क्या केवल MSP बढ़ाने से किसानों का भला हो पाएगा | रिपोर्ट में जाने
किसान साथियो जैसा कि आप सबको पता है कि 19 जून 2024 को भारत सरकार ने खरीफ सीज़न 2024-25 की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 5 से लेकर 12.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है। जिन मुख्य फसलों के भाव बढ़े है उनमें दलहनों और तिलहनों फसलों के भाव धान जैसी अनाज फसलों की तुलना में ज्यादा बढ़ाए गए है। WhatsApp पर भाव देखने के लिए हमारा ग्रुप जॉइन करे
सरकार ने कोशिश की है कि किसानों को पानी की अधिक खपत करने वाली धान जैसी फसलों की खेती से दूर हटाकर अधिक मांग वाली और कम पानी में पैदा होने वाली दलहन और तिलहन फसलों की ओर प्रेरित किया जाए। सरकार को उम्मीद है कि इस बदलाव से देश के दालों और खाने के तेलों के भारी आयात बिल को कम करने में मदद मिलेगी । अब देखने वाली बात यह है कि सरकार का यह कोशिश कितनी कामयाब रहती है। सरकार ने शुरू से ही तिलहन फसलों की पैरवी की है लेकिन अगर परिणामों को देखें तो पिछले कुछ वर्षों में इस रणनीति के मिले-जुले परिणाम सामने आए हैं।
आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि 2014-15 और 2022-23 के बीच, धान के लिए एमएसपी में 50 प्रतिशत की वृद्धि की गई है लेकिन इसके बावजूद इस फसल के अंतर्गत आने वाला क्षेत्रफल मात्र 8.43 प्रतिशत बढ़ा है। इसी अवधि के दौरान गेहूं के एमएसपी में 46.55 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है लेकिन इसके बावजूद गेहूं की खेती का क्षेत्रफल 0.19 प्रतिशत कम हुआ है।
बात दलहन की करें तो उक्त अवधि में चना के एमएसपी में लगभग 68 प्रतिशत की वृद्धि की गई है लेकिन यहां भी चने के बुवाई रकबे में लगभग 26.91 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। इसी तरह से सोयाबीन के एमएसपी में लगभग 68 प्रतिशत की वृद्धि हुई, और इसके बुवाई रकबे में लगभग 20 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई। 5850 रुपये में अपनी सरसों को बेचने के लिए लिंक पर क्लिक करे
साथियो आंकड़े साफ़ बता रहे हैं कि एमएसपी में बढ़ोतरी ने भले ही दलहनों और तिलहनों की खेती को थोड़ा बहुत प्रोत्साहित किया हो, लेकिन यह किसानों को धान और गेहूं से दूर ले जाने में सफल नहीं रहा है।
किसानों का रूझान तिलहन और दलहन फसलों की तरफ ना होने का बड़ा कारण यह है कि सरकार गेहूं और धान की सरकारी खरीद तो MSP पर कर लेती है लेकिन दलहन और तिलहन के किसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। इसलिए किसान गेहूं और धान की खेती करके अपने आपको सुरक्षित महसूस करते हैं। ये फ़सलें किसानों को आय सुरक्षा प्रदान करती है। गेहूं और धान को छोडकर अन्य फसलों की सरकारी खरीद उतनी विश्वसनीय नहीं है। दूसरी और इन फसलों के मामले में विदेशी बाजार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। निर्यात प्रतिबंध और सस्ते आयात के माध्यम से अक्सर सरकार बाजार की कीमतों को ज़बर्दस्ती गिराया जाता है। ये सब चीजें किसानों को धान या गेहूं से दूर हटकर दलहनों और तिलहनों की ओर जाने के लिए हतोत्साहित करती हैं ।
बाजरा, सोयाबीन और सरसों जैसी फसलों के मामले में हम देख चुके हैं कि इनके भाव लगातार MSP के नीचे बने हुए हैं। सरकार खरीद करती नहीं और व्यापारी को MSP के उपर के भाव में पड़ता नहीं लगता। कुल मिलाकर किसानों को अपनी फ़सल को औने-पौने दाम में बेचना पड़ता है। और वह अगली बार दलहन और तिलहन फ़सल को छोड़ कर गेहूं और धान की तरफ मुड़ जाता है।
अगर सरकार वास्तव में ही दलहन और तिलहन फसलों की तरफ किसानों को मोड़ना चाहती है तो उसे अपनी आयात निर्यात नीति में सुधार करना होगा। सस्ते खाद्य तेलों के आयात को दो साल से ड्यूटी फ्री कर रखा है जिसके चलते सस्ते खाद्य तेल की भारत में डंपिंग होने लगी है। मिलों को सरसों और सोयाबीन खरीद कर मिलिंग करने में पड़ते नहीं आ रहे। अनेकों मिलें बंद होने की कगार पर पहुँच चुकी हैं। जहां तक सरकारी खरीद की बात है साल 2020 से लेकर साल 2024 तक सरकार ने तिलहन फसलों के 10% फ़सल अधिशेष को भी नहीं खरीदा है। इसलिए यह कहना गलत नहीं है कि केवल MSP बढ़ाने से किसान तिलहन और दलहन फसलों की नहीं जाने वाले।