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गेहूं के हर पेड़ से निकलेंगे 50-60 कल्ले | बस यह काम कर लो

गेहूं के कल्ले कैसे बढाएं
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गेहूं की फसल में कल्लो की संख्या बढ़ानी हैं तो करें यह उपाय, जाने इस रिपोर्ट में।

किसान भाइयों, गेहूं की खेती कृषि के क्षेत्र में एक अहम स्थान रखती है। यह न केवल हमारे देश की प्रमुख खाद्यान्न फसल है, बल्कि इसका उत्पादन हमारे रोज़मर्रा के आहार का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। गेहूं की खेती के लिए सही तकनीक, उर्वरक, सिंचाई और देखभाल की आवश्यकता होती है, ताकि उसकी उपज अधिकतम हो सके। सही समय पर उचित खाद डालना और उचित सिंचाई करना गेहूं की फसल के उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है। आपने कई बार सुना होगा कि सही तरीके से खाद डालने और सिंचाई करने से गेहूं की फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में फर्क पड़ता है। इस रिपोर्ट में हम गेहूं की फसल में खाद की भूमिका, सही समय पर खाद डालने की आवश्यकता, और सिंचाई के तरीके पर चर्चा करेंगे। साथ ही, गेहूं के पौधों में टिलर्स (जो छोटे कल्ले होते हैं) की संख्या बढ़ाने के लिए कौन-कौन सी खादें और पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, इस पर भी बात करेंगे। इसकी शुरुआत सिंचाई से होती है। जब हम पहली सिंचाई करते हैं, तो इस दौरान खाद डालने की प्रक्रिया भी महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इससे पौधों की वृद्धि और विकास में गति आती है। यह समय बहुत ही अहम होता है, क्योंकि इस समय पौधों में टिलर्स बढ़ने लगते हैं, और यदि इस दौरान सही पोषक तत्वों की आपूर्ति की जाए, तो ये टिलर्स जल्दी से बढ़ते हैं और गेहूं की उपज में सुधार होता है। हमारे लिए यह समझना भी जरूरी है कि खाद डालने की सही विधि और सही समय पर खाद डालना कैसे हमारी फसल को लाभ पहुंचा सकता है। इस रिपोर्ट में हम विस्तार से बताएंगे कि गेहूं के लिए कौन सी खादें उपयोगी हैं, और उन्हें कब और कैसे डालना चाहिए। साथ ही, यह भी चर्चा करेंगे कि अगर किसी कारणवश आप खाद को सही समय पर नहीं डाल पाते, तो बाद में क्या कदम उठाए जा सकते हैं ताकि फसल पर सकारात्मक असर पड़े। खासकर गेहूं की फसल के विकास में पहले 55 दिनों का समय बहुत ही अहम होता है। इस दौरान गेहूं के पौधों के लिए पोषक तत्वों की सही मात्रा और सिंचाई का सही समय सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है। सबसे अधिक जब आपकी गेहूं की फसल 21 दिन की हो चुकी हो और आप पहली सिंचाई करने जा रहे हों, तब आपको क्या ध्यान रखना चाहिए। चलिए अब हम उन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो गेहूं की फसल में सही समय पर खाद डालने के लिए जरूरी होते हैं।

फास्फोरस का महत्व

किसान साथियों, जब हम गेहूं की फसल की बुवाई करते हैं, तो सबसे पहले फास्फोरस की जरूरत होती है। फास्फोरस की सही मात्रा से गेहूं की जड़ें अच्छे से विकसित होती हैं, जिससे पौधा मजबूत बनता है। फास्फोरस को सबसे अच्छे तरीके से हम बेसल डोज के रूप में डाल सकते हैं, यानी बुवाई के समय। अगर आपने बुवाई के समय फास्फोरस की पर्याप्त आपूर्ति नहीं की, तो अब आपके पास एक और मौका है। जब आप पहली सिंचाई कर रहे हों, तो इस समय डीएपी का प्रयोग जरूर करें। गेहूं की फसल के लिए यह समय बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि फास्फोरस की कमी से पौधे की जड़ें सही तरीके से विकसित नहीं हो पाती हैं, और इसका सीधा असर पौधे की वृद्धि और टिलर्स की संख्या पर पड़ता है। इसलिए जब आप सिंचाई कर रहे हों, तो लगभग 25-35 किलो डीएपी प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।

