सोयाबीन और सरसों का स्टॉक पड़ा हुआ है तो आपको ये रिपोर्ट एक बार देख लेनी चाहिए
किसान साथियों फ़िलहाल सोयाबीन के किसानों के लिए यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है कि सरकार द्वारा इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाए जाने और समर्थन मूल्य में वृद्धि के बावजूद सोयाबीन की कीमतें लगातार नीचे क्यों जा रही हैं। पिछले कुछ दिनों में सोयाबीन और खाद्य तेलों के बाजार में महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। शुरू में दाम बढ़े, लेकिन अब फिर से गिरावट आ रही है। हाल के समय में, सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं जो देखने में राजनीतिक लाभ के लिए प्रतीत हो रहे हैं, खासकर उन राज्यों में जहां चुनाव होने वाले हैं, जैसे महाराष्ट्र और हरियाणा। इस लेख में हम सोयाबीन के मौजूदा बाजार मूल्य, किसानों और व्यापारियों के सामने आने वाली चुनौतियों, और सरकार के संभावित कदमों पर चर्चा करेंगे, जिससे बाजार स्थिर हो सके।
बाजार में दाम क्यों घट रहे हैं?
किसान साथियों पहले तो सोयाबीन और तेलों के दाम बढ़ने लगे थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से बाजार में कीमतें फिर से नीचे की ओर आती दिख रही हैं। इसका कारण यह है कि जैसे ही अच्छे दाम मिले, किसानों और व्यापारियों ने अपना स्टॉक मंडियों में निकालना शुरू कर दिया। अब मंडियों में प्रेशर बढ़ गया है क्योंकि सोयाबीन का पुराना स्टॉक सभी के पास अटका हुआ था, चाहे वह किसान हो या व्यापारी। इसलिए सभी ने तेजी से माल बेचना शुरू कर दिया है।
कुछ दिनों पहले तक तेलों और सोयाबीन के दामों में तेजी आई थी, लेकिन अब अचानक से बाजार में गिरावट आ रही है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि किसानों और व्यापारियों के पास बड़ी मात्रा में स्टॉक बचा हुआ है। जैसे ही बाजार में थोड़ा बढ़िया भाव आया, सभी किसान और व्यापारी माल बेचने के लिए मंडियों में पहुँच गए, जिससे मंडियों पर दबाव बढ़ गया। इसके परिणामस्वरूप सोयाबीन के दाम गिरने लगे।
जब भी बाजार में थोड़ी सी भी बढ़त होती है, किसान और व्यापारी जल्दी से माल बेचने लगते हैं। इस समय, सोयाबीन की नई फसल आने वाली है, जिससे मंडियों पर दबाव और बढ़ सकता है। अगले महीने से नई फसल की आवक शुरू होगी, जिससे कीमतें और नीचे आ सकती हैं। हालांकि, बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि 4500 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे दाम गिरने की संभावना नहीं है। यह न्यूनतम स्तर 4500 से 4600 रुपये के बीच होगा, और इसके 400-500 रुपये बढ़ने की संभावना है।
अगर सोयाबीन की कीमतों को स्थिर रखना है और समर्थन मूल्य के करीब लाना है, तो सरकार को निर्यात पर प्रोत्साहन देना होगा। इसके अलावा, फ्रेट सब्सिडी जैसी नीतियाँ अपनानी होंगी, ताकि सोयाबीन का निर्यात सुचारू रूप से हो सके। इससे न केवल किसानों को बेहतर मूल्य मिलेगा, बल्कि पुराना स्टॉक भी जल्दी समाप्त होगा, जो वर्तमान में बाजार पर दबाव बना रहा है।
इंपोर्ट ड्यूटी और समर्थन मूल्य में वृद्धि का प्रभाव
सरकार ने तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाई और सोयाबीन का समर्थन मूल्य भी बढ़ाया। यह कदम किसानों को नाराज न करने के उद्देश्य से उठाए गए हैं, खासकर चुनावी राज्यों में। हालांकि, इन कदमों का सीधा लाभ किसानों को मिलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। ड्यूटी का स्ट्रक्चर पहले ही सही समय पर लागू होना चाहिए था ताकि इसका लाभ किसानों को मिल सके। सरकार यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि सोयाबीन का बाजार मूल्य समर्थन मूल्य के आसपास रहे।
खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी में वृद्धि
सरकार ने हाल ही में खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी 20% बढ़ाई है, जबकि क्रूड ऑयल पर 27.50% ड्यूटी बढ़ाई गई है। कृषि सचिव के अनुसार, पुराना आयातित तेल अभी भी बाजार में है, जो पहले की इंपोर्ट ड्यूटी पर आया था। इससे कीमतों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। सरकार ने व्यापारियों से मुनाफाखोरी न करने की अपील की है और कहा है कि वे पुराने तेल को सही मूल्य पर बेचें। वर्तमान में 30 लाख टन खाद्य तेल का आयात किया गया है, जो 50 दिनों की खपत के बराबर है। यह कदम भारतीय बाजार में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और विदेशी तेलों के आयात को सीमित करने के उद्देश्य से उठाया गया है। यदि सरकार इसी तरह से सोयाबीन और उससे जुड़े उत्पादों के निर्यात पर भी प्रोत्साहन दे, तो किसानों और उद्योग दोनों को लाभ हो सकता है।
