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बढ़ते तापमान में गेहूं का इस तरह से रखें ख्याल | नहीं होगा कोई नुकसान

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बढ़ते तापमान में गेहूं का इस तरह से रखें ख्याल | नहीं होगा कोई नुकसान


किसान भाइयों, गेहूं की फसल रबी मौसम की महत्वपूर्ण फसल है और इसकी बुआई आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर में होती है। इसके बाद, फसल की वृद्धि और पकने का समय फरवरी और मार्च के बीच होता है। इस दौरान, किसानों के लिए यह बेहद जरूरी है कि वे फसल की देखरेख करें, ताकि उपज का स्तर बेहतर हो और फसल को किसी भी प्रकार के मौसम के उतार-चढ़ाव से नुकसान न हो। जैसा कि सभी किसान भाइयों को पता है कि इस बार मौसम में हो रहे बदलाव के कारण इस बार जनवरी और फरवरी के महीने में उम्मीद के अनुसार सर्दी नहीं हुई, खासकर उत्तर भारत में। इस समय तापमान में बढ़ोतरी के कारण गेहूं की फसल संकट के दौर से गुजर रही है। आपको बता दें कि जनवरी में तापमान में अपेक्षा से अधिक बढ़ोतरी देखी गई, लेकिन उम्मीद जताई जा रही थी कि फरवरी महीने में एक बार फिर तापमान में गिरावट आएगी, जिससे गेहूं के किसानों को कुछ राहत मिल सकती है। लेकिन इस समय, खासकर फरवरी में, तापमान में अचानक बढ़ोतरी गेहूं की फसल के लिए नुकसानदायक हो सकती है। क्योंकि जब दिन का तापमान 30 से 32 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है और रात का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस के नीचे रहता है, तो यह गेहूं की फसल के लिए सामान्य माना जाता है। लेकिन, जैसे ही दिन का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ता है, गेहूं के दानों पर विपरीत असर पड़ सकता है। फरवरी के महीने में बढ़ते तापमान से गेहूं की फसल को बचाने के लिए किसानों को कई महत्वपूर्ण कदम उठाने पड़ सकते हैं। हल्की सिंचाई, कीटनाशकों का उपयोग, और पोटेशियम क्लोराइड का छिड़काव जैसे उपायों से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। किसानों को अपने खेतों की नियमित निगरानी करनी चाहिए और कृषि विशेषज्ञों से उचित सलाह लेनी चाहिए, ताकि बढ़ते तापमान का असर गेहूं की फसल पर न पड़े और उनकी उपज बेहतर हो। इस रिपोर्ट में हम जानेंगे कि फरवरी में बढ़ते तापमान से गेहूं की फसल में सिंचाई, कीटनाशकों और उर्वरकों का सही समय पर सही उपयोग करके फसल को कैसे बचाया जा सकता है और उपज को कैसे बढ़ाया जा सकता है। तो चलिए इन सब बातों पर विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं इस रिपोर्ट के माध्यम से।

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फरवरी में तापमान का प्रभाव

किसान साथियों, फरवरी में जैसे ही तापमान बढ़ता है, खासकर उत्तर-पश्चिमी भारत में, गेहूं और अन्य फसलों पर इसका प्रभाव दिखने लगता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, अगर दिन का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाए, तो गेहूं की फसल में दानों के आकार पर असर पड़ सकता है और दाने टूटने का खतरा हो सकता है। इसके अलावा, फरवरी के अंत में यदि तापमान अधिक बढ़ता है, तो यह गेहूं की उपज को भी प्रभावित कर सकता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, जब तापमान 30-32 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, तब गेहूं के लिए यह आदर्श माना जाता है। यह तापमान दानों के बनने के लिए उपयुक्त है। हालांकि, अगर तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ जाता है, तो यह गेहूं के दानों के आकार को प्रभावित कर सकता है, जिससे फसल की गुणवत्ता में गिरावट हो सकती है। इसके अलावा, बढ़ते तापमान से अन्य फसलों पर भी असर पड़ सकता है। जैसे कि सरसों और चना, जो इस समय पर अपनी पूर्णता की ओर बढ़ रहे होते हैं, जल्दी पक सकते हैं। ऐसे में फसल की गुणवत्ता में कमी आ सकती है, जिससे उपज कम हो सकती है।

