फॉल्स स्मट रोग धान की फसल को पहुंचता है भारी नुकसान | जानें इस रोग के लक्षण और कैसे करे बचाव
किसान भाइयों धान की फसल लगभग 100 से 120 दिन की हो चुकी है, और धान की फसल में फूल और बालियां बननी शुरू हो गई है। इस समय किसान भाइयों को धान की फसल पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। इस अवस्था में धान में बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। इस अवस्था में धान की फसल में सबसे अधिक फॉल्स स्मट रोग लगने की संभावना होती है। इसके बचाव के लिए किसानों को कई तरह के तरीके को अपनाना चाहिए। यह रोग फसल में 25 से 75 प्रतिशत तक उपज का नुकसान कर सकता है। धान की फसल को इस रोग से बचाने के लिए रोग के लक्षण एवं बचाव के उपाय को जानना आवश्यक है।दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण मुख्य फसलों में से एक धान की फसल है, जो अरबों लोगों को जीविका प्रदान करता है। हालाँकि, यह फसल विभिन्न बीमारियों के प्रति संवेदनशील है, जिसमें से एक है फाल्स स्मट रोग है, जो फसल की पैदावार को काफी हद तक नुकसान पहुंचाता है।इस रोग को हल्दी गांठ रोग या धान का आभासी कंडूआ रोग इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। कुछ वर्ष पहले तक यह रोग धान का माइनर रोग माना जाता था। लेकिन विगत कुछ वर्षों से यह रोग धान का प्रमुख रोग माना जा रहा है, खासकर जबसे हाइब्रिड धान की खेती शुरू हुई है।बता दें कि फॉल्स स्मट रोग से धान की फसल को बहुत नुकसान हो रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग से फसल में 25 से 75 प्रतिशत तक उपज का नुकसान देखा जा सकता है।धान की फसल को इस रोग से बचाने के लिए रोग के लक्षण एवं बचाव के उपाय को जानना अत्यंत आवश्यक है। आज की रिपोर्ट में हमें इसरो के बारे में विस्तार से जानकारी लेंगे, तो आईए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।
रोग का कारण
धान में फाल्स स्मट रोग के कारण प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह के मुताबिक, फाल्स स्मट मुख्य रूप से कवक रोगज़नक़ यूस्टिलागिनोइडिया विरेन्स के कारण होता है। यह रोगज़नक़ धान के पौधों को विकास के विभिन्न चरणों में संक्रमित करता है, जिससे यह धान की खेती के लिए लगातार ख़तरा बना रहता है। प्रभावी प्रबंधन के लिए इसके जीवनचक्र और संक्रमण तंत्र को जानना बहुत ही आवश्यक है।
प्रमुख लक्षण
प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह के मुताबिक, फाल्स स्मट रोग के प्रारंभिक पहचान और रोग प्रबंधन हेतु उपाय करने के लिए लक्षणों को पहचानना आवश्यक है।धान की बालियों पर छोटे, नारंगी दाने से दिखाई देने लगते हैं।इस रोग से प्रभावित दानों में पीला हल्दी या काला रंग का पाउडर दिखने लगता है।दानों को छूने पर यह पाउडर हाथ में लग जाता है।इस रोग से प्रभावित होने पर दानों का रंग बदरंग हो जाता है और उनका वजन घट जाता है।इस रोग के लक्षण फूल आने की अवस्था पर दिखाई देते हैं, विशेषकर तब जब छोटी बालियां परिपक्व होने लगती हैं।सबसे स्पष्ट लक्षण धान के दानों के स्थान पर हरी-काली गेंदों का बनना है जिन्हें फाल्स स्मट बॉल्स या क्लैमाइडोस्पोर के रूप में जाना जाता हैं। जब ये गेंदें फूटती हैं, जिससे बीजाणुओं का एक झुंड निकलता है जो आस पास के पौधों को संक्रमित करता है।फाल्स स्मट रोग को प्रभावित करने वाले कारक वातावरणीय कारक कई पर्यावरणीय कारक झूठी गंदगी के विकास और गंभीरता में योगदान करते हैं. मिट्टी में तापमान, आर्द्रता और नाइट्रोजन का स्तर कवक के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। निवारक रणनीतियाँ तैयार करने के लिए इन कारकों को समझना महत्वपूर्ण है।
नियंत्रण:-
जैविक नियंत्रण
बुवाई के लिए रोग से ग्रस्त बीज का प्रयोग न करें।बीज सदैव प्रमाणित श्रोतों से ही खरीदें, हो सके तो रोग प्रतिरोधी किस्म का चयन करें।खेत व खेत की मेड़ों व सिंचाई की नालियों को खरपतवार से मुक्त रखें।बुवाई से पहले बीज को 52 डिग्री सेंटीग्रेड पर 10 मिनट तक उपचारित करें।फसल चक्र, रोग-प्रतिरोधी धान की किस्मों का चयन करना और उचित क्षेत्र की स्वच्छता बनाए रखना प्रमुख निवारक उपाय हैं।
रासायनिक नियंत्रण
प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह के अनुसार, फफूंदनाशकों का उपयोग फाल्स स्मट रोग को प्रबंधित करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन उनके प्रयोग का समय सावधानीपूर्वक चुना जाना चाहिए और संक्रमण की गंभीरता के आधार पर चुना जाना चाहिए।वही, निवारण उपाय के लिए पिकोक्सीस्ट्रोबिन 7.05% एससी, प्रोपिकोनाज़ोल 11.7% एससी जो भी बाजार में उपलब्ध की @ 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर फूल आने की अवस्था पर 10 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें. रोग के लक्षण पहली बार दिखने पर भी 350-400 मिली पिकोक्सीस्ट्रोबिन 7.05% एससी, प्रोपिकोनाज़ोल 11.7% एससी या 600 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (ब्लाईटोक्स, ब्लू कॉपर) या 150 ग्राम टेबुकोनाज़ोल 50% डबल्यूजी ट्राईफ़्लोक्सिस्ट्रोबिन 25% डबल्यूजी (नेटीओ) की उत्पादक द्वारा प्रति एकड़ छिड़काव करें। प्रोपिकोनाज़ोल और ट्राईसाईक्लाज़ोल नामक फफूंदनाशको के छिड़काव से भी इस रोग पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। ध्यान रहे कि दवाओं का छिड़काव सुबह धूप निकलने से पहले या शाम के समय ही करें।
Note: फसल सलाह की रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी सार्वजनिक स्रोतों और इंटरनेट के माध्यम से इकट्ठी की गई है। किसी भी कार्य प्रणाली को अपनाने से पहले कृषि वैज्ञानिकों की सलाह अवश्य लें और कार्य अपने विवेक और समझ से करें।
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मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।