क्या जुलाई महीने में तेज हो जाएगा सोयाबीन का बाजार | जाने क्या कहती है तेजी मंदी रिपोर्ट
किसान साथियों और व्यापारी भाइयों इस साल सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों के लिए हालात बेहद चुनौतीपूर्ण रही है। पूरे सीज़न में भाव पिटते रहे और अभी भी बाजार में कोई सुधार नहीं दिखा रहा है। NAFED द्वारा अब तक 3.60 लाख टन सोयाबीन की नीलामी की जा चुकी है, लेकिन औसत कीमतें 4350 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास ही टिकी हुई हैं, जो पिछले साल के मुकाबले काफी कम है। अनुमान लगाया जा रहा है कि भाव के इस कदर कमजोर रहने के कारण, महाराष्ट्र जैसे प्रमुख उत्पादक राज्य में बुवाई का रकबा (सोयाबीन की बुआई का क्षेत्र) 2 लाख हेक्टेयर तक घट सकता है। सरकार द्वारा MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) बढ़ाए जाने के बावजूद सोयाबीन से किसानों का मुँह मोड़ना एक चिंताजनक संकेत है। इस सीज़न (Marketing Season 2025‑26) के लिए सोयाबीन (पीला) का एमएसपी 5,328 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। यह घोषणा भारत सरकार (CCEA) द्वारा 28 मई 2025 को की गई। इसकी तुलना पिछले सीजन (2024‑25) से करें, तो सोयाबीन का एमएसपी 4,892 रुपये प्रति क्विंटल था। जो बढ़कर 5,328 रुपये प्रति क्विंटल हुआ, जिसका मतलब है 436 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि, यानी करीब 8.9% की बढ़ोतरी। अगर आप ये आंकड़े मंडी या खरीद-बिक्री की रणनीति में इस्तेमाल कर रहे हैं, तो यह बढ़ोतरी एक सकारात्मक संकेत है। लेकिन एमएसपी खरीद कम होने के कारण खुले बाजार में किसानों को इस साल 1600-1800 रुपये प्रति क्विंटल तक की कम कीमतों पर माल बेचना पड़ रहा है। वहीं, कच्चे सोयाबीन तेल के आयात पर सीमा शुल्क में 10% की कटौती ने घरेलू बाजार को और भी प्रभावित किया है, जिससे पेराई (क्रशिंग) उद्योग भी परेशान है। सोयाबीन की कीमतों में दबाव का क्या है कारण और सोयाबीन की कीमतों में सुधार होने की कितनी उम्मीद है, सोयाबीन मंडी के ताज़ा हालात और भविष्य की संभावनाओं को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं इस रिपोर्ट के माध्यम से।
NAFED की नीलामी
दोस्तों NAFED (National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India) ने इस साल अब तक 3.60 लाख टन सोयाबीन की नीलामी की है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में सोयाबीन की औसत कीमतें 4350 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर बनी हुई हैं, जो किसानों के लिए निराशाजनक है। पिछले साल इसी समय सोयाबीन की कीमतें 5500-6000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुँच रही थीं, लेकिन इस बार 1600-1800 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट ने किसानों को भारी नुकसान पहुँचाया है। क्योंकि NAFED की नीलामी में भी MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर खरीद सीमित होने के कारण केवल 7-10% सोयाबीन ही सरकारी खरीद में आ पाता है। बाकी किसानों को खुले बाजार में कम दामों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसका सीधा असर उनकी आय पर पड़ रहा है, खासकर उन छोटे किसानों पर जिनके पास भंडारण की सुविधा नहीं है।
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घट सकता है बुवाई का रकबा
