गेहूं की फ़सल को स्ट्रेस और पीलेपन से बचाये | 3 दिन में दिखेगा असर | जाने इलाज
नमस्कार किसान साथियों, यदि आपकी गेहूं की फसल में पहली या दूसरी सिंचाई के बाद भी कहीं न कहीं पीलापन दिखाई दे रहा है, ग्रोथ रुक चुकी है, और पौधों से निकलने वाले टेलर्स की संख्या कम है, तो यह एक गंभीर समस्या हो सकती है। यदि आप पौधों को उखाड़ कर देखेंगे, तो उनकी जड़ें या तो मिलती ही नहीं, या फिर अगर मिल भी रही हैं, तो वे बहुत कम और कमजोर होंगी। जड़ों में वाइट रूट्स की कमी भी दिखेगी। इस स्थिति में आपको सचेत हो जाना चाहिए, विशेषकर उन किसानों को जिनकी फसल लगभग 45 से 50 दिनों के बीच है। यदि इस समय पर फसल में अच्छे से टेलर्स नहीं निकल पा रहे हैं और क्लोरोफिल का निर्माण पूरी तरह से नहीं हो पा रहा है, तो यह आगे चलकर आपकी फसल की उत्पादकता को बहुत प्रभावित करेगा।
पिछले कुछ दिनों से हमें लगातार यह टिप्पणी मिल रही है कि किसान भाई कह रहे हैं कि उनकी फसल बहुत तेजी से पीलापन झेल रही है। जैसे ही वे सिंचाई करते हैं, पीलापन और बढ़ जाता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां पहले धान की बुआई की गई थी और अब गेहूं की बुआई की गई है, या फिर उन खेतों में जहां पानी लगातार भरा रहता है, जैसे कलरा मिट्टी वाले क्षेत्र। इन क्षेत्रों में यह समस्या बहुत तेजी से बढ़ रही है।
तो अब सवाल यह उठता है कि हमारे गेहूं के खेतों में पीलापन क्यों आ रहा है और ग्रोथ क्यों रुक रही है? इसके पीछे मुख्य रूप से चार कारण हो सकते हैं।
पहला और सबसे बड़ा कारण होता है पोषक तत्वों की कमी। यदि आपने अपनी फसल में यूरिया, डीएपी, पोटाश जैसे मुख्य पोषक तत्व डाले हैं, चाहे वह बुआई के समय हो या पहली सिंचाई में, तो यह पोषक तत्व तो आपके खेत में मौजूद होंगे। लेकिन अगर आपने द्वितीयक पोषक तत्व या माइक्रो न्यूट्रिएंट (सूक्ष्म पोषक तत्व) नहीं डाले हैं, तो इनकी कमी साफ-साफ दिखाई देने लगेगी, और इनमें से कोई भी कमी आपकी फसल की ग्रोथ और स्वास्थ्य पर असर डाल सकती है, चाहे आप अन्य पोषक तत्व डालें, उनका असर नहीं होगा।
द्वितीयक पोषक तत्व और सूक्ष्म पोषक तत्व (माइक्रोन्यूट्रिएंट्स) सभी अच्छे से देने के बावजूद फसल में पीलापन क्यों
दोस्तों , इस प्रकार की स्थिति उन खेतों में अक्सर देखी जाती है जहां लगातार गेहूं की बुआई होती रहती है, क्रॉप रोटेशन का पालन नहीं किया जाता, या जहां गेहूं से पहले धान की फसल थी। ऐसे खेतों में जहां सिंचाई लगातार होती रही है, और जहां मिट्टी में नमी बनी रहती है, ये समस्याएं अधिक होती हैं।
इन खेतों में जब खाद या उर्वरक डाले जाते हैं, तो वे लीच होकर (नीचे की ओर बहकर) जड़ों तक नहीं पहुंच पाते। इसके कारण जड़ों की वृद्धि रुक जाती है, और जड़ें या तो लॉक हो जाती हैं या फिर उनमें माहू (aphid) जैसे कीट लग जाते हैं। इसके अलावा, फंगस जनित बीमारियां भी जड़ों पर असर डाल सकती हैं, जिससे फसल की ग्रोथ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
विशेष रूप से उन खेतों में, जहां भारी मिट्टी या कलर वाली भूमि (जैसे जलभराव वाली मिट्टी) होती है, और जहां सिंचाई के बाद नमी बनी रहती है, ये समस्याएं और भी गंभीर हो सकती हैं। अगर मौसम भी खराब हो जाता है, जैसे धुंआ, बारिश या लगातार नमी बनी रहती है, तो इन परिस्थितियों में पौधों की जड़ों की वृद्धि रुक जाती है। वाइट रूट्स (सफेद जड़ें) बनना बंद हो जाती हैं, या जड़ें सड़ने लगती हैं।
ऐसी अवस्था में, चाहे आप ऊपर से उर्वरक या खाद किसी भी रूप में डालें, वे पौधों पर कोई असर नहीं डालेंगे। इसका कारण यह है कि जड़ों का स्वस्थ होना आवश्यक है, ताकि वे पोषक तत्वों को सोखकर पौधों तक पहुंचा सकें। अगर जड़ें स्वस्थ नहीं हैं, तो पौधे नीचे से पोषक तत्वों को उठा नहीं पाएंगे और उनका विकास बाधित रहेगा।