डीडीजीएस और डीसी की मांग पर असर
एक और बड़ा मुद्दा यह है कि डीडीजीएस (डिस्टिलर ड्राई ग्रेन्स विद सोल्यूबल्स), जो इथेनॉल प्लांट्स का बायप्रोडक्ट है, ने घरेलू बाजार में डीसी (डीऑयल्ड केक) की मांग को काफी हद तक प्रभावित किया है। आंकड़ों के अनुसार, 5 से 10 लाख टन डीसी की मांग को डीडीजीएस ने प्रतिस्थापित कर दिया है। यह स्थिति किसानों और उद्योग के लिए चुनौतीपूर्ण हो गई है, क्योंकि अब डीसी का बड़ा हिस्सा निर्यात में ही बिकेगा।
चूंकि डीओसी का घरेलू बाजार में प्रभाव कम हो गया है, इसका निराकरण केवल निर्यात के माध्यम से ही संभव है। इस समय, निर्यात के लिए 4000 से 5000 टन के बीच का अंतर है, जिसे पाटने के लिए सरकार को 10% निर्यात प्रोत्साहन देना चाहिए। इससे न केवल किसानों को उचित मूल्य मिलेगा, बल्कि सरकार को सोयाबीन खरीदने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी, और उद्योग को भी रोजगार मिलेगा।
सोयाबीन का बचा हुआ स्टॉक और नई फसल
किसान साथियों सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुसार, फिलहाल लगभग 11 से 12 लाख टन पुराना स्टॉक उपलब्ध है, जो फसल आने तक प्रोसेसिंग प्लांटों के लिए पर्याप्त होगा। सोपा ने बताया कि पुराना स्टॉक कम है, फिर भी प्लांट आराम से चल सकेंगे, क्योंकि फसल आने तक पर्याप्त सोयाबीन उपलब्ध है। नई फसल की आवक अक्टूबर के मध्य से शुरू हो जाएगी, जिससे नवंबर में दिवाली के समय पूरी तरह से आवक हो जाएगी।
नई फसल का असर और भविष्य की स्थिति
हालांकि, अगले महीने से नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी, और इसका बाजार पर असर दिखने लगेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, सोयाबीन का न्यूनतम भाव 4500 रुपये प्रति क्विंटल के नीचे नहीं जाएगा। यह माना जा रहा है कि 4500 से 4600 रुपये के बीच इसका न्यूनतम स्तर रहेगा, और आने वाले समय में इसके भाव स्थिर रहने की संभावना है। इसके लिए यह जरूरी है कि सरकार समर्थन मूल्य के आसपास सोयाबीन का भाव बनाए रखने के लिए निर्यात पर इंसेंटिव प्रदान करे। इससे एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा और किसानों को उचित मूल्य मिलेगा।
तेल की कीमतों पर प्रभाव और आयात
कृषि सचिव के बयान के अनुसार, तेल की कीमतों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि पहले की इंपोर्ट ड्यूटी पर आयात किया गया तेल बाजार में उपलब्ध है। 30 लाख टन खाद्य तेल का आयात पहले किया जा चुका है, जो 50 दिनों की खपत के बराबर है। ऐसे में तेल की उपलब्धता बनी रहेगी और कीमतों पर अधिक दबाव नहीं पड़ेगा। हालांकि, कीमतों में थोड़ा उतार-चढ़ाव संभव है, क्योंकि सरकार ने हाल ही में ड्यूटी बढ़ाई है।
सरसों की स्थिति और भाव
सरसों की स्थिति भी काफी दिलचस्प है। हाल के दिनों में सरसों के भावों में गिरावट देखी गई थी, लेकिन अब सरकार को सरसों का स्टॉक छोड़ने का सुझाव दिया जा रहा है। इससे बाजार स्थिर होगा और किसानों को फायदा होगा। सरकार के पास पर्याप्त स्टॉक है, इसलिए इसे बेचना बाजार को संतुलित करने के लिए सही कदम होगा।
सोयाबीन की बुवाई और उत्पादन की उम्मीद
पिछले साल के मुकाबले इस बार सोयाबीन की बुवाई लगभग 125 लाख टन के आसपास हुई है, जिससे उत्पादन की उम्मीद 120 लाख टन के करीब की जा रही है। पिछले साल 118 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था, और इस साल इसका आंकड़ा लगभग बराबर रहने की संभावना है।
सरसों की बुवाई और उत्पादन पर चिंता
सरसों की बुवाई इस बार थोड़ी चिंताजनक हो सकती है, क्योंकि मानसून देर से विदा हो रहा है। सितंबर के पहले सप्ताह में आमतौर पर सरसों की बुवाई शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार बारिश अधिक होने के कारण खेत अभी तैयार नहीं हो पाए हैं। ऐसे में सरसों की बुवाई में देरी हो सकती है, जिससे उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
सरकार , अगर सोयाबीन के निर्यात पर इंसेंटिव प्रदान करे। इससे देश को विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होगी और किसानों को भी फायदा होगा। इसके अलावा, सरसों का स्टॉक बेचने से बाजार में स्थिरता आएगी। अगर सरकार डीओसी पर इंसेंटिव देती है, तो इंडस्ट्री को भी काम मिलेगा और किसानों को भी समर्थन मूल्य मिलेगा।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।