नाइट्रोजन और जिंक सल्फेट

किसान भाइयों, गेहूं की फसल में नाइट्रोजन की बहुत अहम भूमिका होती है, क्योंकि यह पौधों के हरे रंग को बनाए रखने और उनकी पत्तियों को बढ़ाने में मदद करता है। जब गेहूं की फसल 21 दिन की हो जाए, तो आपको यूरिया (नाइट्रोजन स्रोत) का प्रयोग करना चाहिए। इसके साथ ही जिंक सल्फेट का उपयोग भी जरूरी है, क्योंकि जिंक की कमी से पौधों में क्लोरोफिल का उत्पादन कम हो सकता है, जिससे पौधा कमजोर हो सकता है। आपको यूरिया और जिंक सल्फेट दोनों को एक साथ डालना चाहिए। यदि आपने पहले से यूरिया बेसल डोज के रूप में डाल दिया है, तो अब आपको केवल जिंक सल्फेट डालने की जरूरत है। यह संयोजन गेहूं की फसल में तेजी से वृद्धि करेगा और आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। इसके लिए आप तीसरे एकड़ में 10 किलोग्राम जिंक की मात्रा को दो भागों में विभाजित करके फसल में छिड़काव कर सकते हैं। यदि हम यूरिया की बात करें तो पहले सिंचाई के दौरान एक बैग यूरिया का और एक बैग यूरिया का दूसरी सिंचाई के दौरान प्रति एकड़ गेहूं की फसल में डालने से पौधों की वृद्धि में अत्यधिक बढ़ोतरी होती है और पौधों में कल्लों की संख्या बढ़ाने में भी सहायता मिलती है।

सल्फर का उपयोग

किसान साथियों, सल्फर की कमी गेहूं की फसल में अक्सर पत्तियों की हालत को खराब कर देती है और उत्पादन में भी कमी आती है। खासकर उन खेतों में जहां पानी की समस्या या अधिक नमी होती है, वहां सल्फर का इस्तेमाल बेहद फायदेमंद हो सकता है। यदि आपने बुवाई के समय सल्फर नहीं डाला है, तो अब आपको इसे सिंचाई के समय डालने का मौका मिल रहा है। आप बेंटोनाइट सल्फर का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो आसानी से मिट्टी में घुलता है और जड़ों को बेहतर पोषण देता है। यदि सल्फर की मात्रा की बात की जाए तो अगर सल्फ़र पाउडर का इस्तेमाल करते हैं तो एक एकड़ में 10 किलोग्राम सल्फ़र डालना चाहिए। और यदि आप घुलनशील सल्फ़र का इस्तेमाल करते हैं, तो 3 ग्राम सल्फ़र को एक लीटर पानी में घोलकर गेहूं की फ़सल पर छिड़काव करना चाहिए। सल्फर का फसल में सही उपयोग करने के लिए आप बुआई के समय, 3 किलोग्राम प्रति एकड़ 80 या 90 प्रतिशत पाउडर सल्फ़र या 10 किलोग्राम प्रति एकड़ बेंटोनाइट सल्फ़र का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे खेत के शुरुआती चरण में मिलाना चाहिए। यदि आपके खेत में खारा पानी है या मिट्टी सख्त हो गई है, तो सल्फर की जरूरत और भी ज्यादा बढ़ जाती है। इस स्थिति में सल्फर को यूरिया के साथ मिलाकर डालने से पानी की भिगोने की क्षमता बढ़ेगी और मिट्टी में वायु का संचरण बेहतर होगा, जिससे पौधों को पर्याप्त पोषण मिलेगा।