यह स्थिति उन खेतों में विशेष रूप से देखने को मिलती है, जहां पानी की अधिकता या खराब जलनिकासी होती है। ऐसे खेतों में सुधार के लिए उचित जल निकासी व्यवस्था और क्रॉप रोटेशन पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है।
स्ट्रेस का उत्पन्न होना
इसके अलावा, अगला कारण होता है स्ट्रेस। अब स्ट्रेस दो-तीन कारणों से उत्पन्न हो सकता है। एक कारण यह है कि जब हम अपनी फसल में खरपतवारनाशक का स्प्रे करते हैं, तो बहुत से खरपतवार नाशक ऐसे होते हैं जिनका प्रभाव हमें तुरंत दिखाई देता है। स्प्रे करने के बाद, हमारी फसल में पीलापन आ जाता है, उसकी ग्रोथ रुक जाती है और उसमें झटका लग जाता है। दूसरा कारण मौसम का स्ट्रेस हो सकता है, जैसे कि आपके क्षेत्र में पाला जमना या लगातार धुंध रहना। इस प्रकार के मौसम में धूप नहीं निकल पाती, जिससे पौधों को भोजन बनाने में समस्या होती है। ये कुछ सामान्य कारण हैं जिनसे स्ट्रेस उत्पन्न हो सकता है।
अब इन समस्याओं का समाधान क्या है, यह मैं बताता हूँ। सबसे पहले, आपको यह सुनिश्चित करना है कि जब आपने गेहूं की बुआई की थी, उस समय आपने कौन-कौन से खाद और उर्वरक डाले थे। यदि आपने बुआई के समय फास्फोरस और पोटाश पूरी मात्रा में डाले थे, तो यह बहुत अच्छी बात है। यदि आपने बुआई के समय नाइट्रोजन का एक तिहाई हिस्सा भी दिया था, तो यह भी बहुत अच्छा है। पहली सिंचाई के दौरान बाकी बची हुई यूरिया की मात्रा भी आपने दे दी है, तो फिर भी यदि आपकी फसल में समस्या हो रही है, तो वह क्यों हो सकती है?
देखिए, यदि आपने यूरिया दिया है, तो भी यह संभव है कि आपकी फसल में क्लोरोफिल का निर्माण ठीक से नहीं हो पाया और फसल पूरी तरह से नहीं चल पाई। इसके पीछे एक कारण हो सकता है कि आपकी मिट्टी में जिंक की कमी हो। अगर ऐसा है तो आपको जिंक भी देना होगा। इसके अलावा, अगर आपके खेत में मैग्नीशियम सल्फेट की कमी है, तो आपको यह भी देना होगा। लोह तत्व की कमी भी फसल के विकास को प्रभावित कर सकती है। ये सभी सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं, जिनकी आवश्यकता थोड़ी होती है, लेकिन उनकी कमी फसल पर बहुत बड़े स्तर पर असर डाल सकती है और आपके उत्पादन को काफी हद तक घटा सकती है।
इसलिए, यदि आप अपनी फसल में इन सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी महसूस कर रहे हैं, तो जब आप सिंचाई करें, तो सिंचाई से पहले यूरिया में इन पोषक तत्वों को मिलाकर अपने खेत में डालें। इसके कुछ दिन बाद, आप देखेंगे कि यदि आपके खेत में इन पोषक तत्वों की कमी थी, तो पीलापन गायब हो जाएगा और आपकी फसल हरी-भरी हो जाएगी।
जड़ों का विकास पर नकारात्मक प्रभाव
इसके अलावा, अगर आपने सभी पोषक तत्व अपनी फसल में दे दिए हैं और फिर भी आपकी फसल में पीलापन दिखाई दे रहा है, तो इसका कारण हो सकता है कि आपके पौधों की जड़ें ठीक से विकसित नहीं हो रही हैं। यदि आप पौधे को उखाड़ कर देखेंगे, तो आपको जड़ों में निश्चित तौर पर कुछ समस्याएँ दिखाई देंगी। संभवतः, जड़ें या तो दिखाई नहीं देंगी, या फिर जड़ें काली पड़ चुकी होंगी और उसमें फंगस जनित बीमारियाँ लग चुकी होंगी। इसके अतिरिक्त, जड़ों में छोटे-छोटे कीट, जैसे माहू, भी हो सकते हैं, जो जड़ों के रस को धीरे-धीरे चूसते रहते हैं, जिससे जड़ें ठीक से विकसित नहीं हो पातीं और उनके अंदर से निकलने वाली छोटी वाइट रूट्स भी बन नहीं पातीं।
