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इस बार भारत में कैसे हुई DAP खाद की कमी | जाने DAP खाद की कमी के पीछे क्या है कारण

इस बार भारत में कैसे हुई DAP खाद की कमी | जाने DAP खाद की कमी के पीछे क्या है कारण
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किसान साथियो हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों के किसान इन दिनों डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) की भारी कमी से जूझ रहे हैं। डीएपी एक महत्वपूर्ण खाद है और इसका इस्तेमाल अधिकांश फसलों में किया जाता है। लेकिन इन दिनों इसकी उपलब्धता कम होने के कारण किसानों को काफी परेशानी हो रही है। गेहूं और सरसों जैसी महत्वपूर्ण फसलों की बुवाई के समय डीएपी की कमी से किसानों का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। कई किसानों को डीएपी खरीदने के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगानी पड़ रही है और कुछ जगहों पर तो पुलिस की निगरानी में ही इसका वितरण हो रहा है। कई किसानों ने 1350 रुपये वाले 50 किलो डीएपी के बैग को ब्लैक में दो हजार रुपये तक में खरीदने को मजबूर हुए हैं। सरकार के दावों के बावजूद डीएपी की कमी का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है।

हालात इतने गंभीर हैं कि सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस ही नहीं, अन्य पार्टियों के शासन वाले राज्यों में भी किसानों को डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) खाद की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि देश में डीएपी की जितनी मांग है, उतनी आपूर्ति नहीं हो पा रही है। परिणामस्वरूप, अधिकांश राज्यों को उनकी आवश्यकता के अनुसार डीएपी उपलब्ध नहीं हो पा रही है। भारत सरकार किसानों को डीएपी खाद उपलब्ध करवाने के लिए आयात पर निर्भर है, लेकिन इस वर्ष इसके आयात में कमी आई है, जिसका सीधा असर जमीनी स्तर पर साफ दिखाई दे रहा है। अब सवाल उठता है कि आजादी के 77 साल बाद भी हम किसानों को खाद जैसी जरूरी चीजों की आपूर्ति सुनिश्चित क्यों नहीं कर पा रहे हैं? हालात इतने गंभीर हैं कि कई किसानों को डीएपी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, और कहीं-कहीं तो इसके लिए लाठियां तक खानी पड़ रही हैं।

क‍िन राज्यों में कम सप्लाई हो रहा है खाद
देश के कई राज्यों में खाद, विशेषकर डीएपी की भारी कमी देखी जा रही है। चाहे वह बीजेपी शासित राज्य हों या कांग्रेस शासित, सभी को इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है। सितंबर 2024 के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में डीएपी की मांग और आपूर्ति के बीच एक बड़ा अंतर है। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में 1,57,000 मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत थी, लेकिन केवल 69,702.9 मीट्रिक टन ही उपलब्ध हो पाया। इसी तरह, उत्तर प्रदेश में 1,95,000 मीट्रिक टन की जरूरत के मुकाबले 1,35,474 टन ही उपलब्ध हुआ। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। इस कमी के कारण किसानों को काफी परेशानी हो रही है और उनकी फसलें प्रभावित हो रही हैं।

हर‍ियाणा में क्यों नहीं मिल प् रहा है DAP खाद
हरियाणा में डीएपी की उपलब्धता को लेकर एक विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो गई है। सितंबर 2024 में राज्य में विधानसभा चुनाव हुए थे और उस दौरान डीएपी की मांग में अत्यधिक वृद्धि देखी गई थी। आंकड़ों के अनुसार, सितंबर में जहां 60,000 मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता थी, वहीं 64,345 मीट्रिक टन की बिक्री हुई, जो मांग से अधिक थी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, अक्टूबर महीने में किसानों को डीएपी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। हरियाणा सरकार के प्रवक्ता के अनुसार, 27 अक्टूबर तक राज्य में पुराने स्टॉक सहित केवल 27,357 मीट्रिक टन डीएपी ही उपलब्ध था। हालांकि, भारत सरकार ने अक्टूबर महीने के लिए 1,15,150 मीट्रिक टन डीएपी का आवंटन किया था, जिसमें से 27 अक्टूबर तक 68,929 मीट्रिक टन ही राज्य को मिला था। यह स्थिति इस बात को उजागर करती है कि डीएपी की उपलब्धता और मांग के बीच एक गहरा अंतर है। चुनाव के दौरान अत्यधिक मात्रा में डीएपी की बिक्री के बावजूद, अक्टूबर में किसानों को इसकी कमी का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति किसानों के लिए चिंता का विषय है क्योंकि डीएपी फसलों के लिए एक महत्वपूर्ण उर्वरक है।

डीएपी खाद की शॉर्टेज से किसान हुए परेशान
गेहूं और सरसों की बुवाई के मौसम में डीएपी खाद की भारी कमी ने किसानों को मुश्किल में डाल दिया है। देश भर में किसान खाद के लिए लंबी-लंबी कतारें लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें खाद नहीं मिल पा रही है। इस समस्या का राजनीतिक रंग भी चढ़ गया है। विपक्षी दल सरकार को इस मुद्दे पर घेर रहे हैं। कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आरोप लगाया है कि खाद की आपूर्ति में गड़बड़ी के कारण किसानों को काफी परेशानी हो रही है और उन्हें खाद ब्लैक मार्केट से खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। कांग्रेस नेत्री कुमारी शैलजा ने भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरा है और कहा है कि डीएपी की कमी से किसानों को काफी नुकसान हो रहा है। कई जगहों पर किसानों ने विरोध प्रदर्शन भी किए हैं। इस तरह डीएपी की कमी किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है और सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती।