खरपतवार नियंत्रण

किसान साथियों, गेहूं की फसल में पौधों की वृद्धि और अधिक फुटाव के रास्ते में खरपतवार की समस्या भी एक बड़ा कारण है। यदि खेत में खरपतवार का नियंत्रण सही समय पर न किया जाए, तो वे गेहूं की फसल से पोषक तत्वों की खपत करेंगे और गेहूं के पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे। यदि आपके खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार हैं, जैसे बथुआ, सरसों, या जंगली पालक, तो आपको इन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके लिए आप आलाग्रिप जैसी खरपतवार नाशी दवाओं का उपयोग कर सकते हैं। इससे खरपतवार तो मरेंगे ही, साथ ही फसल को भी नुकसान नहीं होगा। इसके अलावा आप 2-4 डी सोडियम लवण का उपयोग चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवारों के लिए, 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 1 लीटर दवा को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर पहली सिंचाई के बाद छिड़काव कर सकते हैं। या फिर आप मेटसल्फ़्यूरॉन मिथाइल का उपयोग संकरी पत्तियों वाले खरपतवारों के लिए, 20 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 20-30 ग्राम दवा को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर पहली सिंचाई के बाद छिड़काव कर सकते हैं। अन्य उपायों में आप चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवारों के लिए, इफ़को का माकोटो का उपयोग आप बुआई के 25-35 दिन बाद तक 8 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200-240 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं।

कीटों की रोकथाम

किसान भाइयों, अगर आपके खेत में दीमक या अन्य कीटों की समस्या है, तो यह फसल के लिए खतरे का कारण बन सकता है। फसल में कीटों या रोगों का प्रभाव फसल की वृद्धि और उत्पादन के लिए बहुत ही नुकसानदायक हो सकता है। इस स्थिति में आपको फिप्रोनील जैसे कीट नाशक का उपयोग करना चाहिए, जो पौधों की सुरक्षा करेगा और दीमक जैसी समस्याओं से छुटकारा दिलाएगा। फिप्रोनील का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इसकी मात्रा सही हो, क्योंकि अधिक मात्रा से फसल को नुकसान हो सकता है। इसके लिए गेहूं की फ़सल में फिप्रोनिल की मात्रा प्रति एकड़ 8 किलो होनी चाहिए। फिप्रोनिल का इस्तेमाल बुरकाव के ज़रिए किया जाता है। फसल में फिप्रोनिल का असर 15 दिनों तक रहता है। गेहूं की फसल में कीटों की संख्या या बीमारी की गंभीरता के हिसाब से फिप्रोनिल का दोबारा इस्तेमाल करना पड़ सकता है। फिप्रोनिल टर्माइड्स के लिए काफी असरदार होता है।

फसल की धक्का स्टार्ट और फोलियर स्प्रे

किसान भाइयों, अगर आपने पहले कुछ समय में खादों की सही मात्रा नहीं डाली है या फसल में कोई समस्या आ रही है, तो आप एक फोलियर स्प्रे कर सकते हैं। इसमें यूरिया, जिंक सल्फेट, और मैग्नीशियम सल्फेट का मिश्रण बनाकर स्प्रे करना चाहिए। यह स्प्रे फसल को एक तरह से "धक्का स्टार्ट" देगा, जिससे उसकी वृद्धि फिर से तेज हो जाएगी। जब गेहूं की फसल लगभग 30-35 दिन की हो जाए, तो आपको यह स्प्रे करना चाहिए। इसमें 1 किलो यूरिया, आधा किलो जिंक सल्फेट और 400-500 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट मिलाकर 120-150 लीटर पानी में घोल कर खेत में प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।


सिंचाई की भूमिका

किसान भाइयों, गेहूं की फ़सल में पौधों की वृद्धि और कल्लों की संख्या को बढ़ाने में सिंचाई का भी बहुत अधिक महत्व होता है, लेकिन पौधों की अधिक वृद्धि के लिए पहली और दूसरी सिंचाई की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके लिए आपको पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिनों बाद करनी चाहिए। वहीं, दूसरी सिंचाई बुआई के 40-45 दिनों बाद करनी चाहिए। यदि कुल सिंचाई की बात करें तो गेहूं की फसल में 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। यदि आपने बेसल डोज के समय उर्वरकों की मात्रा पूरी नहीं दी है तो उनकी पूर्ति आप पहली और दूसरी सिंचाई के दौरान पूरी कर दें, ताकि आपकी फसल में किसी भी प्रकार के पोषक तत्वों की कमी न रहे और पौधों में फुटाव अधिक से अधिक बन सके, जो आगे चलकर फसल में उत्पादन बढ़ोतरी का कारण बनता है।

नोट:- इस रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।