गर्म तापमान में गेहूं की देखरेख

किसान साथियों, फरवरी महीने में बढ़ते तापमान से गेहूं की फसल को बचाने के लिए किसानों को कुछ विशेष उपाय अपनाने की जरूरत है। सबसे पहले, किसानों को चाहिए कि गेहूं की फसल में हल्की सिंचाई बहुत आवश्यक है। क्योंकि जब तापमान ज्यादा बढ़ता है, तो यह फसल की वृद्धि को प्रभावित करता है। ऐसे में किसान हल्की सिंचाई करके तापमान के प्रभाव को कम कर सकते हैं। इसके लिए फव्वारा सिंचाई (Sprinkler Irrigation) यदि उपलब्ध हो तो किसानों को यह दोपहर के समय गर्मी के बढ़ने पर 30 मिनट तक करनी चाहिए। इससे फसल पर जलवायु परिवर्तन का असर कम होगा और फसल को राहत मिलेगी।

कीटनाशक और फफूंदी नाशक

किसान साथियों, गर्मी के साथ-साथ कीट और बीमारियां भी फसलों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, गेहूं की फसल में इस अवस्था में पिंक स्टेम बोरर इल्ली का प्रकोप हो सकता है, जिससे गेहूं की बालियां कमजोर हो सकती हैं और बालियों के गिरने का कारण बन सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार फसल में इस बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर इसके उपचार के लिए, ट्राईक्लोरफेन (300 ग्राम प्रति एकड़) या कोई अन्य सिस्टेमिक कीटनाशी का छिड़काव किया जा सकता है। इसके अलावा, अगर गेहूं की फसल में अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग का प्रकोप हो, तो प्रोपिकोनाजोल (1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का उपयोग किया जा सकता है।

पोटेशियम क्लोराइड का प्रयोग

किसान साथियों, गेहूं की फसल में तापमान के बढ़ने से होने वाली समस्याओं को कम करने के लिए पोटेशियम क्लोराइड (Potassium Chloride) का छिड़काव भी किया जा सकता है। इसका उपयोग विशेष रूप से तब किया जाता है जब गेहूं की बालियां निकल रही होती हैं। उस समय पर किसानों द्वारा गेहूं की फसल में पोटेशियम क्लोराइड का छिड़काव 0.2 प्रतिशत (400 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश 200 लीटर पानी में घोलकर) प्रति एकड़ किया जा सकता है। इस उपाय से गेहूं की फसल में तापमान के अचानक बढ़ने से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।

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स्प्रे द्वारा न्यूट्रिएंट्स देना

किसान साथियों, जब गेहूं की फसल बूटिंग स्टेज पर होती है, तो जड़ें पर्याप्त मात्रा में न्यूट्रिएंट्स नहीं ले पातीं। ऐसे में, न्यूट्रिएंट्स को पत्तों द्वारा अवशोषित करने का सबसे प्रभावी तरीका स्प्रे है। स्प्रे द्वारा न्यूट्रिएंट्स को चिलटे फॉर्म, लिक्विड फॉर्म, या आयनिक फॉर्म में दिया जाता है। ये तत्व पत्तों में स्थित स्टोमेटा द्वारा आसानी से अवशोषित हो जाते हैं। इस समय, स्प्रे करने के लिए डिनो फॉस और डिनो मिन जैसे प्रोडक्ट्स बहुत प्रभावी होते हैं। डिनो फॉस में 8 प्रमुख माइक्रो और मैक्रो न्यूट्रिएंट्स होते हैं, जो पौधों के विकास और बालियों के अच्छे आकार को सुनिश्चित करते हैं।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।