता को दर्शाता है। इस रिपोर्ट में हम जानेंगे कि अधिक पीएच फसलों पर किस प्रकार अपना असर छोड़ता है और इसे संतुलित किस प्रकार किया जा सकता है। मिट्टी के पीएच मान के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।
पोषक तत्वों पर प्रभाव
किसान भाइयों, जब मिट्टी का पीएच अधिक हो जाता है, तो यह कई महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है। खासकर, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, जिंक, आयरन, और कॉपर जैसे आवश्यक पोषक तत्वों का अवशोषण पौधों द्वारा कम हो जाता है। इन पोषक तत्वों का अस्तित्व मिट्टी में आयन के रूप में होता है, और जैसे ही पीएच बढ़ता है, ये आयन विभिन्न रूपों में परिवर्तित हो जाते हैं, जिससे पौधों के लिए इनका अवशोषण मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के तौर पर, जिंक, आयरन, और कॉपर जैसे तत्वों की कमी हो जाती है, जबकि कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे तत्व बढ़ जाते हैं। यह पोषक तत्वों का असंतुलन पौधों के लिए हानिकारक साबित होता है, और पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है। इसके परिणामस्वरूप, पौधों की उत्पादकता और गुणवत्ता में कमी आती है।
सूक्ष्मजीवों की गतिविधि पर असर
किसान साथियों, मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों की गतिविधि भी पीएच से प्रभावित होती है। इन सूक्ष्मजीवों का मुख्य कार्य मिट्टी में जैविक पदार्थों का विघटन और पोषक तत्वों का रूपांतरण करना है। जब मिट्टी का पीएच आदर्श सीमा से बाहर हो जाता है, तो इन सूक्ष्मजीवों की गतिविधि कमजोर पड़ जाती है। पीएच 6 से 7.5 के बीच सूक्ष्मजीवों की गतिविधि अधिकतम होती है, लेकिन जैसे ही यह सीमा बढ़ती है, इन जीवों की कार्यक्षमता कम हो जाती है। नतीजतन, जैविक पदार्थों का विघटन धीमा हो जाता है, और पोषक तत्वों का रूपांतरण भी प्रभावित होता है। इससे नाइट्रोजन, फास्फोरस और सल्फर जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता कम हो जाती है, और पौधों को ये पोषक तत्व ठीक से प्राप्त नहीं हो पाते।
ह्यूमस का निर्माण और मिट्टी की उर्वरता
साथियों, ह्यूमस मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ह्यूमस जैविक पदार्थों से बनता है, जैसे गोबर की खाद, पत्तियां, और अन्य जैविक अवशेष, जो मिट्टी में पानी की धारण क्षमता को बढ़ाते हैं, साथ ही मिट्टी में वायु संचार और पोषक तत्वों के संरक्षण को भी बढ़ाते हैं। जब पीएच अधिक होता है, तो सूक्ष्मजीवों की गतिविधि कम हो जाती है, और जैविक पदार्थों का अपघटन भी धीमा हो जाता है। इस कारण ह्यूमस का निर्माण कम होता है, और मिट्टी की उर्वरता प्रभावित होती है। ह्यूमस की कमी के कारण मिट्टी की जलधारण क्षमता भी घट जाती है, और पौधों को आवश्यक पानी और पोषक तत्वों की सही मात्रा नहीं मिल पाती।
जड़ों की वृद्धि पर असर
किसान भाइयों, मिट्टी का उच्च पीएच जड़ों की वृद्धि को प्रभावित करता है। जब पीएच बढ़ता है, तो पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्वों का अवशोषण नहीं हो पाता है। परिणामस्वरूप, जड़ों की वृद्धि रुक जाती है, और पौधे पर्याप्त मात्रा में पानी और पोषक तत्व प्राप्त नहीं कर पाते। इससे पौधों की समग्र वृद्धि प्रभावित होती है, और फसल की उपज कम होती है। इसके अतिरिक्त, कमजोर जड़ों के कारण पौधों के पत्ते, फूल और फल भी कम संख्या में होते हैं, जिससे उत्पादन में कमी आती है। इसलिए, जड़ों की अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी के पीएच का संतुलित रहना बहुत जरूरी है।
पीएच नियंत्रण के उपाय
दोस्तों, मिट्टी के पीएच को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं। अगर पीएच 7.5 से अधिक हो, तो लीचिंग (leaching) एक प्रभावी उपाय हो सकता है, जिससे अतिरिक्त पानी के माध्यम से क्षारीय लवण को मिट्टी से बाहर निकाला जा सकता है। इसके अतिरिक्त, जिप्सम (gypsum) का प्रयोग भी एक सामान्य उपाय है, जो मिट्टी में कैल्शियम की मात्रा बढ़ाकर पीएच को न्यूट्रल (neutral) करने में मदद करता है। इसके अलावा, यदि पीएच बहुत अधिक बढ़ चुका हो, तो खेत में ओर्गेनिक खादों का उपयोग भी मिट्टी के पीएच को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। नियमित रूप से मिट्टी का परीक्षण और उचित उपचार से हम अपने खेत की उर्वरता बढ़ा सकते हैं और फसल की उत्पादकता को बेहतर बना सकते हैं।
नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।