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गेहूं के किसानों के लिए कृषि विश्वविद्यालय ने जारी की खास सलाह | जल्दी देखे

गेहूं के किसानों के लिए कृषि विश्वविद्यालय ने जारी की खास सलाह | जल्दी देखे
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किसान भाइयों, हाल ही में भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा गेहूँ किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव जारी किए गए हैं। ये सलाह खासतौर पर उन किसानों के लिए हैं जिन्होंने गेहूँ की बुआई कर ली है या कर रहे हैं। दोस्तों, इस मौसम में अनुकूल वातावरण के कारण गेहूँ की वृद्धि अच्छी हो रही है, और किसान अपनी फसल से बेहतरीन उत्पादन की उम्मीद कर रहे हैं। अभी तक के मौसम के हालातों को देखा जाए तो उत्तरी भारत में मौसम गेहूँ की फसल के लिए काफी अनुकूल चल रहा है, और यदि किसान भाई सही तरीके से कुछ महत्वपूर्ण कृषि उपायों का पालन करते हैं तो अवश्य ही उनकी फसल का उत्पादन काफी बेहतर हो सकता है। खेती में किसी भी प्रकार की विशेषज्ञों द्वारा दी गई तकनीकी सलाह या सुझाव भी किसानों को उनकी फसल के उत्पादन को बढ़ाने में काफी मददगार साबित होती है। इसी संदर्भ में, भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान ने जो दिशानिर्देश जारी किए हैं, वे किसानों को बेहतर तरीके से खेती करने में मदद कर सकते हैं। अब हम उन सुझावों को विस्तार से समझेंगे, जो गेहूँ की खेती को और अधिक लाभकारी बना सकते हैं। तो चलिए, इन सुझावों को और गहराई से समझने के लिए पढ़ते हैं यह रिपोर्ट।

यूरिया का प्रयोग
किसान साथियों, उत्तर भारत में हाल ही में हुई वर्षा से मिट्टी में नमी आ गई है, जिससे गेहूँ की फसल की वृद्धि बहुत अच्छी हो रही है। इस समय गेहूँ की वानस्पतिक वृद्धि और टिलरिंग (पत्तियों का विकास) बेहतर हो रहे हैं। ऐसे में यदि आप चाहते हैं कि आपकी गेहूं की फसल और भी अच्छे प्रकार से वृद्धि करें, तो फसल को बेहतर बनाए रखने के लिए यूरिया (Nitrogen fertilizer) का प्रयोग एक महत्वपूर्ण कदम है। भारतीय गेहूँ अनुसंधान संस्थान की सलाह के अनुसार किसानों को यूरिया का 40 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से एक खुराक देनी चाहिए। यूरिया का सही समय पर और सही मात्रा में उपयोग करने से फसल की वृद्धि बेहतर होती है और पौधे का स्वास्थ्य मजबूत रहता है। लेकिन यूरिया का उपयोग करने से पहले किसानों को यह ध्यान रखना चाहिए कि यूरिया का अधिक प्रयोग भी फसल को नुकसान पहुँचा सकता है। अतः इसे संतुलित तरीके से इस्तेमाल करना बेहद आवश्यक है। यूरिया के उपयोग से पहले मौसम का पूर्वानुमान जानना भी जरूरी है, ताकि मौसम में अचानक बदलाव होने पर यूरिया का असर कम न हो।

सिंचाई का महत्व
किसान साथियों, गेहूँ की फसल को अच्छी वृद्धि के लिए नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है, लेकिन सिंचाई करने के साथ-साथ किसानों को सिंचाई (Irrigation) के समय और मात्रा का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। इस समय भारतीय गेहूँ अनुसंधान संस्थान ने उन क्षेत्रों के लिए, जहाँ बारिश नहीं हुई है, खेतों की सिंचाई करने की सलाह दी है। और जिन क्षेत्रों में अभी बारिश हुई है, वहां सिंचाई की आवश्यकता नहीं है। बारिश वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से ठंडे मौसम के दौरान सिंचाई से बचना चाहिए, क्योंकि अत्यधिक पानी से फसल में जलजमाव हो सकता है, जो फसल को नुकसान पहुँचा सकता है। इसके अलावा विवेकपूर्ण सिंचाई करने से पानी की बचत भी होती है और लागत भी कम होती है। इसके लिए किसान मौसम के बदलाव पर नजर रखें और बारिश के पूर्वानुमान के अनुसार ही सिंचाई करें। साथ ही, पानी की अधिकता से बचने के लिए पानी की सही मात्रा का इस्तेमाल करना जरूरी है।

