कपास औऱ सोयाबीन की खेती से मुँह मोड़ सकते हैं किसान | जाने क्या है इसकी वज़ह
मध्य प्रदेश में खरीफ की परिपाटी में परिवर्तन
किसान साथियों मध्य प्रदेश के खेतिहर परिवेश में इस खरीफ मौसम में व्यापक रूप से फसलों की प्राथमिकताओं में बदलाव दिखाई दे रहा है। पारंपरिक रूप से अधिक रकबे में बोई जाने वाली सोयाबीन और कपास की बजाय अब कृषकों का ध्यान मक्का की ओर आकर्षित हो रहा है। इस बदलाव का मुख्य कारण कृषि निवेश की बढ़ती लागत, घटते लाभ और बदलते बाजारीय समीकरण हैं। मक्का की उपज क्षमता, सीमित लागत और सतत मांग ने इसे किसानों के लिए लाभकारी विकल्प बना दिया है। पिछले वर्षों में सोयाबीन और कॉटन की पैदावार में असमानता और उनके मूल्य में उतार-चढ़ाव से किसान आर्थिक रूप से प्रभावित हुए हैं, जिससे वे अधिक संतुलित और टिकाऊ समाधान की ओर रुख कर रहे हैं।
खरिफ तैयारियों के साथ जब रबी की फसल जैसे गेहूं की बिक्री पूरी हो चुकी है, तब निमाड़ और मालवा क्षेत्र के किसान खेत तैयार कर खाद-बीज की समुचित व्यवस्था में व्यस्त हैं। इस बार खेतिहर योजनाओं में व्यापक परिवर्तन परिलक्षित हो रहा है। कृषि अधिकारियों और संवाददाताओं से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, आगामी खरीफ सत्र में मक्का का रकबा 30 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है। इसके विपरीत, सोयाबीन और कपास के रकबे में 20 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है। उद्यानिकी फसलों में केला और पपीता का क्षेत्रफल बढ़ने की उम्मीद है, जबकि टमाटर और मिर्च जैसी नगदी फसलों का रुझान कमजोर हो सकता है।
कृषकों की सोच में बदलाव
मालवा अंचल के अग्रणी किसानों से बातचीत करने पर यह स्पष्ट हुआ कि इस बार पारंपरिक फसलों की जगह मक्का, मूंग, उड़द जैसे विकल्पों को प्राथमिकता दी जा रही है। ग्राम अजड़ावदा के योगेंद्र कौशिक ने बताया कि लगातार दो वर्षों से सोयाबीन में घाटा होने से किसान अब मक्का की तरफ झुक रहे हैं, विशेषकर हाइब्रिड किस्मों की अधिक पैदावार किसानों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी है। ग्राम पालखांदा के शैलेन्द्र सिंह झाला ने उज्जैन-आगर रोड क्षेत्र में मक्का की खेती को व्यापक होते देखा है, जबकि धान की आंशिक वापसी भी मालवा के परिदृश्य में एक नई दिशा की ओर संकेत करती है।
फसलों में विविधता लाते किसान
ग्राम रोहलकलां के भेरूलाल परमार ने बताया कि वे अब भी परंपरागत सोयाबीन को ही प्राथमिकता देंगे क्योंकि उन्हें इसकी खेती में दक्षता प्राप्त है। वहीं जिनवान्या के करण पटेल ने कहा कि उनके क्षेत्र में 10-15 प्रतिशत तक मक्का की खेती में इज़ाफा देखने को मिल सकता है, क्योंकि यह दोनों मौसमों में उपज देता है। धार के कृषक कृष्णा सांखला ने अमरुद और पत्ता गोभी की खेती शुरू कर दी है तथा वे इस साल भी पिकाडोर किस्म की मिर्च लगाएंगे। वे मक्का की बहुउपयोगिता – जैसे एथेनॉल, बायोडीजल और पोल्ट्री फीड – को देखते हुए इसे किसानों के लिए उत्तम विकल्प मानते हैं।
