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धान में पत्ता लपेटक बीमारी और इसकी रोकथाम के लिए जरूरी रिपोर्ट

धान में पत्ता लपेटक बीमारी और इसकी रोकथाम के लिए जरूरी रिपोर्ट
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किसान साथियो इस समय बासमती धान की फ़सल खेतों में लहरा रही है। पंजाब और हरियाणा में बासमती की फ़सल 25 दिन से 35 दिन की हो चुकी है। इस समय में बासमती में कुछ रोगों का प्रसार हो सकता है जिसके लिए आपको कुछ सावधानियां बरतने की आवश्यकता है। बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान ने कुछ रोगों की पहचान और रोकथाम के बारे में कुछ उपाय सुझाए हैं। इन्हीं सुझावों के आधार पर आज की रिपोर्ट में हम बासमती में लगने वाली कुछ बीमारियों और उनकी रोकथाम के बारे में चर्चा करेंगे।

पत्ती लपेटक रोग
पत्ती लपेटक कीट एक हरे रंग की छोटी सी सुन्डी होती है। या छोटी से सुन्डी आमतौर पर काफी चुस्त होती है। धान की फसल में फसल में पत्ता लपेट सुंडी के प्रकोप के पौधे सूखने लगते हैं, जिससे धान की फसल की क्वालिटी खराब होने लगती है। दरअसल पत्ता लपेट सुंडियां पत्तों को लपेटकर अंदर ही अंदर खाने लगती है, जिससे पौधे के ऊपर सफेद धारियां दिखने लगती है। पत्ता लपेटक सुन्डी पत्ती को जुलाई से अक्टूबर तक खाती रहती है।  इस समस्या का असर जल्दी दिखाई नहीं देता और धीरे-धीरे ये अपनी आस-पास के ज्यादातर पौधों में भी फैल जाता है। ये सुंडियां पौधों से हरे पदार्थ को चूस लेती  हैं, जिससे पत्ते सफेद पड़ने लगते हैं। इसका  कीट का वयस्क (पतगां / तितली) सुनहरे पीले रंग का होता है। इसके अगले पंख पर अढाई धारियां होती है। अकसर धान की फसल में यूरिया का अधिक इस्तेमाल करने पर धान के पौधों में कच्चापन बढ़ जाता है, इस वज़ह से भी फसल में पत्ता लपेट सुंडी की संभावना बढ़ जाती है।

रोकथाम
साथियो हमने पहले भी अपनी पोस्ट में बताया हुआ है कि बासमती धान में रोपाई के बाद 15-25 के बीच खेतों में पानी भर कर हल्का पाटा अवश्य चलाए । इसके चलाने से फूटाव भी अच्छा होता है और पत्ती लपेटक जैसे कई रोगों से मुक्ति मिल सकती है। साथियो जैसे इस कीट का प्रकोप दिखाई दे आप खेतो में रस्सी खीचवा सकते हैं । पत्ता लपेट सुंड़ी का प्रकोप दिखने पर फसल में 7.5 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से पदान, रीजैंट या पठेरा कीटनाशक का छिड़काव भी कर सकते हैं।

कुछ कृषि विशेषज्ञ पत्ता लपेट सुंडी की रोकथाम के लिये प्रति एकड़ फसल पर 200 मिली मोनोक्रोटोफास 36 एसएल को 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने की सलाह भी देते हैं। इसके अलावा किसान चाहें तो प्रति एकड़ फसल पर 10 किलोग्राम मिथाइल पैराथिन की 2% मात्रा का छिड़काव भी कर सकते हैं।

धान की फसल में यूरिया का इस्तेमाल संतुलित मात्रा में ही करें, क्योंकि ज्यादा उर्वरकों के प्रयोग से भी मिट्टी और फसल पर उलटा असर होने लगता है और कीट-रोग की संभावना बढ़ जाती है। इस कीट की खास बात यह है कि यह कीट तेज वर्षा होने पर स्वयं ही खत्म हो जाता है

गन्धी बग रोग
किसान साथियो गंधी बग रोक का प्रकोप हर साल नहीं होता। यह कीट किसी-किसी वर्ष ही आकमण करता है। इसके शिशु व वयस्क कीट धान की बालियों में दाना नहीं बनने देते। इस कीट का वयस्क तीखी गन्ध भी छोड़ता है।

रोकथाम
 इस कीट का प्रकोप दिखाई देने पर नीम के बीज की गुठली का अर्क (रस) 5 प्रतिशत 10 लीटर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करने से भी प्रबन्धन किया जा सकता है।

हिस्पा रोग
इस कीट का लार्वा पत्ती के अन्दर ही अन्दर हरितलवक को खा लेता है और वयस्क होकर बाहर आता है फिर यह कीट भी धान की पत्तियो को सीधी लाइन में खाता है जिससे पत्तियो पर सफेद निशान दिखाई पड़ते है ।

रोकथाम
रोपाई के बाद 15-25 दिन पर खेतो में पानी भर कर हल्का पाटा अवश्य चलाए । इस कीट का प्रकोप दिखाई देने पर खेतो में रस्सी खीचवाए ।

Disclaimer :-  इस पोस्ट में प्रदान की गई सूचना बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान और कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की जानकारियों पर आधारित है। मंडी भाव टुडे किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले अपने नजदीकी कृषि विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट(Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।