खरपतवार प्रबंधन
किसान साथियों, कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गेहूं की फसल में खरपतवारों का विकास किसी भी फसल के लिए हानिकारक हो सकता है। गेहूँ की फसल में भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है, जो फसल के पोषक तत्वों और पानी का अधिक उपभोग करती हैं। इसलिए खरपतवार प्रबंधन (Weed management) के लिए सही उपायों को अपनाना आवश्यक है। इस समय पर खरपतवारों को नियंत्रित करने से फसल की उत्पादन क्षमता बढ़ती है। किसानों को यह ध्यान रखना चाहिए कि उनका इलाज समय पर और प्रभावी तरीके से किया जाए। लेकिन किसान भाई इस बात का ध्यान अवश्य रखे, अगर आपकी गेहूं की फसल बोलियों की अवस्था में है तो खरपतवार को आप हाथ से ही निकालें, क्योंकि इस अवस्था में खरपतवार नाशी दवाइयां का उपयोग फसल की बोलियों को प्रभावित कर सकता है, जिसके कारण गेहूं की फसल में अत्यधिक नुकसान हो सकता है। या फिर आप इसके लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह अनुसार भी किसी कीटनाशक दवाई का उपयोग कर सकते हैं। या फिर आप किसी जैविक खरपतवार नाशक का उपयोग कर सकते हैं, जो आपके गेहूं के पौधों को प्रभावित न करें।

रोगों से बचाव
किसान भाइयों, अगर गेहूँ की फसल में पीला रतुआ (Yellow rust) संक्रमण के लक्षण दिख रहे हों, तो नाइट्रोजन का अत्यधिक उपयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, कोहरे या बादल की स्थिति में नाइट्रोजन का प्रयोग करने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे नाइट्रोजन का प्रभाव सही तरीके से नहीं हो पाता और फसल पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। फसल में पीला रतुआ के संक्रमण से बचने के लिए नियमित रूप से फसल का निरीक्षण करना बेहद जरूरी है। अगर कहीं पर संक्रमण के लक्षण दिखाई दें, तो किसानों को तुरंत नजदीकी कृषि विश्वविद्यालय या कृषि विज्ञान केंद्र से सहायता लेनी चाहिए। इसके अलावा, गेहूं का सेंहू रोग सूत्रकृमि द्वारा फैलता है। इस रोग के प्रभाव के कारण पौधे की पत्तियां मुड़ जाती हैं। दानों के स्थान पर बालियां फूल जाती हैं। बालियों पर एक गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ पाया जाता है। बालियों पर पीली कत्थई रंग की रचना सी बन जाती है। रोगी बालियां अन्य बालियों से अपेक्षाकृत छोटी होती हैं और अधिक समय तक हरी बनी रहती हैं। रोगी पौधे छोटे रह जाते हैं। इसके अतिरिक्त एक और अन्य रोग जिसे गेहूं का भूतिया रोग भी कहते हैं, यह रोग फफूंद द्वारा लगता है। इस रोग में पत्तियों की उपरी सतह पर गेहूं के आटे के रंग के सफेद धब्बे पड़ जाते हैं, जो कि उपयुक्त परिस्थितियाँ होने पर बालियों तक पहुँच जाते हैं। बाद में पत्तियों का रंग पीला व कत्थई होकर पत्तियां सूख जाती हैं। इस रोग के कारण दाना हल्का बनता है। इन रोगों से गेहूं की फसल को बचाने के लिए अतिरिक्त और रोगग्रस्त पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें। या फिर रोग का प्रभाव अधिक होने पर फसल में किसी रोग के लक्षण होने पर 500 मिली. बायो ट्रूपर 120 से 150 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से प्रयोग कर प्रभावित फसल पर छिड़काव करने से फसल पर रोगों का प्रभाव कम हो जाता है और आपकी फसल सुरक्षित हो जाती है।

नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर मौजूद सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।