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आवक घटने के बावजूद जीरे में नहीं बन रही तेजी | जाने क्या है इसकी वज़ह

आवक घटने के बावजूद जीरे में नहीं बन रही तेजी | जाने क्या है इसकी वज़ह
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किसान साथियो ऊंझा सहित देशभर के जीरा व्यापारी और स्टॉकिस्ट इन दिनों चिंतित दिखाई दे रहे हैं। व्यापारिक सूत्रों के अनुसार, आवक में कमी के बावजूद इस प्रमुख किराना जिंस की थोक कीमत लगातार घट रही है, जिससे व्यापारी स्वाभाविक रूप से परेशान हैं। मानसून सीजन के कारण यह स्थिति जल्दी सुधरने की उम्मीद भी नहीं दिख रही है। स्थानीय थोक किराना बाजार में स्टॉकिस्टों द्वारा बिकवाली बढ़ने के कारण जीरे की कीमत सामान्यतः 700-1000 रुपये गिरकर 30/31 हजार रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गई है। एक दिन पहले भी इसमें 450-700 रुपये की गिरावट दर्ज की गई थी। व्यापारियों का कहना है कि तुलनात्मक रूप से कमजोर बिक्री और ऊंझा से आ रहे मंदी के समाचारों के कारण बाजार की धारणा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

ऊंझा मंडी की स्थिति और भी चिंताजनक है। वहां के व्यापारी दीक्षित पटेल के अनुसार, लगभग 10-12 दिन पहले तक मंडी में जीरे की आवक 18-20 हजार बोरियां थी, जो अब घटकर केवल 8-9 हजार बोरियां रह गई है। उन्होंने बताया कि आवक में गिरावट का मुख्य कारण यह है कि कीमतें आकर्षक नहीं होने के कारण किसानों ने अपनी फसल की बिक्री सीमित कर दी है। आवक में उल्लेखनीय गिरावट के बावजूद ऊंझा में जीरे की कीमत में कमी का रुख बना हुआ है। इस रिपोर्ट के अनुसार, ऊंझा में जीरे की कीमत 25-50 रुपये और गिरकर वर्तमान में क्वालिटी के अनुसार 5600-5725 रुपये प्रति 20 किलोग्राम हो गई है। पिछले 10 दिनों में जीरे की थोक कीमत में 300-325 रुपये प्रति 20 किलोग्राम की गिरावट दर्ज की गई है।

ऊंझा के एक अन्य व्यापारी जतिन पटेल ने बताया कि आश्चर्य की बात यह है कि मंदी के बावजूद बिक्री सामान्य से काफी कमजोर बनी हुई है। उन्होंने आगे बताया कि मांग की स्थिति इतनी खराब है कि फिलहाल न तो स्थानीय स्टॉकिस्ट माल मांग रहे हैं और न ही बाहरी खरीदार। निर्यातकों की मांग भी केवल बांग्लादेश तक सीमित है। ऐसी स्थिति में जीरे की थोक कीमत को सहारा मिलना मुश्किल है। जतिन पटेल ने बताया कि जून महीने के अंत में चीन द्वारा 100 कंटेनर की खरीद के बाद से किसी अन्य आयातक देश से कोई उल्लेखनीय मांग नहीं आई है। दीक्षित पटेल ने कहा कि देश के अधिकांश हिस्सों में मानसून सक्रिय है। कुछ अपवादों को छोड़कर ज्यादातर राज्यों में हाल ही में अच्छी बारिश हुई है और कई राज्यों में बाढ़ की वजह से हालात खराब हैं। इस स्थिति को देखते हुए फिलहाल जीरे की मांग की सुस्ती समाप्त होती नजर नहीं आ रही है।

व्यापारियों ने आगे कहा कि उत्तरी और पश्चिमी भारत में हाल ही में मानसून का आगमन हुआ है, लेकिन चार महीने की अवधि वाले चौमासे का अभी केवल एक महीना बीता है। अभी तीन महीने और बाकी हैं, जिससे जीरे के व्यापारियों और स्टॉकिस्टों की चिंता और बढ़ जाती है। मसाला बोर्ड के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष 2024-25 के आरंभिक महीने यानी अप्रैल 2024 में जीरे का कुल 39,182.42 टन निर्यात हुआ, जिससे 1002.80 करोड़ रुपये की आय हुई। एक वर्ष पूर्व के इसी महीने में देश से 511.30 करोड़ रुपये मूल्य के 17,084.88 टन जीरे का निर्यात हुआ था। इससे पता चलता है कि इस बार मात्रा के आधार पर जीरे के निर्यात में 129 प्रतिशत और आय के आधार पर 96 प्रतिशत का उछाल आया है। बाकि व्यापार अपने विवेक से करे

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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों  को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।