साथियों, सोयाबीन यह मंडी भाव का असर इस साल सोयाबीन की बुवाई पर भी दिखाई दे रहा है। इस साल महाराष्ट्र में सोयाबीन का रकबा 2 लाख हेक्टेयर घटकर 50 लाख हेक्टेयर रहने का अनुमान है। इस गिरावट के कई कारण बताए जा रहे हैं। सरकार ने इस साल सोयाबीन का MSP 5,328 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ाया, लेकिन सरकार द्वारा MSP पर सोयाबीन की खरीद बहुत कम मात्रा में की जा रही है। इसके अलावा वास्तविक बाजार भाव MSP से काफी कम हैं। इससे किसानों का भरोसा डगमगा गया है। सोयाबीन की बाजार की स्थिति को देखते हुए कुछ किसानों ने कपास, दलहन या अन्य नकदी फसलों की ओर रुख किया है, जिनमें जोखिम कम है। इसके अतिरिक्त कुछ इलाकों में बारिश का पैटर्न बदलने के कारण किसानों ने सोयाबीन की बजाय कम पानी वाली फसलें उगाना पसंद किया है। इस तरह, सोयाबीन का उत्पादन घटने से अगले सीजन में आपूर्ति कम हो सकती है, जिसका सकारत्मक असर सोयाबीन की कीमतों पर पड़ सकता है।
बाजार में कीमतों में गिरावट
साथियों, इस साल सोयाबीन की कीमतें पिछले साल के मुकाबले बहुत अधिक नीचे चल रही हैं। इसकी कुछ प्रमुख वजहें हैं: इस साल सरकार ने कच्चे सोयाबीन तेल के आयात पर सीमा शुल्क 10% कम कर दिया, जिससे आयातित तेल सस्ता हो गया। इसका सीधा असर घरेलू सोयाबीन की मांग पर पड़ा है। वहीं दूसरी ओर, सोयाबीन की वैश्विक मांग कमजोर होने के कारण सोयाबीन की कीमत में दबाव में दिखाई दे रही हैं। क्योंकि चीन और अन्य देशों में सोयाबीन की मांग कम होने से निर्यात के अवसर सीमित हो गए हैं। इसके अलावा सोयाबीन क्रशर्स (पेराई इकाइयाँ) सस्ते आयात और MSP के बीच फंस गए हैं। उन्हें घरेलू सोयाबीन की ऊँची कीमतों के कारण लागत बढ़ने का डर है, जबकि आयातित तेल से प्रतिस्पर्धा भी बढ़ गई है। इन सभी कारणों से किसानों को अपनी फसल कम दामों पर बेचनी पड़ रही है।
हालिया नीतिगत कदम
दोस्तों, सोयाबीन की कीमतों में सुधार करने के लिए सरकार ने हाल ही में कुछ नीतिगत फैसले लिए हैं, जिनका सोयाबीन मंडी पर सीधा असर पड़ रहा है। सरकार ने सोयाबीन की MSP में वृद्धि करके 5,328 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। इससे किसानों को थोड़ी राहत मिली है, लेकिन केवल 7-10% सोयाबीन ही MSP पर बिक पाता है। इसके अलावा कच्चे सोयाबीन तेल पर आयात शुल्क में 10% की कटौती करने से तेल आयात सस्ता हुआ, लेकिन घरेलू किसानों और क्रशिंग इकाइयों को नुकसान हुआ। इसलिए किसानों का कहना है कि सरकार को आयात शुल्क बढ़ाकर घरेलू बाजार को सपोर्ट करना चाहिए, वरना उनकी हालत और खराब होगी।
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क्या जुलाई तक और गिरेंगे दाम
दोस्तों, अभी तक सोयाबीन की कीमतों में कोई स्थिर तेजी नहीं दिख रही है। विश्व स्तर पर सोयाबीन का उत्पादन बढ़ा है। खास तौर पर सोया DOC की मांग कमजोर हुई है जिसके कारण सोयाबीन के भाव सही नहीं मिल रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बाजार अपने बाटम के आस पास ही घूम रहा है इसमें बड़ी गिरावट की उम्मीद कम है। थोड़ी बहुत गिरावट होती भी है तो जुलाई के अंत तक कीमतों का निचला स्तर (बॉटम) आ सकता है। मानसूनी मौसम में डिमांड निकल सकती है जिससे सेंटिमेंट सुधर सकता है। अगस्त से अक्टूबर के बीच नई फसल की मांग वृद्धि से भी कीमतों को सहारा मिल सकता है। हालाँकि, अगर सरकार आयात शुल्क नहीं बढ़ाती, तो किसानों को हाल फ़िलहाल चल रहे कमजोर भाव ही संतोष करना पड़ सकता है। हालांकि यहां से आगे बड़ी गिरावट की गुंजाईश नहीं है। कुल मिलाकर सोयाबीन किसानों के लिए यह साल मुश्किलों भरा रहा है। कम बुआई, कम कीमतें और सस्ते आयात के दबाव ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। अगर सरकार घरेलू बाजार को सपोर्ट करने वाले कदम नहीं उठाती, तो आने वाले समय में स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। किसानों को बेहतर भंडारण सुविधाएँ और MSP पर अधिक खरीद की ज़रूरत है, ताकि वे बाजार की मार से बच सकें।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।