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गेहूं की बुवाई करने से पहले ये रिपोर्ट जरूर पढ़ लेना

गेहूं की बुवाई करने से पहले ये रिपोर्ट जरूर पढ़ लेना
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धान की कटाई के बाद रबी फसलों का सीजन शुरू
किसान भाइयों, धान की कटाई के बाद अब रबी फसलों की बुवाई का समय आ गया है। इस समय अधिकांश किसान गेहूं की खेती करते हैं। इन समय पर बुवाई के सही तरीके, बीज की गुणवत्ता और उचित मात्रा पर ध्यान देना आवश्यक है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, यदि सही मात्रा और गुणवत्ता का ध्यान रखा जाए तो अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। हालांकि, बीज की मात्रा गेहूं की किस्म और बुवाई के समय पर भी निर्भर करती है।
भारत में गेहूं की खेती को तीन प्रमुख चरणों में विभाजित किया जाता है: अगेती, मध्यम, और पछेती बुवाई। इन चरणों का सही समय और सही किस्म का चयन करने से किसानों को अधिक पैदावार प्राप्त हो सकती है। यहाँ कुछ प्रमुख अगेती और पछेती किस्मों के बारे में जानकारी दी जा रही है, जो भारतीय किसानों के बीच लोकप्रिय हैं।

खेती के चरण

  1. पहला चरण (अगेती बुवाई): 25 अक्टूबर से 10 नवंबर तक।
  2. दूसरा चरण (मध्यम बुवाई): 11 नवंबर से 25 नवंबर तक।
  3. तीसरा चरण (पछेती बुवाई): 26 नवंबर से 25 दिसंबर तक।

बीज की मात्रा और बुवाई के तरीके पर ध्यान दें
बीज की मात्रा और बुवाई का तरीका काफी मायने रखता है। कई किसान पारंपरिक तरीके से छीटा लगाकर गेहूं की बुवाई करते हैं, जबकि कुछ किसान आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग करते हैं। सीड ड्रिल जैसे यंत्र से बुवाई करने पर बीज एक समान गहराई और दूरी पर गिरता है, जिससे फसल बेहतर होती है। इसके अलावा, हैप्पी सीडर और सुपर सीडर जैसी मशीनों का भी उपयोग कर सकते हैं, जो बुवाई को और अधिक सटीक और प्रभावी बनाते हैं।

आधुनिक तकनीक से करें बुवाई
नवंबर में गेहूं की बुवाई करते समय सीड ड्रिल मशीन से 40 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बीज का उपयोग करना चाहिए। सीड ड्रिल की मदद से बीज एक समान गहराई पर गिरता है, जिससे बीज का अंकुरण बेहतर होता है और फसल की गुणवत्ता बढ़ती है। इसके साथ ही, हैप्पी सीडर और सुपर सीडर जैसी आधुनिक मशीनें भी बुवाई के लिए उपयुक्त हैं, जो बीज को निर्धारित गहराई और मात्रा में गिराने में सहायक होती हैं।

छीटा विधि में बीज की अधिक खपत
आज भी कई किसान छीटा विधि से बुवाई करते हैं, जिसमें लगभग 25 प्रतिशत अधिक बीज की खपत होती है। इस विधि से बुवाई करने पर प्रति एकड़ 50 से 55 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इस विधि में किसान खेत को तैयार करके बीज का छीटा लगाते हैं और फिर पाटा चलाकर खेत को समतल कर देते हैं। बुवाई करते समय बीज का उपचार करना भी बहुत जरूरी है, ताकि बीज स्वस्थ रहे और फसल अच्छी हो। इस प्रकार, किसान भाई आधुनिक तकनीकों और सही विधियों का उपयोग कर अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं, साथ ही बीज की खपत को भी कम कर सकते हैं

अगेती और पछेती गेहूं की किस्में

अगेती किस्में जल्दी पकने वाली होती हैं और इन्हें अधिकतर ठंडे मौसम में बोया जाता है। ये किस्में विशेषकर उन किसानों के लिए उपयुक्त होती हैं, जो फसल जल्दी तैयार करके दूसरी फसल लगाना चाहते हैं।अगेती किस्मों में डब्ल्यूएच 1105, एचडी 2967, और पीबीडब्ल्यू 550 प्रमुख हैं, जो जल्दी पकने वाली होती हैं और अधिक पैदावार देती हैं। उदाहरण के लिए,

डब्ल्यूएच 1105 (WH 1105) एक लोकप्रिय अगेती गेहूं की किस्म है, जो लगभग 157 दिनों में पकती है और प्रति एकड़ 20-24 क्विंटल की पैदावार देती है। इसकी खासियत यह है कि यह पीले रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी होती है, और पौधे की लंबाई केवल 97 सेमी होती है, जिससे तेज हवाओं और आंधी से फसल को कम नुकसान होता है। यह किस्म हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और बिहार के क्षेत्रों में उगाई जाती है।

दूसरी ओर, एचडी 2967 (HD 2967) किस्म 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ 22-23 क्विंटल उत्पादन देती है। यह भी पीला रतुआ और अन्य बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी होती है, और इसकी लंबाई लगभग 101 सेमी होती है, जिससे अधिक भूसा निकलता है। यह किस्म पंजाब और हरियाणा की जलवायु के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

पीबीडब्ल्यू 550 (PBW 550) एक नवीनतम विकसित किस्म है, जो केवल 145 दिनों में पकती है और इससे प्रति एकड़ 22-23 क्विंटल उत्पादन मिलता है। यह किस्म भी रोग प्रतिरोधी है और इसके पकने का समय अन्य अगेती किस्मों की तुलना में कम होता है।

दूसरी ओर,पछेती गेहूं की बुवाई दिसंबर और जनवरी के महीनों में की जाती है। यह उन क्षेत्रों में उपयुक्त होती है जहां ठंड लंबी रहती है और बुवाई देर से की जाती है।  पछेती किस्में जैसे यूपी-2338, एचडी-2888, और नरेंद्र गेहूं-1076, पूसा वाणी, और पूसा अहिल्या जैसी किस्में भी पछेती बुवाई के लिए उपयुक्त हैं और अधिक पैदावार देती हैं। दिसंबर और जनवरी में बोई जाती हैं और इनकी सिंचाई 4 से 5 बार करनी चाहिए। सही समय पर बुवाई और उन्नत किस्मों का चयन करने से किसानों को अधिक उत्पादन प्राप्त करने में मदद मिलती है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए अगेती खेती एक उत्कृष्ट विकल्प साबित हो सकती ह

नोट: रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। किसान भाई किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।