ग्राम मारोल के हरिओम पाटीदार ने मक्का में इल्लियों के हमले को समस्या बताया, जिससे वे सोयाबीन की खेती को ही वरीयता देंगे। चिकलिया के मनोज पाटीदार ने भी 20 बीघा में सोयाबीन बोने की योजना बनाई है, हालांकि वे मक्का को लेकर असमंजस में हैं। इंदौर के भोंडवास के जीवन सिंह ने कहा कि वे पिछले कुछ वर्षों से मक्का की खेती कर रहे हैं और 2023 में उन्होंने प्रति बीघा 17 क्विंटल उपज प्राप्त की थी, जो उनके लिए लाभकारी रही। पालकांकरिया के बबलू जाधव के अनुसार, गिरते सोयाबीन मूल्य ने किसानों को दलहन और मक्का की ओर मोड़ने के लिए मजबूर किया है।
क्षेत्रों में फसलों का संतुलन बदलता हुआ
बड़वानी के कुंआ गांव के अजय पाटीदार ने 35 बीघा में मिर्च लगाने का निर्णय लिया है, वहीं उन्होंने कहा कि इस बार सोयाबीन और टमाटर का रकबा घटेगा। वहीं चंद्रवीर चौहान ने कहा कि इस बार वे कपास कम और मक्का अधिक बोएंगे। खरगोन के बिठेर गांव के गजेंद्र पाटीदार कपास के साथ-साथ पपीता और मिर्च की खेती करते हैं, लेकिन सोयाबीन को नकारते हैं क्योंकि उन्हें इस फसल में घाटा होता है। महेश्वर के दीपक पाटीदार ने बताया कि वे खीरा और करेला के साथ मक्का लगाएंगे क्योंकि गत वर्ष मक्का की उपज और मूल्य उन्हें संतोषजनक लगे।
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किसानों की बदलती रणनीति
गोगांवा के दीपक कुशवाह ने बताया कि वे मक्का और सोयाबीन दोनों लगाते हैं, लेकिन कपास की खेती नहीं करते क्योंकि उसमें अधिक लागत और श्रमिकों की उपलब्धता की समस्या होती है। देवास जिले के कलमा गांव के अनिल राजपूत ने कहा कि उनके क्षेत्र के अधिकांश किसान सोयाबीन ही बोते हैं और इस बार वे 80 बीघा में इसकी बुवाई करेंगे। वहीं बड़ी चुरलाई के देवकरण पाटीदार ने बताया कि वे 25 बीघा में सोयाबीन लगाकर मक्का से दूरी बनाए रखेंगे क्योंकि घोड़ारोज जैसी समस्याएं मक्का की खेती को बाधित करती हैं।
कृषि उत्पाद विक्रेताओं की राय भी इस बदलाव को स्पष्ट करती है। जयश्री एग्रो के सुनील पाटीदार ने बताया कि कपास के रकबे में गिरावट और मक्का में इज़ाफा संभावित है। शिवम ट्रेडर्स करही के अरविन्द पाटीदार का मानना है कि इस बार मक्का और कपास को बढ़ावा मिलेगा, जबकि सोयाबीन का झुकाव कमजोर रहेगा। सनावद के दीपक मंडलोई ने कहा कि मिर्च के पिछले वर्ष खराब उत्पादन और कम लाभ के कारण इस बार इसका रकबा घटेगा, जबकि केला और पपीता जैसी बागवानी फसलों को तरजीह दी जाएगी।
वर्तमान कृषि आंकड़ों की तुलनात्मक स्थिति
वर्ष 2024 की सरकारी आंकड़ों की समीक्षा करें तो मध्य प्रदेश में मक्का का रकबा 19.23 लाख हेक्टेयर रहा, जिससे 61.34 लाख टन उत्पादन प्राप्त हुआ, और उत्पादकता 3190 किलो प्रति हेक्टेयर रही। वहीं सोयाबीन का क्षेत्रफल 55.10 लाख हेक्टेयर होते हुए भी उत्पादन केवल 63.92 लाख टन ही हुआ और उत्पादकता मात्र 1160 किलो रही। लागत के संदर्भ में मक्का की लागत 1447 रुपए प्रति क्विंटल रही जबकि सोयाबीन पर 3261 रुपए प्रति क्विंटल खर्च आया। इससे स्पष्ट होता है कि मक्का खेती की दृष्टि से अधिक लाभकारी और संतुलित विकल्प बन कर उभरी है, जिसने राज्य के कृषकों की सोच को नई दिशा दी है।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।