धान लगाने से पहले एक बार यह रिपोर्ट जरूर पढ़ लें
किसान साथियों धान, खरीफ की सबसे महत्वपूर्ण फसल है, और भारत के अनेक राज्यों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। मॉनसून की शुरुआत के साथ ही, धान की नर्सरी तैयार करने का काम जोरों पर है लेकिन इस साल, स्पाइनारियोविरिडे समूह के वायरस का प्रकोप धान की नर्सरी में देखा जा रहा है। यह वायरस धान के पौधों को बौना बना देता है और पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। साल 2022 में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने धान की फसल में बौनेपन की समस्या की पहचान की थी। इस बीमारी से धान की खेती वाले क्षेत्रों में पौधों में बौनेपन की समस्या देखी गई थी। इस समस्या से निपटने के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चयन करे जैसे 1885, 1886, 1847, 1692, PB1, 1718 ,वीरेंद्र, पूसा बासमती 18, पूसा 1121, गोल्डन बासमती, राधा स्वरूप, शक्ति बासमती, हंसराज, पूसा सुंदर, जानकी, IR-64, सीआर10, एमबीपी1, पंत 44 जैसी प्रतिरोधी धान किस्मों का चुनाव करें। ऐसे में धान के बौनेपन की समस्या का सामना कर रहे किसानों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी रोकथाम के उपाय बताए हैं जो किसानों के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं। तो आइये जानते हैं धान की फसल में बौनेपन की समस्या को कैसे दूर करें।
धान की फसल में बौनेपन की समस्या से निपटने के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए कुछ उपाय निम्नलिखित हैं:
- सबसे पहले, प्रभावित पौधों को नर्सरी से हटाएं ताकि वायरस अन्य स्वस्थ पौधों में न फैले।
- बुवाई से पहले बीजों को सही तरीके से उपचारित करें। बीज उपचार से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और वायरस का प्रकोप कम होता है।
- धान की ऐसी किस्मों का चयन करें जो इस वायरस के प्रति प्रतिरोधक हों। प्रतिरोधी किस्मों के उपयोग से वायरस का प्रभाव कम हो जाता है।
- वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए कीट नियंत्रण आवश्यक है। इसके लिए कीटनाशक दवाओं का सही समय और सही मात्रा में छिड़काव करें।
- पौधों को संतुलित पोषण प्रदान करें। संतुलित खाद और पोषक तत्वों की आपूर्ति से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
- खेत और उपकरणों की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें ताकि वायरस का प्रसार न हो।
- वायरस के वाहकों की पहचान करें और उन्हें नियंत्रित करने के उपाय अपनाएं। वाहक कीटों को नियंत्रित करने के लिए जैविक और रासायनिक उपाय अपनाएं।
- धान की नर्सरी और मुख्य खेत में सिंचाई का सही प्रबंधन करें। अत्यधिक पानी से बचें और पौधों को आवश्यकतानुसार पानी दें।
इन उपायों को अपनाकर किसान धान की फसल में बौनेपन की समस्या को कम कर सकते हैं और अपनी फसल को स्वस्थ और अधिक उत्पादनशील बना सकते हैं।
बौनेपन की समस्या की पहचान और समाधान
धान के पौधों में बौनेपन की समस्या की पहचान और समाधान के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है:
पहचान के लक्षण
- धान के पौधों के पत्ते पीले पड़ने लगते हैं।
- पौधे सामान्य से कम ऊंचाई के होते हैं।
- पौधों की पत्तियां पीली दिखाई देती हैं जबकि पौधे अधिक हरे होते हैं।
समाधान के उपाय
- नर्सरी की बुवाई की निगरानी:
- धान की अगेती नर्सरी की बुवाई पर सावधानीपूर्वक नजर रखें।
- प्रभावित पौधों का उन्मूलन:
- रोग से प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें और इन्हें खेतों से दूर मिट्टी में दबा दें।
- सीधी बुवाई को बढ़ावा देना:
- किसानों को सीधी बुवाई वाले धान की खेती को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- निराई-गुड़ाई:
- धान की फसल लगाने के बाद समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें ताकि फसल खरपतवारों से मुक्त रहे।
- पीले पौधों को हटाना:
- यदि कुछ पौधे पीले पड़ गए हों तो उन्हें हटाकर उनके स्थान पर स्वस्थ पौधे लगा दें।
- उर्वरकों का प्रयोग:
- समय-समय पर आवश्यकतानुसार यूरिया, डीएपी और जीवामृत का छिड़काव करें।
- आवश्यकता से अधिक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग न करें, इससे पौधों को नुकसान हो सकता है।
- कीटनाशकों का प्रयोग:
- हॉपर्स से नर्सरी की सुरक्षा के लिए कीटनाशकों जैसे डिनोटफ्यूरान 20 एसजी 80 ग्राम या पाइमेट्रोजिन 50 डब्ल्यूजी 120 ग्राम प्रति एकड़ (10 ग्राम या 15 ग्राम प्रति कनाल नर्सरी क्षेत्र) का प्रयोग करें।
इन उपायों को अपनाकर किसान धान की फसल में बौनेपन की समस्या को नियंत्रित कर सकते हैं और स्वस्थ एवं उत्पादक फसल प्राप्त कर सकते हैं।
धान की सीधी बुवाई: कम लागत, कम पानी, ज्यादा मुनाफा!
धान की सीधी बुवाई पर जोर देने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं। आइए समझते हैं कि सीधी बुवाई की विधि क्यों महत्वपूर्ण है और इसके क्या फायदे हैं:
सीधी बुवाई की विधि के फायदे
- सीधी बुवाई करने पर खेती की लागत कम आती है क्योंकि इसमें नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती।
- सीधी बुवाई में पानी की बचत होती है। इसमें खेत में पानी भरने की जरूरत नहीं होती, जबकि रोपण विधि में खेत में चार से पांच सेमी पानी भरा होना जरूरी होता है।
- सीधी बुवाई करने पर पैदावार अच्छी मिलती है क्योंकि पौधे सीधे खेत में जड़ पकड़ते हैं और उनका विकास बेहतर होता है।
- इस विधि से फसल में कीट-रोग के प्रकोप की संभावना कम होती है, जिससे फसल स्वास्थ्यवर्धक होती है।
- नर्सरी तैयार करने और रोपाई करने में लगने वाला समय बचता है, जिससे फसल की वृद्धि और उत्पादन समय पर होता है।
- सीधी बुवाई में मिट्टी की संरचना कम प्रभावित होती है, जिससे मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है।
सीधी बुवाई की विधि
- उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करें जो रोग प्रतिरोधक हों और बेहतर पैदावार दें।
- खेत को अच्छी तरह से तैयार करें। मिट्टी को समतल करें और इसे नमी बनाए रखने के लिए तैयार करें।
- धान के बीजों को सीधे खेत में बुवाई करें। बीजों को एक समान दूरी पर बोएं ताकि पौधों को पर्याप्त स्थान मिल सके।
- बीजों को बोने के बाद हल्की सिंचाई करें। बाद में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें।
- फसल में समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें ताकि खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सके और पौधों को बेहतर पोषण मिल सके।
- आवश्यकतानुसार संतुलित मात्रा में उर्वरक और खाद का प्रयोग करें।
सीधी बुवाई की विधि अपनाने से किसानों को न केवल लागत और समय में बचत होती है, बल्कि उन्हें उच्च पैदावार और बेहतर फसल स्वास्थ्य भी मिलता है। इसलिए कृषि वैज्ञानिक इस विधि पर जोर दे रहे हैं।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।