इस स्थिति में, जब आप दूसरी सिंचाई कर रहे हों, तो यूरिया की जो दूसरी डोज है, उसे आपको जरूर डालनी चाहिए। यह यूरिया बुआई के समय, पहली सिंचाई के समय और दूसरी सिंचाई के समय दी जाती है, जो लगभग 40 से 50 दिन के बीच होती है। इस यूरिया के साथ आपको कुछ अन्य उपचार भी करना चाहिए।
आपको कॉन्फीडो (200 एमएल प्रति एकड़) का उपयोग करना चाहिए, जो इडाक्लोरोपिड (एक प्रकार का कीटनाशक) से युक्त होता है। आप क्लोरोपाइरीफॉस (50% घोल) का आधा लीटर प्रति एकड़ भी ले सकते हैं, या फिर दानेदार रूप में कार्टहाइड्रोक्लोराइड (3 से 4 किलो प्रति एकड़) का उपयोग कर सकते हैं। इन सभी को यूरिया में मिला कर खेत में डालना चाहिए। साथ ही, यदि संभव हो तो सल्फर (80% वाली) को 3 किलो प्रति एकड़ मिलाना चाहिए। यदि आपने पहले सल्फर दे दी हो, तो इस समय इसे दोबारा डालने की आवश्यकता नहीं है।
यदि आपके खेतों में लगातार नमी बनी रहती है और सिंचाई के दौरान खेत लंबे समय तक गीले रहते हैं, तो इस अवस्था में आपको थायफेनेटमिथाइल (आधिकारिक नाम रोको) का आधा किलो प्रति एकड़ मिला लेना चाहिए।
इस उपचार को यूरिया के साथ मिला कर खेत में बुरकें और फिर सिंचाई करें। सिंचाई के बाद, यदि जड़ों से संबंधित कोई बीमारी, जैसे जड़ माहू, फंगस जनित बीमारियाँ या नमी से प्रभावित खेतों में जड़ें ठीक से विकसित नहीं हो रही हैं, तो सल्फर की मदद से खेत की ऊपरी सतह मुलायम हो जाएगी। इससे पानी को अवशोषित करने की क्षमता बढ़ेगी और जड़ें खुल कर अपना विकास करने लगेंगी।
इस प्रक्रिया से खेत की मिट्टी में वायु संचरण बेहतर होगा, जिससे जड़ों को सही पोषण मिलेगा
स्प्रे करने का तरीका
इसके अलावा, यह सभी उपाय करने के बाद आपको एक स्प्रे भी करना होगा। स्प्रे में आपको निम्नलिखित सामग्री का उपयोग करना चाहिए: आप एनपीके 12:61:0 ले सकते हैं, जिसमें 12% नाइट्रोजन और 61% फास्फोरस होता है। इसके साथ आप कोई भी टॉनिक भी मिला सकते हैं, जैसे कि बायोन या क्वांटिस। यदि आप यह टॉनिक और एनपीके मिलाकर स्प्रे करेंगे, तो चाहे फसल पर किसी भी प्रकार का पर्यावरणीय तनाव हो, जैसे खरपतवार नाशक का असर या मौसम की वजह से उत्पन्न तनाव, आपकी फसल इससे मुक्त हो जाएगी।
एनपीके में जो 61% फास्फोरस है, वह आपके पौधों के कले को अधिक से अधिक बढ़ाने में मदद करेगा और पौधे के संरचनात्मक विकास को मजबूती प्रदान करेगा। यह स्प्रे आपकी फसल के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा।
इसके अलावा, एक और फार्मूला है, जिसे आप अपना सकते हैं। इसमें आपको 1 से 1.5 किलो यूरिया लेनी होगी, और उसमें आधा किलो 21% वाली जिंक, आधा किलो मैग्नीशियम सल्फेट, और 300 ग्राम से 500 ग्राम फेरस मिलाना होगा। इन सभी को 120 से 150 लीटर पानी में मिलाकर अपनी खड़ी फसल पर स्प्रे करना है।
इससे निश्चित तौर पर आपकी फसल के पत्ते सूक्ष्म पोषक तत्वों को अच्छे से ग्रहण करेंगे, क्योंकि सर्दियों में जड़ें निष्क्रिय हो जाती हैं और वे धीरे-धीरे पोषक तत्वों को अवशोषित करती हैं। लेकिन फोलियर स्प्रे के माध्यम से फसल के पत्ते पोषक तत्वों को अच्छे से सोख लेते हैं।
यह काम आप अपनी फसल में जरूर करें। इसके परिणामस्वरूप, फसल में जो पीलापन आया है, उसका प्रभाव कम हो जाएगा और फसल की वृद्धि में सुधार होगा। इसके अलावा, कम डिलर के कारण होने वाली समस्या भी दूर हो जाएगी और आपकी फसल शानदार रूप से विकसित होगी।
नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।
👉 चावल के लाइव भाव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करे
👉 यहाँ देखें फसलों की तेजी मंदी रिपोर्ट
👉 यहाँ देखें आज के ताजा मंडी भाव
👉 बासमती के बाजार में क्या है हलचल यहाँ देखें
About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।