पराली के बदले गोवंश खाद योजना यूपी सरकार का ऐतिहासिक कदम
पराली के बदले गोवंश खाद योजना यूपी सरकार का ऐतिहासिक कदम
उत्तर प्रदेश (UP) सरकार ने एक बड़ी और क्रांतिकारी पहल की है, जिसका उद्देश्य न सिर्फ किसानों को लाभ पहुँचाना है, बल्कि पर्यावरण को भी संरक्षण देना है। यह पहल 'पराली के बदले गोवंश खाद' योजना के तहत की गई है। यह योजना उन किसानों को गोवंशीय खाद (जिसे गोबर से बनाया गया उर्वरक कहते हैं) मुहैया कराती है, जो अपने खेतों से पराली (कृषि अवशेष) जलाने की बजाय उसे इकट्ठा करके, सरकार द्वारा प्रदान की गई खाद लेते हैं। इस योजना के माध्यम से दो महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान किया गया है - एक, पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करना और दूसरा, किसानों को लाभ पहुँचाना। यह योजना किसानों के लिए एक नया अवसर लेकर आई है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी और पर्यावरण को भी फायदा होगा। इससे यह साबित होता है कि अगर सरकार सही दिशा में योजनाएँ बनाकर कार्य करे, तो बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। हर साल फसलों की कटाई के बाद किसान पराली जलाते हैं, जो वायुमंडल में प्रदूषण का मुख्य कारण बनता है और इसके कारण हवा में धुंआ फैलता है, जिससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है। साथ ही, यह जलने वाली पराली से भूमि की उर्वरता में भी गिरावट आती है। इस योजना का मकसद इस पराली को जलाने से रोकना और उसे एक उपयोगी खाद में बदलना है। साथ ही, इस योजना से गोवंश का संरक्षण भी हो रहा है, क्योंकि खाद के वितरण से गोवंशीय पशुओं के लिए चारे का संकट कम हो रहा है। तो चलिए इस योजना के सभी पहलुओं पर विस्तारपूर्वक जानने की कोशिश करते हैं इस रिपोर्ट के माध्यम से।
'पराली के बदले गोवंश खाद' योजना
किसान साथियों, यूपी सरकार ने 28 अक्टूबर 2024 को इस योजना की शुरुआत की, जब हर साल की तरह किसानों को पराली जलाने की समस्या का सामना करना पड़ा। पराली जलाने से वायु प्रदूषण तो बढ़ता ही है, साथ ही इससे किसान अपनी भूमि की उर्वरता भी खो देते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार ने इस पहल को शुरू करने का फैसला लिया, जिसमें किसानों को पराली के बदले गोवंश खाद दी जाती है। इस योजना का उद्देश्य पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखते हुए किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है। एक सरकारी बयान में कहा गया कि इस अभियान के तहत कुल 2.90 लाख किवंटल पराली एकत्रित की गई, और इसके बदले किसानों को 1.55 लाख किवंटल गोवंश खाद दी गई। इस खाद का इस्तेमाल जैविक खेती और भूमि की उर्वरता को बढ़ाने में किया जा सकता है, जो कि किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा।
पराली जलाने से होने वाले नुकसान
किसान भाइयों, हर साल फसलों की कटाई के बाद किसानों को पराली जलाने की आदत होती है। यह पराली जलाने का तरीका उन्हें जलाने का दबाव डालता है, क्योंकि वे इसे अपने खेतों से हटाना चाहते हैं। लेकिन इसके परिणामस्वरूप, प्रदूषण में वृद्धि होती है। जब पराली जलती है, तो वायुमंडल में धुंआ फैलता है, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। खासकर उन इलाकों में जहां पराली जलाने की घटना ज्यादा होती है, वहां की हवा में प्रदूषण के स्तर में बेतहाशा वृद्धि हो जाती है। वायु प्रदूषण से न केवल श्वसन तंत्र पर असर पड़ता है, बल्कि यह मानव जीवन के लिए खतरनाक भी हो सकता है। इसके अलावा, पराली जलाने से भूमि की उर्वरता में भी गिरावट आती है, क्योंकि जलने के कारण भूमि की पोषक तत्वों की मात्रा कम हो जाती है। इस प्रकार, यह पूरी प्रक्रिया भूमि के लिए नुकसानदायक होती है।
योजना के फायदे
किसान साथियों, यह योजना कई मायनों में किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है। सबसे पहले, किसानों को पराली जलाने की बजाय उसे एकत्रित करने का प्रोत्साहन मिल रहा है, जिससे पर्यावरण को भी बचाया जा रहा है। दूसरा, इस अभियान के माध्यम से गोवंश खाद का वितरण किया जा रहा है, जो जैविक खेती के लिए अत्यंत उपयोगी है। जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों की जगह प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है, जो भूमि की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करता है। गोवंश खाद में प्राकृतिक रूप से पोषक तत्व होते हैं, जो मिट्टी की संरचना को मजबूत बनाते हैं और उसकी जलधारण क्षमता को बढ़ाते हैं। इससे किसानों को अधिक पैदावार मिलती है, और साथ ही उनकी उत्पादन लागत भी कम होती है। इस योजना के द्वारा, किसानों को लाभ तो हो ही रहा है, साथ ही यह कदम गोवंश के संरक्षण में भी मदद कर रहा है। जब गोवंशीय पशुओं के लिए चारा उपलब्ध होता है, तो उनके संरक्षण और देखभाल में भी आसानी होती है। इससे किसानों को अतिरिक्त लाभ मिलता है, क्योंकि वे गोवंश को पालकर दूध, गोबर और अन्य उत्पादों से आय अर्जित कर सकते हैं।
योजना की सफलता
किसान भाइयों, यूपी के विभिन्न जिलों में इस अभियान को बहुत सफलता मिली है। खासकर, वाराणसी, बांदा, बदायूं, जालौन, बरेली, अमेठी, सिद्धार्थनगर और बहराइच जैसे जिलों में किसानों ने बड़े पैमाने पर पराली इकट्ठा की और गोवंश खाद का लाभ उठाया। इन जिलों में इस अभियान को बखूबी लागू किया गया, और किसानों ने इस योजना को एक अवसर के रूप में देखा। यह अभियान न केवल कृषि को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से भी एक बड़ा कदम साबित हो रहा है। इस योजना से किसानों की आय में वृद्धि हो रही है, क्योंकि अब वे रासायनिक खादों के बजाय प्राकृतिक खाद का उपयोग कर रहे हैं, जो कि लंबे समय तक फायदेमंद है।
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About the Author
मैं लवकेश कौशिक, भारतीय नौसेना से रिटायर्ड एक नौसैनिक, Mandi Market प्लेटफार्म का संस्थापक हूँ। मैं मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले का निवासी हूँ। मंडी मार्केट( Mandibhavtoday.net) को मूल रूप से पाठकों को ज्वलंत मुद्दों को ठीक से समझाने और मार्केट और इसके ट्रेंड की जानकारी देने के लिए बनाया गया है। पोर्टल पर दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त की गई है।