डीएपी खाद का कितना होता है आयात
भारत में यूरिया के बाद डीएपी की खपत सबसे अधिक है। देश में हर साल लगभग 100 लाख टन डीएपी की मांग होती है। इस उच्च मांग के कारण, भारत को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में डीएपी का आयात करना पड़ता है। आयात पर यह निर्भरता देश को कई चुनौतियों का सामना करने के लिए मजबूर करती है, विशेष रूप से जब वैश्विक बाजार में उतार-चढ़ाव होते हैं। साल 2019-20 में भारत ने 48.70 लाख मीट्रिक टन डीएपी का आयात किया था, जो 2023-24 में बढ़कर 55.67 लाख मीट्रिक टन हो गया। उसी वर्ष, घरेलू उत्पादन केवल 42.93 लाख मीट्रिक टन ही था। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारत की डीएपी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए देश कितना अधिक आयात पर निर्भर है। आयात पर यह निर्भरता देश को वैश्विक बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बनाती है और डीएपी की कीमतों में अस्थिरता का कारण बन सकती है।

इस बार क्या DAP खाद नहीं मिल पा रहा है?
रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने इस साल डीएपी की कमी के पीछे की वजह बताई है। मंत्रालय के अनुसार, जनवरी से शुरू हुए लाल सागर संकट के कारण डीएपी का आयात प्रभावित हुआ है। इस संकट के चलते डीएपी को लाने वाले जहाजों को केप ऑफ गुड होप के रास्ते से होकर लगभग 6500 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर तय करना पड़ा है। यह स्पष्ट है कि डीएपी की उपलब्धता कई भू-राजनीतिक कारकों से प्रभावित हुई है। हालांकि, उर्वरक विभाग ने सितंबर-नवंबर, 2024 के दौरान डीएपी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए हैं।

कीमतों में बढ़ोतरी का कितना असर हुआ?
उर्वरक विभाग के ताजा आंकड़ों के अनुसार, डीएपी की कीमतों में पिछले एक साल में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सितंबर 2023 में जहां डीएपी की कीमत 589 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन थी, वहीं सितंबर 2024 में यह बढ़कर 632 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन हो गई है। यह वृद्धि लगभग 7.30 प्रतिशत है। हालांकि, वैश्विक बाजार में डीएपी सहित अन्य उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद, कंपनियों की खरीद क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ा है। कोविड काल से ही डीएपी की अधिकतम खुदरा कीमत (एमआरपी) 1350 रुपये प्रति 50 किलोग्राम बैग बनी हुई है, जिसका अर्थ है कि उपभोक्ताओं को अभी तक इस बढ़ोतरी का बोझ नहीं उठाना पड़ा है।

मांग और आपूर्त‍ि की बीच क‍ितना गैप है
देश के कई हिस्सों में किसान डीएपी खाद की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। यह समस्या पिछले कुछ महीनों से बनी हुई है। आंकड़ों के अनुसार, सितंबर महीने में ही डीएपी की मांग और आपूर्ति में लगभग 2.34 लाख मीट्रिक टन का अंतर था। इस कमी का असर अक्टूबर महीने में भी देखने को मिला। कई जगहों पर पुलिस की सुरक्षा में डीएपी का वितरण किया जा रहा है, जो इस बात का प्रमाण है कि मांग और आपूर्ति में कितना बड़ा अंतर है। सितंबर 2024 में देश में 9.35 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता थी, जबकि केवल 7.01 लाख मीट्रिक टन ही उपलब्ध था। इस कमी के कारण किसानों को अपनी फसलों के लिए उचित मात्रा में डीएपी नहीं मिल पा रहा है, जिससे उनकी उपज पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

क्या इससे पहले भी DAP की किल्लत हुई थी
साल 2021, खासकर अक्टूबर महीने में, देश के किसानों ने डीएपी की भारी कमी का सामना किया था। यह संकट इतना गंभीर था कि कई राज्यों में किसानों को खाद के लिए लंबी-लंबी कतारें लगानी पड़ी थी। हरियाणा के मेवात में तो हालात इतने बिगड़ गए थे कि पुलिस थानों में ही किसानों को डीएपी बांटा गया था। मध्य प्रदेश में भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी। साल 2021 में सितंबर महीने में ही देश में डीएपी की मांग और आपूर्ति के बीच 3.44 लाख मीट्रिक टन का भारी अंतर था। देश को 10.39 लाख मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत थी, लेकिन उपलब्धता सिर्फ 6.95 लाख मीट्रिक टन ही थी। इस भारी अंतर के कारण ही किसानों को डीएपी की कमी का सामना करना पड़ा था। यह संकट किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया था क्योंकि डीएपी फसलों के लिए एक महत्वपूर्ण खाद है।

भारत में कब सबसे ज्यादा आपूर्त‍ि थी?
पिछले कुछ वर्षों में, डीएपी की मांग और आपूर्ति के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं रहा है। उदाहरण के लिए, सितंबर 2023 में डीएपी की मांग 7.18 लाख मीट्रिक टन थी, जबकि उपलब्धता 12.08 लाख मीट्रिक टन थी। इसी तरह, सितंबर 2022 में मांग 8.26 लाख टन थी और उपलब्धता 12.23 लाख टन थी। यहां तक कि सितंबर 2020 में भी, मांग 8.09 लाख टन होने के बावजूद, उपलब्धता 18.01 लाख टन थी। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि इन वर्षों में डीएपी की आपूर्ति मांग से अधिक रही है। इसलिए, किसानों को डीएपी की कमी का सामना नहीं करना पड़ा है।

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।